चालू वित्तवर्ष के आम बजट में सरकार ने लघु परमाणु संयंत्रों के लिए बड़े बजट का प्रावधान किया है। पहली बार निजी कंपनियों को समूचे देश में लघु परमाणु संयंत्र लगाने का अवसर दिया जाएगा। साथ ही माड्यूलर (प्रतिरूपक) रिएक्टर के आधुनिकीकरण के लिए शोध और विकास पर भी खर्च किया जाएगा। इसका उद्देश्य देश में स्वच्छ और वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देना है। साथ ही, प्रधानमंत्री सूर्यघर निशुल्क बिजली योजना के तहत छतों पर लगाए जा रहे सौर संयंत्र पर भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली छूट जारी रहेगी। अभी तक इस योजना के तहत 1.28 करोड़ परिवार पंजीयन करा चुके हैं और चौदह लाख आवेदन विचाराधीन हैं। छोटे माड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) उन्नत परमाणु संयंत्र माने जाते हैं। इनकी बिजली उत्पादन क्षमता 300 मेगावाट प्रति इकाई है, जो पारंपरिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की बिजली उत्पादन क्षमता की तुलना में एक तिहाई है।

विकसित भारत के लिए ऊर्जा की उपलब्धता बड़ी जरूरत है

विकसित भारत के लिए ऊर्जा की उपलब्धता बड़ी जरूरत है। इसलिए सरकार सिर्फ पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना चाहती। सौर और पवन ऊर्जा पर सरकार पहले ही काफी कुछ कर चुकी है, अब ध्यान परमाणु ऊर्जा पर है। इसमें संभावनाएं अधिक हैं। आम बजट में ऊर्जा बदलाव के संबंध में एक नीतिगत दस्तावेज तैयार करने की बात भी कही गई है। इससे यह तय होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में किस तरह पारंपरिक ऊर्जा की जगह धीरे-धीरे अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का महत्त्व बढ़ रहा है। इससे ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार, विकास और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का भी समाधान निकलेगा। इस परिप्रेक्ष्य में निकेल, कोबाल्ट, तांबा और लिथियम जैसी धातुओं के आयात पर शुल्क घटाने की भी घोषणा की गई है। इन उत्पादों का प्रयोग परमाणु और सौर ऊर्जा के साथ दूसरे ऊर्जा उत्सर्जन उपायों में भी होता है। आयात सस्ता होने से भारत में इनका निर्माण करने में आसानी होगी।

निजी निवेश से परमाणु ऊर्जा बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं

भारत में जहां अर्से से अटकी परमाणु बिजली परियोजनाओं में उत्पादन शुरू हो रहा है, वहीं निजी निवेश से परमाणु ऊर्जा बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं। प्रधानमंत्री ने गुजरात के सूरत जिले के तापी काकरापार में साढ़े बाईस हजार करोड़ रुपए की लागत से बने 700-700 मेगावाट बिजली उत्पादन के दो परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को फरवरी में राष्ट्र को समर्पित किया। ये देश के पहले स्वदेशी परमाणु ऊर्जा संयंत्र हैं। ये संयंत्र प्रतिवर्ष लगभग 10.4 अरब यूनिट स्वच्छ बिजली का उत्पादन करेंगे, जिससे गुजरात के साथ अन्य प्रांतों को भी मदद मिलेगी। ये संयंत्र शून्य कार्बन उत्सर्जन की दिशा में आगे बढ़ने की दृष्टि से मील का पत्थर साबित होंगे।

दूसरी तरफ, भारत सरकार ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों से 26 अरब डालर का निवेश आमंत्रित किया है। यह ऐसे स्रोतों से बिजली बनाने की मात्रा बढ़ाने की दिशा में उठाया गया कदम है, जो कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन नहीं करते हैं। फिलहाल भारत में परमाणु ऊर्जा कुल बिजली उत्पादन का दो फीसद भी नहीं है। अगर यह निवेश बढ़ता है, तो 2030 तक अपनी स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का 50 फीसद गैर-जीवाश्म ईंधन के उपयोग से प्राप्त लक्ष्य को हासिल करने में सहायता मिलेगी। वर्तमान में यह 42 फीसद है।

इस सिलसिले में परमाणु ऊर्जा विभाग और न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआइएल) ने इस निवेश के बाबत बीते वर्ष निजी कंपनियों के साथ कई दौर की बातचीत की। सरकार को इस निवेश से 2040 तक 11000 मेगावाट नई परमाणु बिजली उत्पादन क्षमता की उम्मीद है। फिलहाल, एनपीसीआइएल के 7500 मेगावाट की क्षमता वाले परमाणु ऊर्जा संयंत्र काम कर रहे हैं। इसमें और बढ़ोतरी के लिए 1300 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, जो निवेश से संभव हो सकेगा। निजी कंपनियों के साथ परमाणु ऊर्जा विभाग की शर्तों में परमाणु संयंत्रों के उपकरणों के साथ भूमि और पानी के प्रबंधन पर होने वाला खर्च कंपनियां उठाएंगी।

हालांकि संयंत्र के निर्माण, संचालन और उसमें प्रयुक्त होने वाले ईंधन का अधिकार एनपीसीआइएल के पास रहेगा। निजी कंपनी इन संयंत्रों में बनने वाली बिजली बेचकर राजस्व प्राप्त करेगी और एनपीसीआइएल परियोजना के संचालन का शुल्क वसूल करेगा। इससे सरकार और कंपनी दोनों को लाभ होगा। साथ ही, बड़ी मात्रा में नए कुशल और अकुशल रोजगार का सृजन होगा। परमाणु ऊर्जा परियोजना के विकास का यह ‘हाईब्रिड’ नमूना परमाणु क्षमता स्थापित करने में भविष्य में अत्यंत मददगार साबित होगा।

फिलहाल, हमारे यहां दो तरह के परमाणु रिएक्टर हैं। एक, गर्म पानी का, जिसे ‘बाायलिंग वाटर रिएक्टर’ और दूसरे को ‘प्रेशराइज्ड हैवी वाटर’ रिएक्टर कहा जाता है। इनमें प्राकृतिक यूरेनियम का प्रयोग होता है। यूरेनियम के अणुओं के विखंडन के लिए, पहले रिएक्टर में अति उच्च दबाव और तापमान में पानी को खौलाया जाता है, जिससे अणु विखंडित होकर ऊर्जा में परिवर्तित होते हैं। इसे टरबाइन ब्लेड में चलाने की प्रक्रिया के साथ ऊर्जा उत्सर्जित होने लगती है। दूसरे रिएक्टर में ऊर्जा पानी के भारी दबाव से बनती है और इसमें बहुत अधिक पानी की जरूरत होती है। इसीलिए ये संयंत्र समुद्री तटों पर लगाए जाते हैं। गुजरात के तापी काकरापार परमाणु संयंत्र में बिजली पानी के उच्च दबाव से बनेगी।

हालांकि अभी तक परमाणु ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के लक्ष्य को हासिल करने में सरकार विफल रही है। इसका एक प्रमुख कारण परमाणु ईंधन आपूर्ति की कमी है। इसके लिए 2010 में ‘रीप्रोसेस्ड’ परमाणु ईंधन की आपूर्ति के लिए अमेरिका से करार किया गया। साथ ही एक बड़ी समस्या परमाणु ऊर्जा उत्पादन के दौरान होने वाली दुर्घटना पर कड़े मुआवजा कानूनों का होना है। यही वजह है कि परमाणु संयंत्रों से ऊर्जा उत्पादन के काम वर्षों से अधर में लटके हुए थे, जो अब काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र में बिजली उत्पादन के साथ गति पकड़ेंगे।

दरअसल, दुर्घटना मुआवजे के सिलसिले में अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों का कहना था कि भारत वैश्विक नियमों का पालन करे। इन नियमों के तहत दुर्घटना की प्राथमिक जिम्मेदारी संचालित कंपनी की होती है। इस क्रम में भारत की दुविधा यह थी कि हमारे यहां सभी परमाणु संयंत्रों का संचालन सरकारी कंपनी ‘भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम’ करती है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने का मतलब था, दुर्घटना की स्थिति में सरकार द्वारा मुआवजे की अदायगी झेलने की मजबूरी। उत्तरदायित्व कानून में एक अन्य विवादास्पद शर्त दुर्घटना के समय असीमित जिम्मेदारी की भी जुड़ी थी।

इस शर्त की वजह से अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा कंपनियों को बीमाकर्ता कंपनी तलाशने में मुश्किलें पेश आ रही थीं, क्योंकि कोई भी बीमा कंपनी परमाणु संयंत्रों से जुड़ी दुर्घटना का संपूर्ण बीमा भार झेलने का जोखिम नहीं उठाती। इसलिए कि परमाणु दुर्घनाएं इतनी बड़ी और व्यापक हो सकती हैं कि कोई एक-दो बीमा कंपनियां इसकी भरपाई कर ही नहीं सकतीं। रूस के चेर्नोबिल और जापान के फुकुशिमा में घटी परमाणु दुर्घटनाएं इसका उदाहरण हैं। इस नजरिए से लघु परमाणु ऊर्जा संयंत्र भविष्य में उपयोगी साबित हो सकते हैं।