सर्विलांस की शक्तियों और निजता के अधिकार पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए सीबीआई ने आपराधिक मामलों में सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स से PhotoDNA का इस्तेमाल करने को कहा है। यह अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन है क्योंकि यह विशेष सॉफ्टवेयर “सिर्फ बाल शोषण की तस्वीरों का पता लगाने” के लिए प्रयोग किया जाता है। PhotoDNA पर यूरोप में इस समय जोरदार बहस चल रही है। यूरोपियन प्राइवेसी रेगुलेशन की ओर से सोशल मीडिया कंपनीज द्वारा इस सॉफ्वेयर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी है। ट्विटर, माइक्रोसॉफ्ट, यूट्यूब और फेसबुक जैसी कंपनियां इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देतीं।
हालांकि इस माह सीआरपीसी की धारा 91 के तहत सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स को भेजे एक नोटिस में सीबीआई ने कहा है, “जांच के उद्देश्य से आपसे गुजारिश की जाती है कि सीबीआई जिन संदिग्धों की तस्वीरों को संलग्न कर भेज रहा है, उसपर PhotoDNA चलाया जाए। यह जानकारी जांच के लिए तत्काल चाहिए।” इसका अर्थ यह है कि सोशल मीडिया कंपनियों को अपने सभी सर्वर्स पर PhotoDNA के जरिए सभी तस्वीरों के लिए सर्विलांस सर्च चलानी होगी, न कि किसी संदिग्ध के अकाउंट के लिए।
माइक्राेसॉफ्ट के अनुसार, PhotoDNA का इस्तेमाल “बाल शोषण की तस्वीरों की पहचान करने” हेतु किया जाता है और मुफ्त में उपलब्ध है। अन्य उद्देश्यों के लिए इसका इस्तेमाल सीमित है क्योंकि इससे सेंसरशिप की सीमा का उल्लंघन होगा। ऐसी कोई कार्रवाई निजता के अधिकार का भी हनन करेगी क्योंकि इससे किसी भी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म के सभी यूजर्स- चाहे उनपर आरोप न लगे हों, न ही संदिग्ध हों, सर्विलांस के दायरे में आ जाएंगे। सीबीआई के प्रवक्ता ने इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल पर द इंडियन एक्सप्रेस के सवालों का जवाब नहीं दिया।
सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्हें ऐसी जानकारी है कि बाल शोषण के अलावा किसी और मामले में PhotoDNA का इस्तेमाल हुआ हो। इसके अलावा यह सोशल मीडिया कंपनीज से एक दरख्वास्त भर है और यह उनके ऊपर है कि वह इस नोटिस पर अमल करें या नहीं। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अपार गुप्ता ने कहा, “अगर पुलिस या कोई अन्य जांच एजंसी PhotoDNA का इस्तेमाल सामान्य अपराध जांच के लिए करती है तो यह इस तकनीक के उद्देश्य का सरासर उल्लंघन है। इसका उद्देश्य बाल यौन शोषण मामलों का पता लगाना है।”
PhotoDNA किसी तस्वीर का अनोखा डिजिटल सिग्नेचर या ‘हैश’ बनाता है जिसकी अन्य फोटोज से तुलना की जाती है। पहले से पहचानी गईं अवैध तस्वीरों के ‘हैशेज’ के डेटाबेस से मैच कराने पर बाल शोषण मैटीरियल के वितरण का पता लगाने को इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल होता है।