कानून मंत्रालय से लेटर जारी होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) सुशील चंद्र और दो अन्य चुनाव आयुक्त, राजीव कुमार व अनूप चंद्र को पीएमओ के अधिकारियों के साथ बैठक में शामिल होना पड़ा। सीईसी को इस तरह बैठक बुलाना पसंद नहीं आया फिर भी ये तीनों वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग में शामिल हुए। कुछ दिन पहले ही चुनाव आयोग को कानून मंत्रालय के अधिकारी की तरफ से एक पत्र मिला जिसमें कह गया था कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा एक बैठक करने वाले हैं जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त का मौजूद रहना भी जरूरी है।
सूत्रों का कहना हैकि पत्र में लिखी गई भाषा सीईसी को पसंद नहीं आई। भाषा ऐसे थी जैसे कि किसी को समन भेजा जा रहा है। इससे पहले भी इस तरह की दो बैठकें हो चुकी थीं लेकिन इनमें चुनाव आयोग के अधिकारी शामिल हुए थे। मुख्य चुनाव आयुक्त को शामिल होने के लिए इस तरह नहीं कहा गया था।
इस मामसे में सीईसी सुशील चंद्रा की टिप्पणी तो नहीं हासिल हो सकी लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस तरह के पत्र को देखकर सीईसी ने दुख जताया था। पत्र के बारे में जब कानून मंत्रालय के अधिकारियों से संपर्क किया गया तो उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
अधिकारी ने बताया कि सीईसी और दो अन्य चुनाव आयुक्त वीडियो मीटिंग में नहीं शामिल हुए। उस दौरान कुछ अन्य अधिकारी बैठक में शामिल थे। हालांकि मीटिंग खत्म होने के बाद उन तीनों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मिश्रा के साथ अनौपचारिक बातचीत की।
एक वरिष्ठ अधिकीरी ने कहा, उन्होंने चुनावी प्रक्रिया में लंबे पड़े से लंबित पड़े सुधारों को लेकर बात की। कैबिनेट ने बुधवार को कुछ कानून संशोधनों को मंजूरी दी थी। उसी को लेकर चर्चा की गई। चुनाव आयोग की गरिमा को लेकर पूछे गए सवाल पर अधिकारी ने कहा, ‘यह कोई बैठक नहीं थी। बस अनौपचारिक बातचीत थी। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर वहां कोई चर्चा ही नहीं हुई। ये सब बातें केवल चुनावी प्रक्रिया में सुधार को लेकर थीं।’
बता दें कि चुनाव आयोग में इन पदों पर आसीन लोग कार्यकारिणी से थोड़ी दूरी ही बनाकर रखते हैं जिससे कि उनकी संवैधानिक गरिमा बनी रहे और किसी तरह का दबाव न बनाया जा सके। इस मीटिंग के बाद कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल किया कि इन परिस्थितियों में कैसे माना जाए कि चुनाव निष्पक्ष होंगे?