देशभर के दागी नेताओं पर जल्द फैसला लेने के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार देशभर में 12 नई  स्पेशल अदालतें बनाएगी। सुप्रीम कोर्ट में सौंपे हलफनामे में केंद्रीय कानून मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि ऐसी अदालतें साल भर में गठित कर ली जाएंगी। सरकार ने इसका प्रारूप बना लिया है। इन 12 अदालतों के गठन पर सरकार 7.8 करोड़ रुपये खर्च करेगी। बता दें कि देशभर में सैकड़ों राजनेता हैं जिन पर मुकदमे लंबित हैं। न्याय में होने वाली देरी की वजह से ऐसे नेता कई बार चुनकर संसद या विधान सभाओं में पहुंच जाते हैं, जबकि नियमानुसार एक बार दोषी और सजायाफ्ता हो जाने पर किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता जनप्रतिनिधि कानून के तहत स्वत: ही समाप्त हो जाती है, मगर कानूनी उलझनों का फायदा उठाकर अपराधी किस्म के नेता अपनी सदस्यता बचाए रहते हैं।

पिछले महीने नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने सजायाफ्ता नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की वकालत की थी। चुनाव आयोग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पेशल कोर्ट बनाने की संभावनाओं पर केंद्रीय कानून मंत्रालय से छह हफ्तों में हलफनामा देने को कहा था। मामले में तो पहले केंद्र सरकार ने कहा कि हम स्पेशल कोर्ट के लिए तैयार हैं लेकिन यह राज्यों का मामला है। तब कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील को झिड़कते हुए कहा था कि आप सेंट्रल फंड से स्पेशल कोर्ट बनाने की व्यवस्था करें। कोर्ट ने अगली सुनवाई पर कोर्ट की संख्या और उसके लिए फंड के बारे में जानकारी मांगी थी।

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सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक इन स्पेशल कोर्ट्स में स्पीडी ट्रायल होगा। ताकि जल्द से जल्द दागी नेताओं पर फैसला लिया जा सके और उन्हें राजनीति से बाहर किया जा सके। बता दें कि सुनवाई के दौरान तब कोर्ट ने याचिकाकर्ता को भी फटकार लगाई थी, जिसने बिना पर्याप्त डेटा के यह आरोप लगाया था कि भारत में राजनीति का अपराधीकरण हो गया है।

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बता दें कि शुरुआत में केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि दागी नेताओं को दोषी ठहराए जाने के बाद आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध विचार योग्य नहीं है। केंद्र सरकार ने याचिका खारिज करने की भी मांग की थी। गौरतलब है कि इस याचिका में सांसदों-विधायकों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम उम्र सीमा भी निर्धारित करने री गुजारिश की गई है।