बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि कोई भी कंपनी अपने कर्मचारी की ग्रैच्युटी तभी रोक सकती है जब कर्मचारी को टर्मिनेशन ऑर्डर जारी कर दिया हो। ग्रेच्युटी अधिनियम, 1972 (एक्ट) के भुगतान की धारा 4 (6) (बी) का हावाला देते हुए कोर्ट ने यह बात कही। महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (प्रतिवादी) के एक कर्मचारी ने कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ रिट याचिका दायर की थी जिसमें उनकी ग्रेच्युटी पर रोक लगाने का आदेश जारी किया गया था। कर्मचारी महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की बस में कंडक्टर पद पर तैनात हैं।
दरअसल विभाग ने 2003 में उन्हें एक नोटिस जारी किया था। जिसमें उन्हें बताया गया था कि ड्यूटी पर लापरवाही बरतने के लिए उन्हें सेवामुक्त किया गया है लेकिन इसके बाद हाई कोर्ट ने प्रतिवादी के इस ऑर्डर पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ता की नौकरी के मुद्दे पर यथा स्थित को बनाए रखने का आदेश जारी किया। हालांकि इस दौरान मामले पर सुनवाई लगातार जारी रही। 2011 में प्रतिवादी ने ग्रैच्युटि एक्ट की धारा 4(6) (बी) का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता की ग्रैच्युटी पर रोक लगा दी। विभाग के इसी आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।
जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा कि कोर्ट ने यथा स्थिति को बनाए रखने का आदेश दिया है और 2003 में विभाग द्वारा मुझे जारी किए गए नोटिस के बाद मेरे खिलाफ की जार रही बर्खास्तगी की जांच किसी तार्तिक अंत तक नहीं पहुंच सकी है। याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील वैभव आर गायकवाड़ ने कहा कि इस प्रकार याचिकाकर्ता को उसकी सेवाओं से कभी भी बर्खास्त नहीं किया जा सका ऐसे में उनकी ग्रैच्युटी को न रोका जाए।
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वहीं प्रतिवादी की तरफ से पेश वकील जी एस हेगड़े ने कहा कि याचिकाकर्ता को जांच में दोषी पाया गया है और सिर्फ बर्खास्तगी का आदेश पत्र जारी करने की औपचारिकता रह गई है। लेकिन कोर्ट ने प्रतिवादी के तर्कों पर सहमति नहीं जताई और कहा कि याचिकाकर्ता को अब तक बर्खास्तगी पत्र जारी नहीं किया जा सका जिसका मतलब है कि इससे उनकी सेवाएं भी प्रभावित नहीं रह सकती लिहाजा विभाग कर्मचारी की ग्रैच्युटी को रोक नहीं सकता।