आज देश की जनसंख्या लगभग 140 करोड़ है। इसमें से लगभग सत्तर फीसद जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इस दृष्टि से लगभग 98 करोड़ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। व्यवसायिक दृष्टि से यह एक बहुत बड़ा बाजार है। इस तक पहुंच कर वहां के उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद और सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करवा कर देश की अर्थव्यवस्था को तेज गति प्रदान की जा सकती है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने ग्रामीण क्षेत्र को परिभाषित करते हुए कहा है कि जिस क्षेत्र की जनसंख्या का घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी हो, जिसकी स्पष्ट सीमा वाले क्षेत्र में कोई नगरपालिका या बोर्ड हो, जिसके पुरुष कामकाजी आबादी का कम से कम पचहतर फीसद लोग कृषि और संबद्ध गतिविधियों में शामिल हों, उसको ग्रामीण क्षेत्र माना जाता है।

भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार उनचास हजार से कम आबादी वाले क्षेत्रों को अलग-अलग श्रेणी के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग कृषि और मछली पकड़ने, मिट्टी के बर्तन बनाने, बुनाई और पेंटिंग की पारंपरिक कला, मुर्गीपालन और डेयरी से संबंधित कृषि गतिविधियों से स्व-रोजगार करते हैं और बड़ी संख्या में गरीब और भूमिहीन व्यक्ति मजदूरी करके अपना भरण पोषण करते हैं। इनकी आय काफी हद तक मौसमी होती है और इसलिए उनकी क्रय क्षमता भी मौसमी ही होती है, जो सामान्यत: फसल उत्पादन चक्र पर आधारित होती है।

विपणन की दृष्टि से ग्रामीण बाजार कोई भी वह भौगोलिक स्थान है, जिसकी जनसंख्या बीस हजार से कम है। ग्रामीण क्षेत्र से दोतरफा व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन होता है। एक तरफ गांवों की उपज शहरी बाजार में उपलब्ध कराई जाती है, जिनमें कृषि उत्पाद, जैसे फसलें, अनाज, सब्जियां और फल, मिट्टी के बर्तन, बुनाई और सिलाई डिजाइन, पेपर मैशे, बांस की हस्तनिर्मित वस्तुएं और असम, ओड़ीशा के शिल्प, दक्षिण भारत के हाथी दांत के शिल्प, आदि के उत्पाद, डेयरी और दूध उत्पाद तथा साथ ही मुर्गीपालन, मांस, मधुमक्खी पालन व्यवसाय आदि शामिल हैं। दूसरा, शहरी से ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध कराए जाने वाले उत्पाद हैं, जिनमें एफएमसीजी उत्पाद जैसे मोबाइल, टेलीविजन, साबुन, डिटर्जेंट, टूथपेस्ट, कपड़ा आदि को देश के ग्रामीण क्षेत्रों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप उपलब्ध कराया जाता है।

ग्रामीण क्षेत्रों के बाजारों में पहुंच एक बड़ी चुनौती है। ये बाजार काफी हद तक असंगठित हैं, जहां सामान्यतया जनसंख्या बिखरी होती है। इसके अलावा, बड़े भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण, सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के साथ-साथ जाति आधारित व्यवस्था के चलते भी हर गांव के लिए व्यक्तिगत भिन्नता होती है। बोली में भी स्थानीय आधार पर बदलाव आता रहता है।

देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं का विकास और विस्तार अब भी शुरुआती चरण में है। अधिकांश गांवों में मानसून के दौरान विकट स्थिति बन जाती है। देश में बड़ी संख्या में गांवों में टेलीफोन की पहुंच नहीं है। अन्य संचार संसाधन भी अत्यधिक अविकसित अवस्था में हैं। अच्छी सड़कों और पर्याप्त विद्युतीकरण का अभाव है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में रेल परिवहन की सुविधा भी पर्याप्त नहीं हैं। इस कारण परिवहन में अधिक समय लगता है, जिससे जल्दी खराब होने वाली उपभोग योग्य सामग्री के परिवहन और भंडारण की समस्या बनी रहती है।

ग्रामीण लोगों की प्रति व्यक्ति आय शहरी लोगों की तुलना में कम है। इसके अलावा, ग्रामीण बाजारों में मांग कृषि स्थिति पर निर्भर करती है, जो मानसून पर आधारित है। इसलिए मांग स्थिर या नियमित नहीं होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में साक्षरता का स्तर काफी कम है। इससे इन क्षेत्रों में प्रभावी संप्रेषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी ब्रांडेड उत्पाद के कई स्थानीय संस्करण भी होते हैं, जो कंपनी के ब्रांडेड उत्पादों की तुलना में सस्ते होते हैं, जिससे ब्रांडेड उत्पादों के विक्रय में कठिनाई आती है। इसके अलावा अशिक्षा के कारण कई बार उपभोक्ता असली और नकली ब्रांड का पता नहीं लगा पाते।

ग्रामीण और शहरी लोगों की जीवनशैली में काफी अंतर है। ग्रामीण ग्राहकों की सोच काफी सरल होती है और उनके निर्णय अब भी रीति-रिवाजों और परंपराओं से संचालित होते हैं। नई पद्धतियां अपनाना उनके लिए कठिन होता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में गोदामों के रूप में भंडारण सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। माल को उचित स्थिति में रखने के लिए उपलब्ध गोदामों का उचित रखरखाव नहीं हो पाता है। यह एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों में भंडारण लागत बढ़ जाती है। ग्रामीण बाजार बिखरे हुए और छोटे-छोटे होते हैं, इसकी वजह से उनके लिए विक्रय बल की व्यवस्था करना भी काफी कठिन होता है। विक्रय कार्य में सलंग्न व्यक्ति ग्रमीण बाजारों में विक्रय करना कम पसंद करते हैं, क्योंकि उनको अधिक प्रयास करने पर भी कम आय होती है।

ग्रामीण बाजारों में पहुंच की राह हालांकि काफी कठिनाइयों से भरी लग रही है, लेकिन कुछ उपाय के जरिए इनको दूर करके एक बहुत बड़े उपभोक्ता वर्ग तक पहुंचा जा सकता है। ग्रामीण ग्राहकों के लिए लक्षित उत्पाद कम लागत, उच्च उपयोगिता उन्मुख, न्यूनतम परिष्कृत पैकेजिंग लागत और छोटी इकाई पैकेजिंग वाले होने जरूरी हैं। साथ ही, ग्रामीण बाजारों में पहुंच की बाधाओं को दूर किया जाना भी जरूरी है। इसके लिए सर्वाधिक जरूरी इन क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धि है। इसके लिए सरकारों द्वारा समय-समय पर प्रयास भी किए जाते रहे हैं।

विद्युतीकरण, ग्राम सड़क योजना और हर गांव में मुफ्त वाई-फाई उपलब्ध कराने जैसी नवीनतम सरकारी पहलों के कारण परिदृश्य में कुछ बदलाव आने शुरू हुए हैं। ग्रामीण निवासियों की अशिक्षा को दृष्टिगत रखते हुए वस्तुओं और सेवाओं के विज्ञापन बैनर, पुस्तिकाओं और प्रिंट मीडिया के अन्य रूपों में उनको पढ़ने और समझने की बाधा को देखते हुए इन माध्यमों के बजाय टीवी विज्ञापनों, नुक्कड़ नाटकों और गांव के मेलों और उत्सवों में सहभागिता जैसे परंपरागत माध्यम अधिक उपयोगी हो सकते हैं। इनमें ग्राम पंचायत, स्कूल के प्रधानाध्यापक या आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं अदि का सहयोग लिया जा सकता है।

व्यवस्थित और पारदर्शी विपणन की दशाओं का निर्माण करने के लिए बाजार नियमन की नीति से कृषक और उपभोक्ता दोनों को लाभान्वित किया जा सकता है, पर अब भी लगभग सत्ताईस हजार ग्रामीण क्षेत्रों में अनियमित मंडियां हैं, उनको विकसित किए जाने की आवश्यकता है। सड़कों, रेलमार्गों, भंडारगृहों, गोदामों, शीतगृहों और प्रसंस्करण इकाइयों के रूप में उपलब्ध भौतिक आधारभूत सुविधाएं इन क्षेत्रों की बढ़ती मांग को देखते हुए अपर्याप्त हैं, इनकी संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है। सहकारी विपणन द्वारा किसानों को अपने उत्पादों का उचित मूल्य सुलभ कराना भी जरूरी है, ताकि उनको उनके कृषि और अन्य उत्पादों का उचित मूल्य मिल सके और वे बिचौलियों के शोषण से मुक्त रह सकें।

आनलाइन मार्केटिंग ग्रामीण बाजारों में पहुंच की दिशा में महत्त्वपूर्ण सहयोग कर सकता है। जिन क्षेत्रों में इंटरनेट की पर्याप्त सुविधा है, वहां आनलाइन मार्केटिंग प्रभावी भूमिका का निर्वाह कर सकता है। इसके द्वारा सीधे ग्राहकों तक पहुंचा जा सकता है। ग्राहकों से सीधे आर्डर लेकर उनको उपलब्ध परिवहन सुविधाओं द्वारा आवश्यकता की वस्तुएं पहुंचाई जा सकती हैं। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी विक्रय बल की नियुक्ति की भी जरूरत नहीं रहती। केंद्र और राज्य की सरकारें, स्थानीय निकाय, सहकारी संस्थाएं और सभी संबद्ध पक्ष अगर मिलजुल कर इस दिशा में सक्रिय प्रयास करें, तो ग्रामीण बाजारों में पहुंच की राह काफी हद तक आसान हो सकती है।