मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़वानी जिले में पिछले माह शिविर में मोतियाबिंद आॅपरेशन में लापरवाही के चलते आंखों की रोशनी खोने वाले पीड़ित मरीजों को प्रतिमाह 5,000 रुपए की सरकारी पेंशन की सहायता आजीवन देने की घोषणा की। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने इस घटना की संपूर्ण जांच एक उच्च स्तरीय समिति से कराने की भी घोषणा की।
मुख्यमंत्री चौहान ने मंगलवार को यह घोषणाएं मध्यप्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा सदन में लाए गए स्थगन प्रस्ताव का उत्तर देते हुए कीं। कांग्रेस के रामनिवास रावत और अन्य कांग्रेस विधायकों द्वारा बड़वानी जिले के शिविर में लोगों की आंखों के मोतियाबिंद के आॅपरेशन में संक्रमित दवाओं के प्रयोग करने का आरोप लगाया और इस लापरवाही के कारण 40 से अधिक लोगों की आंखों की रोशनी खोने के मुद्दे पर लाए गए स्थगन प्रस्ताव पर बहस करते हुए इस घटना के लिए प्रदेश के स्वास्थ्य और संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा के इस्तीफे की मांग की।
रावत, विधानसभा पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक मुकेश नायक, बाला बच्चन और अन्य ने कहा कि प्रदेश में दवाइयों की खरीदी में व्यापक तौर पर भ्रष्टाचार हो रहा है। उन्होंने इस शिविर में भी आॅपरेशन के दौरान संक्रमित दवाओं के प्रयोग का आरोप लगाया।
कांग्रेस के सदस्यों ने मुख्यमंत्री चौहान की सदन से अनुपस्थिति पर प्रश्न करते हुए कहा कि वह इस मामले में केवल मुख्यमंत्री का जवाब सुनना चाहते हैं। इस पर मिश्रा ने बताया, ‘वह आ जाएंगे, लेकिन विभाग के मंत्री के तौर पर मैं भी विपक्ष के आधारहीन आरोपों का जवाब दे सकता हूं।’ सत्तापक्ष से मुख्यमंत्री के सदन में वापस आने के संबंध में स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर और स्थगन प्रस्ताव पर स्वास्थ्य मंत्री द्वारा उत्तर देना प्रारंभ करने पर कांग्रेस के सदस्यों ने सदन से वॉकआउट कर दिया।
प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव और परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने विपक्ष के इस आचरण का विरोध करते हुए इसे अलोकतांत्रिक बताते हुए इसकी निंदा की। भार्गव ने विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीतासरन शर्मा से इस संबंध में व्यवस्था बनाने की भी मांग की कि विपक्ष यदि किसी मुद्दे पर स्थगन प्रस्ताव पेश करता है तो उन्हें उसका उत्तर सुनने के लिए सदन में मौजूद भी रहना चाहिए। हालांकि अध्यक्ष ने इस पर कहा, ‘वह किसी को जवाब सुनने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। बेहतर होगा कि यह उनके ‘विवेक’ पर ही छोड़ दिया जाए।’

