केंद्र सरकार ने ट्रिब्यूनल के सदस्यों के कार्यकाल और अन्य सेवा शर्तों को निर्धारित करते हुए ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल, 2021 पेश किया है। हालांकि, बिल के कई प्रावधान ट्रिब्यूनल के सदस्यों की सेवा के कार्यकाल के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आदेश के विपरीत हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 14 जुलाई को ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स (रेशनलाइजेशन एंड कंडीशंस ऑफ सर्विस) अध्यादेश, 2021 (अध्यादेश) द्वारा संशोधित वित्त अधिनियम, 2017 की नई सम्मिलित धारा 184 को रद्द कर दिया था। नई धारा के जरिए ट्रिब्यूनल के सदस्यों और अध्यक्ष का कार्यकाल चार साल के लिए तय कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि वित्त अधिनियम की धारा 184 (11), जो सदस्यों के लिए चार साल का कार्यकाल निर्धारित करती है, शक्तियों के पृथक्करण, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, कानून के शासन और संविधान के अनुच्छेद 14 के सिद्धांतों के विपरीत है।

कोर्ट ने कहा, “एक ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष का कार्यकाल पांच वर्ष या जब तक वह 70 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है, जो भी पहले हो, का होना चाहिए। वहीं, एक ट्रिब्यूनल के सदस्य का कार्यकाल पांच साल या जब तक वह 67 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता, जो भी पहले हो, होना चाहिए। ”

हालांकि, नए विधेयक की धारा 5 के अनुसार, एक ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष के पद का कार्यकाल चार वर्ष या व्यक्ति के 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, होगा। इसी तरह, ट्रिब्यूनल के सदस्यों के लिए, कार्यकाल चार वर्ष या उसके 67 वर्ष प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, निर्धारित किया गया है।

धारा 5 कहती है, “किसी भी न्यायालय के किसी निर्णय, आदेश या डिक्री में या उस समय लागू किसी भी कानून में किसी भी बात के होते हुए भी (i) ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष चार साल की अवधि के लिए या जब तक वह सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है, तब तक पद धारण करेगा, जो भी पहले हो; (ii) ट्रिब्यूनल का सदस्य चार साल की अवधि के लिए या जब तक वह 67 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता, जो भी पहले हो, तक पद धारण करेगा।”

इसी तरह, कोर्ट ने जुलाई 2021 के अपने फैसले में कहा था कि नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष तय करना असंवैधानिक है।