India Alliance Mamata Banerjee: हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली करारी हार के बाद इंडिया गठबंधन बिखर सा गया है, बड़ी बात यह है इंडिया गठबंधन के ही कई नेता कांग्रेस को चुनौती देने का काम कर रहे हैं। कांग्रेस के लोकसभा चुनाव प्रदर्शन के बाद जो हैसियत बढ़ गई थी, एक बार फिर वो पतन की ओर दिखाई दे रही है। इसका ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं जिन्होंने एक नया मोर्चा खोलने का काम कर दिया है।

सीएम ममता बनर्जी ने दो टूक कहा है कि अगर उन्हें मौका मिले तो वे इंडिया गठबंधन को लीड करना चाहती हैं। अब यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जब इंडिया गठबंधन बनाया गया था, ममता बनर्जी ने इसमें एक बड़ी भूमिका निभाई थी। उस समय भी वे चाहती थी कि उन्हें इंडिया गठबंधन का प्रमुख बना दिया जाए, लेकिन क्योंकि कांग्रेस को यह स्वीकार नहीं था, ऐसे में ममता को ही अपने कदम पीछे खींचने पड़े। लेकिन अब जब कांग्रेस का प्रदर्शन चुनाव में लचर देखने को मिला है, दो बड़े राज्य हाथ से जा चुके हैं, एक बार फिर सियासी समीकरण बदल गए हैं।

अब बदले हुए सियासी समीकरणों में सवाल पूछा जा रहा है- क्या राहुल गांधी से ज्यादा बेहतर तरीके से ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन को लीड कर सकती हैं?

अब ममता बनर्जी के पक्ष में कई बातें जा सकती हैं

देश की मजबूत महिला नेता

सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि देश में जब भी दिग्गज महिला नेताओं की बात आती है, ममता बनर्जी का नाम काफी ऊपर रहता है। अगर मुख्यमंत्री के रूप में मायावती उत्तर प्रदेश से लोकप्रिय हुई थीं, इस प्रकार का कद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का है। पिछले कई सालों से लगातार वे सरकार में बनी हुई हैं, बड़ी बात यह भी है कि देश में पिछले कुछ सालों में महिलाएं राजनीति का केंद्र बन चुकी हैं, सारी योजनाएं महिला केंद्रित आने लगी हैं। इसके ऊपर उनका वोट बैंक हर पार्टी के लिए लाइफ लाइन बन चुका है, ऐसे में अगर बीजेपी से इस बड़े वोट बैंक को छिटकवाना है, इसमें ममता बनर्जी अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं।

आंदोलनकारी छवि देगी फायदा

ममता बनर्जी की छवि एक आंदोलनकारी के रूप में भी देखने को मिली है, जब पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की सरकार थी, जब कई सालों तक टीएमसी को संघर्ष करना पड़ा था, तब ममता बनर्जी का अलग ही सियासी रूप सामने आया था। पैरों में चप्पल पहनकर उन्होंने कई किलोमीटर का आंदोलन किया था। सिंगूर में उन्होंने जनता के लिए जिस तरह से लेफ्ट सरकार से टक्कर ली थी, उसने उनकी सियासी पहचान हमेशा के लिए बदल दी थी। उस एक आंदोलन ने बता दिया था कि ममता बनर्जी जमीन से जुड़ी नेता हैं, उनकी भी कॉमन मैन वाली छवि है। उनका यह अंदाज राष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी के सियासी कद को चुनौती दे सकता है।

मोदी-शाह को बंगाल में हराया

ममता बनर्जी के साथ यह तथ्य भी जाता है कि उन्होंने मोदी शाह की जोड़ी को पश्चिम बंगाल में रोकने का काम किया। जिस बीजेपी ने 2014 के बाद से पश्चिम बंगाल में जबरदस्त विस्तार किया, जिस राज्य में वो मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई, वहां पर ममता बनर्जी ने पहले साल 2016 में बीजेपी के विजयी रथ को रोक दिया था, उसके बाद 2021 के विधानसभा चुनाव में भी सरकार बनाने नहीं दी। ऐसे में इंडिया गठबंधन के साथ जब ममता बनर्जी चलेंगी, मोदी शाह की टेंशन बढ़ सकती है।

अनुभव के मामले में राहुल से काफी आगे

जब भी राहुल गांधी से ममता बनर्जी की तुलना की जाती है, अनुभव के मामले में नेता प्रतिपक्ष हमेशा पीछे छूटते हैं। जिस नेता को लगातार तीन बार सरकार बनाने का मौका मिला, जिसने पिछले 15 सालों से किसी राज्य की कमान संभाल रखी हो, उसका अनुभव सियासी तौर पर अप्रत्याशित होता है, प्रशस्तिक जिम्मेदारी निभाने में भी वो काफी निपुण माना जाता है। ऐसे में यह सियासी अनुभव भी ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन के लिए मुफीद बना सकता है।

ममता के सामने चुनौतियां अनेक

सिर्फ बंगाल तक वोटबैंक सीमित

अब ममता बनर्जी के पक्ष में कुछ बातें जाती जरूर हैं, लेकिन चुनौतियां भी अनेक हैं। यह एक बड़ा सच है कि ममता बनर्जी का वोट बैंक पश्चिम बंगाल तक सीमित चल रहा है। उन्होंने पूर्वोत्तर के राज्यों में चुनाव लड़ अपना विस्तार करने की कोशिश जरूर की है, गोवा तक में अपनी चुनावी किस्मत आजमा चुकी हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिला है। ऐसे में पश्चिम बंगाल तक सीमित रहना ममता बनर्जी के खिलाफ जा सकता है।

इंडिया के ही कई नेता ममता के साथ नहीं

ममता के लिए एक बड़ी चुनौती इंडिया गठबंधन के अंदर खुद के लिए समर्थन जुटाना भी है। इंडिया गठबंधन को लीड करने का सपना कई विपक्षी नेता देख रहे हैं, एक समय तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस रेस में शामिल थे, लेकिन बाद में खेल करते हुए उन्होंने एनडीए में शामिल होने का फैसला किया था। लेकिन इस समय ममता को ना आरजेडी से समर्थन मिल रहा है और ना ही कांग्रेस उनके साथ चलने को तैयार है। ऐसे में बिना समर्थन के इंडिया गठबंधन को लीड करना ममता के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा।

बंगाल हिंसा वाला नेरेटिव जाएगा खिलाफ

पश्चिम बंगाल जैसा राज्य है, यहां की राजनीति में हिंसा एक अहम हिस्सा है। इसी हिंसा की वजह से लेफ्ट सरकार को जाना पड़ा था और अब ममता बनर्जी पर भी ऐसे ही आरोप लगाते हैं। बीजेपी तो लगातार ममता बनर्जी के खिलाफ इस मुद्दे को सबसे ज्यादा उठा रही है, ऐसे में अगर अब राष्ट्रीय लेवल पर ममता बनर्जी अपनी सियासत को शुरू करने की कोशिश करेगी, हिंसा वाला नेरेटिव बीजेपी के लिए जरूर एक नई संजीवनी बन सकता है।

भ्रष्टाचार के भी कई मामलों में फंसी

ममता बनर्जी के साथ एक दिक्कत भ्रष्टाचार की कई लंबित मामले भी हैं। टीएमसी की सरकार पर कई गंभीर आरोप लगे हुए हैं, बात चाहे शारदा स्कैम की हो या फिर शिक्षा भर्ती घोटाले की, कई मौकों पर ममता बनर्जी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। अभी तक बीजेपी कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर खुद को कट्टर ईमानदार दिखा रही थी, अब अगर ममता बनर्जी भी नेशनल लेवल पर अपनी पॉलिटिक्स शुरू करेंगी, भाजपा उन्हें भी इसी तरह से घेरने का काम कर सकती है जिसका खामियाजा पूरे इंडिया गठबंधन को भुगतना पड़ेगा।

कहीं विपक्ष से अलग होने की चाल तो नहीं?

वैसे कुछ जानकार तो यहां तक मानते हैं कि ममता बनर्जी जो इस समय इंडिया गठबंधन को लीड करने की बात कर रही हैं, उनकी असल रणनीति तो पूरे विपक्ष अलग होने की है। उन्हें भी शायद इस बात का एहसास है कि कांग्रेस उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेगी, इस तरह से नाराजगी वाला कारण बताकर इंडिया गठबंधन से खुद को अलग कर सकती हैं और नए सिरे से अपनी राजनीति शुरू कर सकती हैं। वैसे ममता के अलावा नीतीश कुमार की राजनीति भी इस समय सुर्खियों में है, ऐसी खबर चल पड़ी है कि अगर बिहार में महाराष्ट्र फॉर्मूला लगाया गया, नीतीश की कुर्सी चली जाएगी। और जानने के लिए यहां क्लिक करें