बॉम्बे हाईकोर्ट (High Court) ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकार से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने तलाक के बाद गुजारा भत्ते से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से बिना किसी शर्त के रख-रखाव, भरण-पोषण का हक रखती है। चाहे उसके पति ने दूसरी शादी ही क्यों ना कर ली हो।

जस्टिस राजेश पाटिल ने यह फैसला सुनाया है। उन्होंने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम- 1986 (MWPA) का हवाला दिया और कहा कि महिला को उसके पूर्व पति से भरण-पोषण का हक लेने का पूरा अधिकार है।

 कोर्ट ने पहले भी सुनवाई में कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में पत्नी और कुछ ऐसे दूसरे रिश्तेदारों को गुजारा भत्ता देने का प्रावधान है, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। कोर्ट ने कहा कि जिस महिला से वो बाद में अलग हो गया था, उसे पत्नी के तौर पर माना जाएगा।

इससे पहले भी आ चुका है ऐसा मामला

इससे पहले भी बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने ऐसा आदेश आया था जहां 2012 में नासिक में एक महिला ने गुजारा भत्ता के लिए याचिका दायर की थी। इस मामले में येओला के प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट ने जनवरी 2015 में फैसला सुनाया और महिला को 2500 रुपये महीने गुजारा भत्ता देने का फैसला दिया था। पति की महीने की इनकम 50 हजार से 60 हजार के बीच थी। इस फैसले के खिलाफ पति ने निफाड के सेशन कोर्ट में याचिका दायर की थी। पति ने याचिका में कहा कि उसने उस महिला से कभी शादी नहीं की थी।

इसके बाद अप्रैल 2022 में सेशन कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया। इसके बाद महिला ने सेशन कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। महिला ने हाईकोर्ट को बताया कि उसने साल 1989 में उस शख्स से शादी की थी और साल 1991 में एक बेटे को जन्म दिया। महिला ने कोर्ट को बताया कि उसकी शादी के दो साल बाद उसके पति की पहली पत्नी उसके साथ रहने लगी और उसने भी एक बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद दूसरी पत्नी ने एक और बेटे को जन्म दिया। दूसरी पत्नी ने अपने बच्चों के स्कूली दस्तावेजों में पिता के तौर पर उस व्यक्ति का नाम दिया है।

महिला ने बताया कि उसके दूसरे बेटे के जन्म के तुरंत बाद समस्याएं पैदा हुईं और वह अलग रहने लगी और 2011 तक गुजारा भत्ता प्राप्त करती रही। इसके बाद पहली पत्नी के कहने पर उसने गुजारा-भत्ता देना बंद कर दिया। इसके बाद हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और पति को पिछले नौ वर्षों का बकाया चुकाने के लिए दो महीने का समय दिया और महिला को राशि बढ़ाने के लिए नई याचिका दायर करने की अनुमति दी।