Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ऑपरेशन सिंदूर पर विवादित पोस्ट को लेकर सख्त टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा कि 19 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्रा के खिलाफ दर्ज FIR केवल इसलिए रद्द नहीं की जा सकती, क्योंकि उसने माफी मांगी है, वह होनहार छात्रा है या अच्छे अंकों से पास हुई है। मई 2024 में पुणे पुलिस ने छात्रा के खिलाफ FIR दर्ज की थी, जब उसने सोशल मीडिया पर “ऑपरेशन सिन्दूर” को लेकर विवादित पोस्ट की थी।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम अखंड की बेंच ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि आरोपी एक मेधावी छात्रा है और उसने अपनी परीक्षाएं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की है, इसका मतलब यह नहीं है कि उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द की जा सकती है। 19 वर्षीय छात्रा ने ऑपरेशन सिंदूर के खिलाफ पोस्ट की थी।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने आगे कहा कि केवल पोस्ट हटा लेना और माफी मांग लेना ही काफी नहीं है। कोर्ट पुणे की एक छात्रा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत-पाकिस्तान शत्रुता पर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए मई में उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। उसे गिरफ्तार किया गया था लेकिन बाद में हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद उसे रिहा कर दिया गया था।

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शुक्रवार को छात्रा के वकील ने कोर्ट को बताया कि जमानत मिलने के बाद, वह परीक्षा में शामिल हुई और उसे अच्छे अंक मिले। हालांकि, बेंच ने कहा कि इसलिए कि वह एक मेधावी छात्रा है, प्राथमिकी रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। छात्रा के वकील ने दलील दी कि पोस्ट के पीछे उसकी कोई बुरी मंशा नहीं थी और उसने तुरंत इसे हटा दिया और माफी मांग ली। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि (पोस्ट को) हटाने से मामला और भी गंभीर और जटिल हो गया है।

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद निर्धारित की और सरकारी वकील मनखुवर देशमुख को ‘केस डायरी’ पेश करने का निर्देश दिया। छात्रा ने 7 मई को, इंस्टाग्राम पर ‘रिफॉर्मिस्तान’ नाम के एक अकाउंट से एक पोस्ट को रीपोस्ट किया था, जिसमें भारत सरकार की आलोचना की गई थी। दो घंटे के भीतर, छात्रा को अपनी गलती का एहसास हुआ और कई धमकियां मिलने के बाद उसने पोस्ट हटा दिया।

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