सरकार द्वारा शुक्रवार को लोकसभा में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, देश भर की विभिन्न अदालतों में लंबित मामले पांच करोड़ के आंकड़े को छूने जा रहे हैं। कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक लिखित जवाब में कहा कि एक जुलाई तक सुप्रीम कोर्ट में 72,062 मामले लंबित हैं, जबकि 25 जुलाई तक देश के 25 हाई कोर्ट्स में 59,55,873 मामले लंबित थे।
वहीं, उन्होंने बताया कि जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में 4.23 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक, विभिन्न अदालतों में कुल 4.83 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। प्रश्न “क्या सरकार ने विभिन्न अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मामलों के कारणों का आकलन किया है” 26 लोकसभा सदस्यों द्वारा पूछा गया था।
रिजिजू ने कहा कि अदालतों में लंबित मामलों का निपटारा न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में है। संबंधित अदालतों द्वारा विभिन्न प्रकार के मामलों के निपटारे के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि अदालतों में मामलों के निपटारे में सरकार की कोई सीधी भूमिका नहीं है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अदालतों में मामलों का समय पर निपटारा कई चीजों पर निर्भर करता है जिनमें पर्याप्त संख्या में जजों और न्यायिक अधिकारियों की उपलब्धता, सहायक अदालत के कर्मचारी, तथ्यों की जटिलता, साक्ष्यों की प्रकृति, जांच एजेंसियों, गवाहों, वादी और नियम एवं प्रक्रियाएं शामिल हैं।
कोलेजियम ने 13 नाम दोबारा भेजे
एक अन्य सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने पिछले साल एक दिसंबर से लेकर इस साल 26 जुलाई के दौरान जजों की नियुक्ति के लिए 127 नए नामों की अनुशंसा की जिनमें से 61 लोगों को नियुक्त किया गया। कानून मंत्री ने बताया कि इन 127 नामों के अलावा शीर्ष अदालत के कोलेजियम ने इसी अवधि के दौरान 13 नाम फिर से भेजे जिनमें से आठ को हाई कोर्ट्स में जज नियुक्त किया गया। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एक दिसंबर, 2021 से 26 जुलाई, 2022 के दौरान सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने कुल 140 नामों की अनुशंसा की और 127 नए नामों में से 61 लोगों की नियुक्ति कर दी गई।