ब्रिक्स समिट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साउथ अफ्रीका के जोहान्सबर्ग पहुंच गए हैं। दो दिन तक चलने वाले इस समिट में कई अहम मुद्दों पर चर्चा होने वाली है। कई बड़े फैसले भी लिए जा सकते हैं और कुछ मुलाकातों की भी उम्मीद लगाई जा रही है। यानी कि भारत की दृष्टि से ये ब्रिक्स समिट काफी अहम रहने वाला है। अब उस अहमियत को तभी समझा जा सकता है जब BRICS का मतलब पता हो, उसके इतिहास की जानकारी हो।
क्या है BRICS और उसकी अहमियत?
ब्रिक्स पांच सबसे तेज अर्थ्यवस्थाओं वाले देशों का एक ग्रुप है। इसके नाम के जितने भी अक्षर हैं, वो सभी किसी ना किसी देश के नाम पर हैं। BRICS में B से ब्राजील, R से रूस, I से इंडिया, C से चीन और S से साउथ अफ्रीका रहता है। साल 2001 में सबसे पहले एक रिसर्च पेपर में BRIC शब्द का इस्तेमाल किया गया था। उस समय S अक्षर उसमें नहीं लगता क्योंकि साउथ अफ्रीका तब तक समिट के साथ नहीं जुड़ा था। साल 2010 में जब साउथ अफ्रीका भी साथ गया तो इसे BRICS नाम दिया गया।
जानकारी के लिए बता दें कि साल 2006 में सबसे पहले ब्रिक्स ने अपनी बैठक की थी। उस साल चारों देशों के विदेश मंत्रियों की भी एक अहम बैठक हुई थी। उसके बाद से लगातार साल में एक बार ब्रिक्स की बैठक होती है। इस समिट में जितने भी देश होते हैं, उनके राष्ट्रप्रमुख शामिल होते हैं और हर बार एक कॉमन थीम के तहत कई मुद्दों पर चर्चा की जाती है।
ब्रिक्स में इस बार क्या एजेंडा?
अब उसी कड़ी में इस बार जो ब्रिक्स बैठक होने जा रही है, उसमें दो मुद्दों पर सबसे ज्यादा मंथन किया जाएगा। एक मुद्दा तो ब्रिक्स के विस्तार को लेकर है। वर्तमान में कई देश ब्रिक्स की सदस्यता चाहते हैं, ऐसे में उन्हें कब तक शामिल किया जाएगा, इस पर चर्चा की जा सकती है। इस बार के ब्रिक्स समिट का दूसरा एजेंडा अपनी करेंसी में कारोबार करने को लेकर है। इस समय डॉलर पूरी दुनिया की सबसे ताकतवर करेंसी है, उसका दबदबा इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि कई देश इससे परेशान हैं। इसी वजह से अपनी करेंसी में कारोबार करने को लेकर जोर दिया जा रहा है।
भारत के लिए कैसे ज्यादा खास?
अब ये दो वो एजेंडे हैं जो सभी पांच देशों के लिए समिट के दौरान अहम रहने वाले हैं। इसके अलावा भारत के लिहाज ये समिट इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पीएम नरेंद्र मोदी की मुलाकात संभव है। कोई औपचारिक ऐलान नहीं किया गया है, लेकिन सीमा विवाद पर जिस तरह से दोनों सेनाओं द्वारा लगातार चर्चा की गई, कयास लगे कि अब दोनों नेता भी मुलाकात कर सकते हैं।