मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने  मंगलवार को कहा कि कानूनी ढांचे के बिना लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना संभव नहीं है क्योंकि विधानसभाओं के कार्यकाल में विस्तार या कटौती करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए भाजपा के ताजा प्रयास के एक दिन बाद मुख्य चुनाव आयुक्त (सी ई सी) ने यह बात कही। कानूनी ढांचे की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए उन्होंने लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव निकट भविष्य में एक साथ कराए जाने की संभावना से वस्तुत: इनकार किया।  इस सवाल पर कि क्या लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव निकट भविष्य में एक साथ कराए जा सकते हैं, रावत ने कहा, ‘‘यदि कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल में विस्तार या कटौती की आवश्यकता होगी तो इसके लिए एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी… वीवीपीएटी की 100 प्रतिशत उपलब्ध्ता जैसे प्रबंध करने में कठिनाई होगी।’’ उन्होंने कहा कि ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के मुद्दे पर निर्वाचन आयोग ने 2015 में खुद ही इनपुट और सुझाव दिए थे…अतिरिक्त पुलिस बल, चुनाव कर्मियों की भी आवश्यकता होगी।

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि जब भी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल खत्म होगा, निर्वाचन आयोग चुनाव कराने की अपनी जिम्मेदारी निभाना जारी रखेगा।
निर्वाचन आयोग 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नयी ई वी एम और वी वी पी ए टी खरीदने की प्रक्रिया में है। रावत ने पूर्व में कहा था कि सभी आवश्यक ई वी एम-13.95 लाख मतदान यूनिट और 9 .3 लाख नियंत्रण यूनिट-30 सितंबर तक उपलब्ध हो जाएंगी। नवंबर खत्म होने से पहले 16 .15 वी वी पी ए टी भी उपलब्ध हो जाएंगी।

मशीनों के खराब होने और उस समय उनकी जगह दूसरी मशीन लगाने के मद्देनजर कुछ अतिरिक्त वी वी पी ए टी भी खरीदी जा रही हैं। यदि 2019 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो लगभग 24 लाख ई वी एम की जरूरत होगी। यह संख्या किसी संसदीय चुनाव के लिए आवश्यक ई वी एम की संख्या से दुगुनी है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कल विधि आयोग को पत्र लिखकर लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का समर्थन किया था।