कुछ दिन पहले दिल्‍ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि वे अपनी शैक्षिक योग्‍यता का खुलासा करें। देश के एक आम नागरिक के तौर पर मुझे केजरीवाल की यह मांग थोड़ी अटपटी लगी। ऐसा इसलिए क्‍योंकि जिस वक्‍त देश सूखाग्रस्‍त राज्‍यों और नित नए खुल रहे घोटालों की समस्‍याओं से जूझ रहा है, वैसे में यह बेहद मामूली मुद्दा है। भारतीय जनता पार्टी ने भी बिना किसी देरी के दस्‍तावेज सार्वजनिक कर दिए। इनमें पीएम मोदी की डिग्री और मार्कशीट शामिल थी। हालांकि, उस वक्‍त मैं हैरान रह गया, जब आप नेताओं ने इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए इन दस्‍तावेज को फर्जी करार दे दिया।

मैंने अखबारों में रिपोर्ट पढ़ी और टीवी न्‍यूज चैनलों पर आप नेताओं को यह चिल्‍लाते हुए देखा कि डिग्री फर्जी है। क्‍या दिल्‍ली यूनिवर्सिटी में 1975 में कम्‍प्‍यूटर थे, आप नेताओं ने यह सवाल प्रमुखता से उठाया।

(Source: Devendra Bhandari photo)

मैं यहां बताना चाहता हूं कि मैंने दिल्‍ली यूनिवर्सिटी के स्‍कूल ऑफ करॉसपॉन्‍डेंस (जैसा कि यह उस वक्‍त कहलाता था) में 1969 में बीकॉम (पास) कोर्स में दाखिला लिया था। अगर मैं आदर्श तौर पर पेपर क्‍ल‍ियर करता तो शायद यूनिवर्सिटी से 1972 में पास आउट होता। लेकिन मैं तीसरे वर्ष में फेल हो गया, इसलिए मुझे डिग्री 1973 में मिली।

अब आप नेताओं का दावा है कि दस्‍तावेज फर्जी हैं क्‍योंकि उस वक्‍त डीयू हस्‍तलिखित डिग्री और मार्कशीट्स देता था और मोदी की डिग्री कम्‍प्‍यूटराइज्‍ड है। एक अन्‍य मुद्दा जो उन्‍होंने उठाया है, वह यह है कि पीएम की मार्कशीट में साल 1977 का जिक्र है, जबकि डिग्री में 1978 लिखा हुआ है। मुझे लगता है कि दस्‍तावेज से जुड़े आप नेताओं के ये दो ‘मुद्दे’ पूरी तरह बकवास हैं। ऐसा इसलिए क्‍योंकि जब मैंने 1972 में पास किया, तो भी मेरे पास इलेक्ट्रो टाइप्‍ड/कम्‍प्‍यूटर मार्कशीट है। ठीक वैसा ही जैसा कि पीएम की ओर से सार्वजनिक किया गया है। पीएम ने 1977 में ग्रेजुएशन किया था। अब अगर यूनिवर्सिटी ने 1973-1977 के बीच अपने ‘वास्‍तविक स्‍टूडेंट्स’ के लिए पैटर्न नहीं बदला है तो मुझे आप नेताओं की दलील नहीं समझ आती। पीएम की मार्कशीट में 1977 जबकि डिग्री में 1978 इसलिए लिखा हो सकता है क्‍योंकि वे 1977 में एक एग्‍जाम में फेल हो गए हों, जिसके बाद उन्‍हें 1978 में दोबारा से अपीयर होना पड़ा होगा। इस‍ वजह से डिग्री में उस साल का जिक्र है। दुर्भाग्‍यपूर्ण है कि मेरा मामला भी कुछ ऐसा ही है। नीचे उसका प्रमाण है।

(Source: Devendra Bhandari photo)

यह सिस्‍टम शुरुआती 70 के दशक में भी था। यह समझना मुश्‍क‍िल है कि आप का नेतृत्‍व करने वाला एक पूर्व नौकरशाह इस तरह की अज्ञानतापूर्ण बातें कैसे कर सकता है। न तो मैं मोदी भक्‍त हूं और न ही उनका कोई फैन। मैं इस बात की पुष्‍ट‍ि भी नहीं करता कि उनके दस्‍तावेज असली हैं या नहीं। हालांकि, एक राजनीतिक पार्टी जिस तरह की नादानी दिखा रही है, उस पर आंखें मूंदे बैठना भी मुमकिन नहीं है।

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