बीजेपी के राज्यसभा सांसद भीम सिंह ने संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) और समाजवादी (सोशलिस्ट) शब्दों को हटाने की मांग की है।

भीम सिंह ने इस संबंध में राज्यसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल The Constitution (Amendment) Bill, 2025 (amendment of the Preamble) पेश किया है। भीम सिंह का कहना है कि ये शब्द भ्रम पैदा करते हैं और ये मूल संविधान का हिस्सा नहीं हैं।

बीजेपी सांसद का यह भी कहना है कि संविधान और समाजवादी शब्दों को अलोकतांत्रिक ढंग से आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़ दिया गया था।

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भीम सिंह ने न्यूज एजेंसी PTI से कहा, ‘भारत के मूल संविधान में यह दोनों शब्द नहीं थे। इंदिरा गांधी ने 1976 में आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान में यह दोनों शब्द जोड़े थे। उस समय संसद में कोई बहस नहीं हुई थी।’

भीम सिंह ने कहा कि उस दौरान विपक्ष के सभी नेता- अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस जेल में थे। लोकतंत्र की हत्या हो रही थी और उस हालत में इंदिरा गांधी ने इन दोनों शब्दों को संविधान में जोड़ दिया था।

डॉक्टर बीआर अंबेडकर का भी दिया हवाला

बीजेपी सांसद का कहना है कि संविधान को अपने मूल स्वरूप में ही रहना चाहिए। भीम सिंह ने इस मामले में डॉक्टर बीआर अंबेडकर का भी हवाला दिया है।

भीम सिंह ने कहा, ‘संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ बीआर अंबेडकर ने कहा था कि भारत के संविधान का ढांचा ऐसा है कि यह देश को खुद ही धर्मनिरपेक्ष देश बना देगा। अंबेडकर का यह भी कहना था कि इस शब्द को जोड़ने की जरूरत नहीं है।’

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भीम सिंह के मुताबिक, संविधान सभा में धर्मनिरपेक्ष के अलावा समाजवादी शब्द को लेकर भी बहस हुई थी। बीजेपी सांसद ने आरोप लगाया है कि इन दोनों ही शब्दों को तुष्टिकरण की राजनीति के लिए संविधान में शामिल किया गया है।

भीम सिंह ने कहा, ‘समाजवादी शब्द तत्कालीन सोवियत संघ को खुश करने के लिए संविधान में जोड़ा गया था और धर्मनिरपेक्ष शब्द मुसलमानों का तुष्टिकरण करने के लिए। ये शब्द गैर जरूरी हैं।’

भाजपा सांसद ने सवाल उठाया कि क्या 1976 से पहले भारत धर्मनिरपेक्ष था या नहीं? क्या नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री या इंदिरा गांधी सांप्रदायिक सरकार चला रहे थे?

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