बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के मद्देनजर सरकार ने ‘सूर्योदय योजना’ शुरू की है। इसका उद्देश्य देश में एक करोड़ घरों की छतों पर सौर ऊर्जा प्रणाली स्थापित करना है। सूरज की रोशनी से बनी इस बिजली के उपयोग से दैनिक जीवन में बिजली की खपत को कम किया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल जल्द ही भारत को विश्व पटल पर अक्षय ऊर्जा के निर्यातक के रूप में स्थान दिलाएगी। भारत के अधिकांश भागों में वर्ष में 250-300 धूप निकलने वाले दिनों सहित हर दिन प्रति वर्गमीटर लगभग 4-7 किलोवाट घंटे का सौर विकिरण मिलता है। अगर इसे वर्ष भर के उत्पादन से जोड़ें तो भारतीय भूभाग पर लगभग प्रतिवर्ग मीटर पांच हजार लाख करोड़ किलोवाट सौर ऊर्जा मिलती है।
‘नेशनल इंस्टीट्यूट आफ सोलर एनर्जी’ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 748 गीगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता है। इसे ‘सोलर पैनल’ की मदद से बिजली में बदल कर बढ़ती ऊर्जा की मांग को पूरा किया जा सकता है। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रकाशित बंजर भूमि एटलस 2019 के अनुसार देश में कुल बंजर भूमि लगभग 5,57,665 वर्ग किलोमीटर है। इस भूमि का उपयोग सोलर पैनल लगाने में किया जा सकता है। इससे अच्छी मात्रा में सौर ऊर्जा पैदा की जा सकती है। ‘काउंसिल आन एनर्जी एनवायरमेंट एंड वाटर’ द्वारा जारी एक रपट में कहा गया है कि भारत के 25 करोड़ घरों की छतों पर 637 गीगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है।
भारत ने अपने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के अंतर्गत 11 जनवरी, 2010 को राष्ट्रीय सोलर मिशन शुरू किया था। इस मिशन का उद्देश्य देश के सामने उभर रही ऊर्जा चुनौतियों से लड़ना है। गौरतलब है कि ‘काप-28’ के दौरान भारत ने लक्ष्य रखा था कि वह 2030 तक अपनी कुल स्थापित विद्युत ऊर्जा का पचास फीसद गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करेगा। इस लक्ष्य को पूरा करने में सौर ऊर्जा का विस्तार और विकास बेहद आवश्यक है। इसके लिए भारत सरकार ने सौर ऊर्जा उत्पादन में तीव्रता लाने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं।
इनमें सोलर पार्क योजना, फोटोवाल्टिक सेल के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने हेतु ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ योजना, ‘ग्रिड कनेक्टेड सोलर फोटोवोल्टिक प्रोजेक्ट्स’ आदि प्रमुख हैं। इन योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के कारण आज भारत की कुल सौर ऊर्जा क्षमता 70 गीगावाट तक पहुंच गई है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी वैश्विक स्थिति रपट 2023 के अनुसार विश्व में सोलर पैनल उपलब्ध कराने में आज भारत पांचवें नंबर पर है।
सौर ऊर्जा के उपयोग में बड़ी भूमिका फोटोवोल्टिक सेल की होती है। इन्हीं के जरिए सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलकर ग्रिड तक पहुंचाया जा सकता है। फोटोवोल्टिक सेल सोलर पैनल को ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने, इनके आयात पर होने वाले विदेशी मुद्रा के खर्च को कम करना एक बड़ी चुनौती थी। इसलिए भारत सरकार ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम’ की शुरुआत की है। इसमें ऐसे उद्यमियों को सबसिडी दी जाती है, जो सोलर पैनल या सौर ऊर्जा से जुड़े किसी भी उपकरण का निर्माण घरेलू स्तर पर कर रहे हैं।
आज भारत के सौर ऊर्जा क्षेत्र में काफी वृद्धि देखी जा सकती है। इसमें बड़ा योगदान सरकार की ‘सोलर पावर बैंक’ योजना का है। इस योजना के तहत सरकार कई सौ हेक्टेयर भूमि पर सौर संयंत्र लगाती है। अब तक इस योजना के तहत कई सोलर पार्क बन चुके हैं। इसमें राजस्थान का भादला सोलर पार्क सबसे बड़ा है। इसकी सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 2.25 गीगावाट है। वहीं कर्नाटक के पाबागाड़ा सोलर पार्क की क्षमता 2.05 गीगावाट है।
इसे भविष्य में तीन गीगावाट तक करने की योजना है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की वर्षांत समीक्षा 2022 के अनुसार जनवरी से अक्तूबर 2022 के दौरान विभिन्न सौर पार्कों में 832 मेगावाट क्षमता की सौर परियोजनाएं चालू की गई हैं। 17 पार्कों में 10 गीगावाट से अधिक की कुल क्षमता वाली सौर ऊर्जा परियोजनाएं पहले ही शुरू की जा चुकी हैं। इन योजनाओं और नीतियों का परिणाम है कि वर्ष 2022 में गुजरात का मोढेरा भारत का पहला सोलर ग्राम बना। सितंबर 2023 में मध्यप्रदेश का सांची देश का पहला सोलर नगर बन गया। 2018 में दीव देश का पहला सोलर द्वीप बन गया था।
सौर ऊर्जा को नवीकृत और सतत ऊर्जा का मुख्य स्रोत कहा जाता है, जो पर्यावरण के अनुकूल विद्युत उत्पादन का विकल्प देती है। आज सौर ऊर्जा से घरों और उद्योगों दोनों को सस्ती दरों पर बिजली दी जा रही है। सस्ती दरों पर उद्योगों को बिजली मिलने से उत्पादन की लागत घटेगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के 2021 के आंकड़ों के मुताबिक सन 2000 से भारत में ऊर्जा का उपभोग दोगुनी गति से बढ़ रहा है। लगभग दो दशक में 90 करोड़ नागरिकों को बिजली का कनेक्शन मिल चुका है, जो भविष्य में भारत की ऊर्जा मांग को हर साल 5-6 फीसद बढ़ा रहा है। गौरतलब है कि भारत की अस्सी फीसद ऊर्जा की जरूरत तीन महत्त्वपूर्ण र्इंधनों- कोयला, तेल और ठोस बायोमास से पूरी होती है। ऊर्जा के लिए जीवाश्म र्इंधन पर निर्भरता लगातार भारत के विदेशी मुद्रा कोष को खाली करती जा रही है। ऐसे में सौर ऊर्जा का विकास और वृद्धि ही भारत के विदेशी मुद्रा कोष को खाली होने से रोक पाएगी।
सौर ऊर्जा निसंदेह बहुउद्देशीय उपयोग वाली अक्षय ऊर्जा है, लेकिन अभी इसके विकास में अनेक चुनौतियां सामने आ रही हैं। सौर ऊर्जा के लिए सोलर पैनल की जरूरत होती है। पिछले वर्ष देखा गया कि भारत के सोलर पावर डेवलपर्स सोलर सेल को चीन, कंबोडिया, मलेशिया, थाईलैंड, विएतनाम से आयात कर रहे हैं। जनवरी से अगस्त 2022 में लगभग 2.5 अरब रुपए के सोलर सेल हमने विदेशों से आयात किए हैं। भारतीय सोलर पावर डेवलपर्स का तर्क है कि हमारे देश में बने सोलर सेल महंगे और कम दक्षता वाले हैं, इसलिए हमें ये आयात करने पड़ते हैं।
दरअसल, भारत में बने सोलर सेल अन्य देशों की तुलना में महंगे हैं, क्योंकि सोलर सेल में इस्तेमाल होने वाले सिलिकान वेफर सेमीकंडक्टर से बनते हैं, जिनका भारत में काफी अभाव है। सौर ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में सौर उद्योग की वृद्धि नए रोजगारों का सृजन करेगी। इससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। अगर भारत में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाया जा सकेगा, तो इससे जीडीपी दर भी बढ़ेगी। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली उत्पादन, तापन और प्रकाश तीनों के लिए हो सकता है।
भारत में दूरदराज के क्षेत्रों तक बिजली पहुंचाने के लिए इन क्षेत्रों में ग्रिड स्थापित करनी होगी, जिसकी लागत बहुत अधिक होती है। इन क्षेत्रों में सौर संयंत्र स्थापित करने से यह खर्च कम किया जा सकता है। इससे गांवों को भी सस्ती दरों पर बिजली मिल सकेगी।
