बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने मोदी सरकार द्वारा तैयार नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (New Education Policy 2020) को खिचड़ी बताया है। स्वामी का मानना है कि इनोवेशन की दुनिया में हम चीन से पिछड़ रहे हैं। बकौल स्वामी, मोदी सरकार में तो चीन और हमारे बीच का अंतर और बढ़ गया। सुब्रमण्यम स्वामी ने यह बातें द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के ‘थिंकएडु कॉन्क्लेव 2021’ कार्यक्रम में पत्रकार कावेरी बमजई के साथ भारतीय शिक्षा प्रणाली पर चर्चा के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में थॉमस बबिंगटन मैकाले द्वारा 1835 में तैयार ‘मिनट’ के बाद से कुछ खास बदलाव नहीं आया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या NEP भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक बदलाव की उम्मीद को जगाता है, सुब्रमण्यम स्वामी ने का कि ये सब खिचड़ी की तरह हैं – इसमें से थोड़ा सा और उसमें थोड़ा सा। उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि जब आप किसी क्लास में जाते हैं, तो क्या आपका टीचर आपको सोचने और विचार करने पर मजबूर करता है? यहां तो टीचर जो कहता है उसे याद कर लिया जाता है, परीक्षा में उसे वैसे ही लिख दिया जाता है तो नंबर मिल जाते हैं। नई सोच और शोध के लिए अभी भी जगह नहीं है।
चीन की शिक्षा नीति पर बात करते हुए स्वामी ने कहा कि पिछले कुछ सालों ने चीन ने ‘नया’ करने की होड़ में जबरदस्त काम किया है। जबकि भारत इस मामले में पिछड़ रहा है। क्योंकि भारतीय इनोवेशन की तरफ खुद को बढ़ा ही नहीं रहे हैं। चीन के लोगों ने हमारे कुछ संस्कृत सिद्धांतों को अपनाया, उन्होंने फिजिक्स में रिसर्च के लिए स्वायत्तता दी। जिसका परिणाम यह है कि चीन हमसे बहुत आगे निकल गया। 2005 से पहले तक हम उनसे आगे थे लेकिन इसके बाद हम पिछड़ने लगे औऱ मोदी सरकार में चीन और हमारे बीच का अंतर और बढ़ गय़ा।
शिक्षा प्रणाली पर बदलाव पर बात करते समय स्वामी दो बातों पर जोर देते हुए कहते हैं। मेरा मानना है कि एक अच्छी नौकरी पाने के लिए बैचलर या मास्टर डिग्री का होना जरूरी नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि हमारे देश में 75 फीसदी लोग बैचलर की डिग्री पाने के लिए कॉलेज जाते हैं। जबकि USA में ऐसा सिर्फ 35 फीसदी युवा करते है, चीन में भी 45 प्रतिशत युवाओं की यही सोच है। राज्यसभा सांसद ने कहा कि इसका यह मतलब नहीं है कि चीन के लोग कम पढ़े लिखे हैं। वह नौकरी के लिए टेक्निकल चीजों की ट्रेनिंग पर ज्यादा ध्यान देते हैं। उन्होंने कहा कि यहां तो मैकेनिक बनने के लिए कम से कम बीएस पास होना जरूरी है।
स्वामी ने कहा अच्छी शिक्षा प्रणाली के लिए टीचरों को अच्छी सैलेरी देने की भी जरूरत है। दिल्ली यूनिवर्सिटी और जेएनयू जैसे संस्थानों में अच्छी सैलेरी मिलती होगी लेकिन अगर आप हमारे देश के प्राइमरी शिक्षकों की सैलेरी की तुलना अमेरिका और चीन के टीचरों से करेंगे तो अंतर को समझ पाएंगे। किसी भी बच्चे में सोचने की प्रक्रिया स्कूल में शुरू होती है, कॉलेज जाने के बाद तो सीधे पेपर लिखने पर जोर होता है।
सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बदलाव करने के बजाय उन्हीं चीजों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली में वही किताबें है जिसमें झूठ और बकवास लिखा है। जिस अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल हम मजबूरी में कर रहे हैं, वह इस झूठ को और आसान बना रहा है। उन्होंने कहा कि हम नई नीति में संस्कृत को पुनर्जन्म दे सकते थे जैसा कि यहूदियों ने हिब्रू के साथ किया है।
उन्होंने कहा कि मैकाले के समय के बाद से हमारी शिक्षा प्रणाली में बहुत बदलाव नहीं आए हैं। अपने उद्देश्यों पर बात करते हुए वह साफ कहते हैं कि मैं लोगों को ऐसा बनाना चाहता हूं कि वह खून से भारतीय लगें और रंग से भी। इसका यह मतलब नहीं है कि वह अंग्रेजी न बोले, संस्कृत में बात करने लगे, उनको ब्रिटिश चीजें भी आनी चाहिए लेकिन भारतीय संस्कृति का भी ज्ञान होना चाहिए।