आज के समय में अगर आपको कोई सामान मंगाना होता है, तो आपके घर 10 से 15 मिनट के अंदर ऑनलाइन पहुंच जाता है। लोगों की जिंदगी काफी आसान हो गई है और ब्लिंकिट, स्विगी, जोमैटो, जेप्टो जैसे तमाम ऐप हैं, जहां पर आप जरूरत की चीज कुछ मिनट में ही मंगा सकते हैं। लेकिन आपको एक सच्चाई जानकर हैरानी होगी कि यहां काम करने वाले डिलीवरी एजेंट कई घंटे की मेहनत के बाद भी कुछ सौ रुपये ही कमा पाते हैं।
डिलीवरी ऐप सेक्टर में शोषण वाली लेबर प्रैक्टिस को उजागर करते हुए आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया। इसमें दिखाया गया है कि एक ब्लिंकिट डिलीवरी एजेंट 15 घंटे की ड्यूटी के लिए सिर्फ़ 763 रुपये कमा रहा है। राघव चड्ढा ने X पर लिखा, “यह ‘गिग इकॉनमी की सफलता की कहानी’ नहीं है। यह ऐप्स और एल्गोरिदम के पीछे छिपा हुआ सिस्टमैटिक शोषण है।” राघव चड्ढा ने बताया कि उन्होंने इस मुद्दे को संसद में उठाया है।
क्या है मामला?
इस ट्वीट में एक स्क्रीनशॉट भी था जिसमें डिलीवरी एजेंट की 14 घंटे और 39 मिनट में 28 डिलीवरी से हुई कमाई का ब्यौरा था। एजेंट ने ऑर्डर से 690.57 रुपये और इंसेंटिव के तौर पर 72 रुपये कमाए। राघव चड्ढा ने कहा, “कम सैलरी, मुश्किल टारगेट, नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं, गिग वर्कर्स के लिए कोई इज़्जत नहीं। यह ब्लिंकिट मामला सिर्फ़ इस बात की पुष्टि करता है कि लाखों लोग हर दिन यही झेलते हैं।”
राघव चड्ढा ने संसद में उठाया था मुद्दा
राघव चड्ढा ने कहा कि भारत कम सैलरी पाने वाले, ज़्यादा काम करने वाले इंसानों के कंधों पर डिजिटल इकॉनमी नहीं बना सकता। उन्होंने कहा, “गिग वर्कर्स के लिए सही सैलरी, इंसानियत वाले काम के घंटे और सोशल सिक्योरिटी ज़रूरी हैं। इन पर कोई समझौता नहीं हो सकता।”
लेबर कानूनों को सख्त करने की उठने लगी मांग
एक X यूज़र गौरव ठाकुर ने कहा, “अगर आप पेट्रोल का खर्च, खाने-पीने का खर्च, बाइक के रखरखाव का खर्च हटा दें, तो असल में उसकी कमाई 200 रुपये से ज़्यादा नहीं होगी। लंबे समय में उसकी सेहत खराब होगी। मज़दूरों का शोषण अपने चरम पर है। लेबर कानून सिर्फ़ कागज़ों पर हैं और वे भी सिर्फ़ अमीर लोगों के पक्ष में हैं।” एक और यूज़र ने कहा, “इसे कानून बनाओ, जैसे USA और कनाडा में होता है। आपको हर दिन कम से कम न्यूनतम मज़दूरी मिलनी चाहिए। इसमें क्या समझदारी है?”
