संयुक्त राष्ट्र में शरणार्थियों के मामलों से जुड़े संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (एनएचसीआर) की वैश्विक रुझान रपट को जेनेवा में जारी करते हुए संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजंसी के प्रमुख फिलिपो ग्रैंडी ने कहा कि ‘उत्पीड़न और मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण करीब 11 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। यह हमारी वैश्विक स्थिति पर कलंक है। 2022 में करीब 1.9 करोड़ लोग विस्थापित हुए, जिनमें से 1.1 करोड़ से अधिक लोगों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के चलते अपना घर छोड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से पहली बार इतनी बड़ी संख्या में लोग जंग के कारण विस्थापित हुए हैं। यह आपात स्थिति का संकेत है।
‘2022 में एक लाख 14 हजार शरणार्थियों का पुनर्वास भी किया गया
कुछ समय के भीतर ही पैंतीस प्रकार की आपात स्थितियां सामने आई हैं, जो बीते कुछ वर्षों की तुलना में तीन से चार गुना अधिक हैं।’ ग्रैंडी ने तर्क दिया कि सूडान से पश्चिमी नागरिकों को निकाले जाने के बाद वहां हो रहे संघर्ष की खबर अधिकांश अखबारों से गायब रही। सूडान में इस संघर्ष के चलते अप्रैल 2023 के बाद से अब तक बीस लाख लोग विस्थापित हुए हैं। वहीं कांगो गणराज्य, इथियोपिया और म्यांमा में संघर्ष के चलते करीब 10-10 लाख लोग अपने मूल आवास और देश छोड़ने पर विवश हुए हैं। हालांकि उन्होंने सकारात्मक जानकारी देते हुए संतोष जाहिर किया कि ‘2022 में एक लाख 14 हजार शरणार्थियों का पुनर्वास किया गया, जो 2021 की तुलना में दोगुना है।
NHCR ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दस दिन पूरे होने के बाद दी रपट
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दस दिन पूरे होने के बाद रपट दी थी कि हवाई और मिसाइल हमलों से बचने के लिए दस लाख से ज्यादा नागरिक यूक्रेन से पलायन कर चुके हैं। बीती एक शताब्दी में इतनी तेज गति से कहीं भी पलायन नहीं हुआ है। ये लोग रोमानिया, पोलैंड, मोलडोवा, स्लोवाकिया, हंगरी और बेलारूस में शरण ले रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा 6.5 लाख लोग पोलैंड की शरण में हैं। कुछ लोग निकटवर्ती रूस के सीमा क्षेत्र में भी चले गए हैं।
सबसे कम शरणार्थी बेलारूस पहुंच रहे हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बेलारूस रूस का सहयोगी देश है। विश्व बैंक के मुताबिक 2020 के अंत में यूक्रेन की आबादी 4.4 करोड़ थी। एनएचसीआर ने आशंका जताई है कि अगर हालात और बिगड़ते हैं, तो चालीस लाख से भी ज्यादा यूक्रेनी नागरिकों को पड़ोसी देशों में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ेगा। इससे पहले 2011 में सीरिया में छिड़े गृहयुद्ध के चलते बड़ी संख्या में पलायन शुरू हुआ था, जो 2018 में अमेरिका द्वारा किए हमले तक जारी रहा।
अमेरिका ने अपने मित्र देश ब्रिटेन और फ्रांस के साथ मिलकर सीरिया पर मिसाइल हमला बोला था। सीरिया में मौजूद रासायनिक हथियारों के भंडारों को नष्ट करने के मकसद से 105 मिसाइलें दागी गई थीं। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की ये मिसाइलें राजधानी दमिश्क और होम्स शहरों पर बरसाई गई थीं। इसमें रासायनिक हथियारों के भंडार और वैज्ञानिक शोध केंद्रों को निशाना बनाया गया। इससे कई इमारतों में आग लग गई और दमिश्क धुएं के गुबार से ढंक गया था। ऐसे ही दृश्य आजकल यूक्रेन में रूसी हमले से देखने में आ रहे हैं। अमेरिका ने इराक पर भी जैविक और रासायनिक हथियारों की आशंका के चलते हमला बोला था।
करीब साढ़े सात वर्ष चले सीरिया युद्ध में पांच लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। एक करोड़ लोगों ने शरणार्थी के रूप में विस्थापन का दंश झेला, इनमें से 67 लाख आज भी अनेक देशों में शरणार्थी बने हुए हैं। ये शरणार्थी जिन देशों में रह रहे हैं, उनमें भी अपनी कट्टरता के चलते संकट का सबब बने हुए हैं। जर्मनी ने सबसे ज्यादा विस्थापितों को शरण दी थी। दरअसल, 7 अप्रैल, 2018 को सत्तर नागरिकों की रासायनिक हमले से मौत के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने जवाबी कार्यवाही करने का बीड़ा उठाया था।
इसे उन्होंने अंजाम तक भी पहुंचा दिया था। शायद इसीलिए रूस के उप प्रधानमंत्री आर्केडी वोरकोविच ने तब ट्रंप को जवाब देते हुए कहा था कि ‘अंतरराष्ट्रीय संबंध एक शख्स के मिजाज पर निर्भर नहीं होने चाहिए।’ यूक्रेन युद्ध में ट्रंप जैसा मिजाज ब्लादिमीर पुतिन भी दिखा रहे हैं और शक्तिशाली अमेरिका जैसे देश इस आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। इसी कारण युद्ध अनवरत बना हुआ है।
यूक्रेन की एनएचसीआर प्रतिनिधि कैरोलिना ने कहा है कि ‘दुनिया उन लोगों के आंकड़ों पर गौर कर रही है, जिन्होंने पड़ोसी देशों में शरण ली हुई है, लेकिन यह समझना जरूरी है कि प्रभावित लोगों की सबसे बड़ी संख्या यूक्रेन के भीतर अब भी मौजूद है। हमारे पास इन आंतरिक विस्थापित नागरिकों के कोई विश्वसनीय आंकड़े नहीं हैं।’ एनएचसीआर का कहना है कि लाखों लोग देश के भीतर ही विस्थापन का दंश और दहशत झेलने को विवश हैं, जो फिलहाल रेल, बस, कार या बंकरों में रहते हुए प्राण बचाने की कोशिश में लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजंसी की वैश्विक रपट के मुताबिक बीस वर्ष पहले की तुलना में विस्थापन का संकट दोगुना बढ़ गया है। 2019 तक आंतरिक रूप से विस्थापितों की कुल संख्या 4 करोड़ 13 लाख थी। इनमें से 1 करोड़ 36 लाख लोग ऐसे हैं, जिन्हें 2018 में विस्थापित होना पड़ा था।
यह सही है कि विकसित देश अपने वर्चस्व के लिए युद्ध के हालात पैदा करते हैं, जैसा कि हम यूक्रेन के परिप्रेक्ष्य में अमेरिका और रूस के वर्चस्व की लड़ाई देख रहे हैं। ये वही देश हैं, जिन्होंने 1993 तक तीसरी परमाणु शक्ति रहे देश यूक्रेन से 1994 में बुडापेस्ट परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कराकर उसके सभी परमाणु हथियार समुद्र में नष्ट करा दिए थे। अमेरिका और ब्रिटेन ने यूक्रेन को इस समझौते के लिए राजी किया था और इन्हीं देशों के साथ रूस ने भी सहमति जताते हुए यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी ली थी। लेकिन अब रूस ने सीधा यूक्रेन पर हमला बोल दिया और अमेरिका और ब्रिटेन दूर खड़े रहकर तमाशा देख रहे हैं।
बावजूद इसके, यही वे अमीर देश हैं, जो सबसे ज्यादा युद्ध और पर्यावरण शरणार्थियों को शरण देते हैं। 2015 में सीरिया में भड़की हिंसा से बचने के लिए लाखों लोगों ने जान जोखिम में डाल कर महिलाओं और बच्चों के साथ भूमध्य सागर को पार कर ग्रीस और इटली में शरण ली थी। इन दोनों देशों ने तब कहा था कि समय के मारे शरणार्थियों को आश्रय देने की नीति बनाना आवश्यक है। वेनेजुएला में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के चलते चालीस लाख से ज्यादा लोगों ने पलायन किया था। इनमें से बमुश्किल पांच लाख लोग औपचारिक शरणार्थियों के दर्जे में हैं। युद्ध और गृहयुद्ध के हालात के चलते सबसे ज्यादा सीरिया के 67 लाख, अफगानिस्तान के 27 लाख, दक्षिण सूडान के 23 लाख, म्यांमा के 11 लाख और सोमालिया के 9 लाख लोग शरणार्थी के रूप में विभिन्न विकसित देशों के सीमांत इलाकों में शरण लिए हुए हैं। भारत में बांग्लादेश और म्यांमा के गृहयुद्ध से पलायन किए करीब चार करोड़ लोगों ने घुसपैठ की हुई है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजंसी की 2019 में आई रपट के मुताबिक कुल 7 करोड़ 95 लाख विस्थापितों में से 4 करोड़ 57 लाख सांप्रदायिक, नस्लीय, जातीय हिंसा और पर्यावरणीय तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपने ही देश में विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि ताकतवर देशों की सनक के चलते कमजोर देशों पर युद्ध थोपा जाए और लाखों लोग शरणार्थी का अभिशप्त जीवन जीने को विवश हो जाएं।