दिल्‍ली सचिवालय पर सीबीआई की रेड को लेकर केजरीवाल सरकार और केंद्र की एनडीए एक बार फिर आमने-सामने हैं। केजरीवाल खुद को निशाना बनाए जाने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं एनडीए का कहना है कि छापा केजरीवाल के दफ्तर पर नहीं, बल्‍क‍ि चीफ सेक्रेटरी के दफ्तर पर है। क्‍या सीबीआई का इस तरह छापा मारना सही था? क्‍या सीबीआई ने इस छापे को लेकर कोई झूठ बोला, ऐसे तमाम सवालों का जानते हैं जवाब

चीफ मिनिस्‍टर के दफ्तर में किसी सीनियर अफसर के यहां छापा मारने का सही तरीका क्‍या है? क्‍या सीबीआई ने सही प्रक्रिया का पालन किया?

ज्‍वाइंट सेक्रेटरी के लेवल से ऊपर के किसी नौकरशाह के खिलाफ जांच या उसकी ऑफिस की तलाशी के लिए सीबीआई को पहले सरकार की मंजूरी की जरूरत होती है। 2003 में एनडीए सरकार की ओर से लाया गया दिल्‍ली पुलिस स्‍पेशल एस्‍टैब्‍ल‍िशमेंट एक्‍ट के सेक्‍शन 6ए के तहत सीबीआई को ऐसा करना चाहिए। मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्‍ट‍िस की अगुआई में जजों की पांच सदस्‍यीय बेंच ने इस धारा को खारिज कर दिया। एजेंसी को अब किसी नौकरशाह की जांच या तलाशी के लिए किसी मंजूरी की जरूरत नहीं है। हालांकि, ऐसे किसी सरकारी बाबू के ऑफिस की तलाशी के लिए एजेंसी को कोर्ट के आदेश की जरूरत होती है। इस मामले में सीबीआई ने केस दर्ज करने के बाद स्‍थानीय कोर्ट से सर्च वॉरंट हासिल किया था।

कानून के मुताबिक, जब तक जरूरी न हो, इस तरह की तलाशी न की जाए। क्र‍िमिन‍ल प्रोसिजर के सेक्‍शन 91 के मुताबिक, किसी जांच में अगर किसी खास दस्‍तावेज की जरूरत पड़ती है तो एजेंसी संबंधित अधिकारी को वो दस्‍तावेज पेश करने के लिए समन भेज सकती है। तलाशी ऐसे हालात में ली जाती है, जब वो अफसर या डिपार्टमेंट फाइलें पेश करने में नाकाम रहता है। चूंकि यह मामला दिल्‍ली सरकार के विभिन्‍न विभागों में बीते सात सालों में हुई अनियमितताओं से जुड़ा हुआ है, सीबीआई इन दस्‍तावेजों के बारे में दिल्‍ली सरकार से मांग कर सकती थी। हालांकि, सीबीआई ने तलाशी अभियान को जायज ठहराते हुए कहा कि उसे अहम फाइलों के गायब हो जाने का डर था, इसलिए उन्‍होंने यह कदम उठाया।

सीबीआई ने कहा है कि उसने आशीष जोशी की शिकायत पर कार्रवाई की। जोशी दिल्‍ली डायलॉग कमीशन के सदस्‍य थे। आप लीडर आशीष खेतान से मतभेदों के बाद उन्‍हें हटाया दिया गया था। क्‍या एक निजी शिकायत पर सीबीआई का छापा मारना सामान्‍य बात है? खास तौर पर तब जब शिकायतकर्ता का उस पार्टी से विवाद है, जिसके यहां छापा मारा जा रहा हो।

किसी निजी शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज करना या तलाशी अभियान चलाना कोई नई बात नहीं है। हालांकि, इस मामले में सीबीआई को जोशी की शिकायत दिल्‍ली के एंटी करप्‍शन ब्‍यूरो से जुलाई में मिली थी। इस मामले में आरोपों की जांच करने में पांच महीने का वक्‍त लग गया। सीबीआई का कहना है कि पूरी तरह संतुष्‍ट होने के बाद उसने मामला दर्ज किया और राजेंद्र कुमार के यहां छापा मारा।

सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि अगर सीबीआई के पास अधिकारी के खिलाफ सबूत थे, तो उन्‍हें भी इसकी जानकारी दी जानी चाहिए थी ताकि वे इस मामले में एक्‍शन ले सकें। क्‍या सीबीआई को सीएम के प्र‍िसिंपल सेक्रेटरी के यहां छापा मारने से पहले केजरीवाल को जानकारी देना जरूरी था?

कानून के हिसाब से, किसी भी अधिकारी के खिलाफ जांच कर रही सीबीआई को सीएम या किसी भी मंत्री को जानकारी देना जरूरी नहीं है।

केजरीवाल के मुताबिक, सीबीआई झूठ बोल रही है कि उसने सिर्फ राजेंद्र कुमार के दफ्तर की तलाशी ली। केजरीवाल के मुताबिक, उनके ऑफिस की भी तलाशी ली गई और सीएम ऑफिस की फाइलों पर भी नजर डाली गई। क्‍या यह सही है?

यह नीयत का मामला है। केजरीवाल के सेक्रेटरी के दफ्तर के यहां छापे का तकनीकी मतलब तो यही है कि सीएम के ऑफिस में छापा मारा गया। सेक्रेटरी की फाइलें सीएम के पास ही जाती हैं। इस तरह से केजरीवाल का यह दावा तकनीकी तौर पर बिलकुल सही है कि सीएम दफ्तर की फाइलों को खंगाला गया। हालांकि, सीबीआई की ऐसी नीयत हो भी सकती है और नहीं भी।

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