देशभर में भारी बारिश के कारण कई फसलों को नुकसान होने की संभावना है। खासकर कर्नाटक में अगस्त-सितंबर के दौरान हुई गैर-सीजनल बारिश से लगभग 10 फीसदी तक दाल की फसल खराब होने की आशंका है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इस बार दाल के दामों को नियंत्रित ही रखना चाहती है, ताकि पांच साल पहले बिहार चुनाव की तरह इस बार भी ऊंचे दाम पार्टी को नुकसान न पहुंचा दें।

पिछली बार चुनाव में दालों का क्या असर?: बिहार में 2015 के चुनाव में भाजपा का सामना राजद-जदयू गठबंधन से था। इस दौरान अरहर और तुअर दाल के दाम सरकार के नियंत्रण से बाहर हो कर आसमान छू रहे थे। देशभर में उस वक्त अक्टूबर के समय इस दाल की कीमत 180-200 रुपए थी। यह बिहार चुनाव के ठीक पहले का समय था। माना जाता है कि दाल की महंगी कीमतों की वजह से राज्य में भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

दाल की कीमतों में इस बार क्या बदलाव?: देशभर में इस बार मानसून सीजन में अच्छी बारिश हुई। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में इस बार मानसून खत्म होने के बाद भी बारिश जारी है। खासकर कर्नाटक के उन क्षेत्रों में जहां अरहर की पैदावार सबसे ज्यादा होती है। इन क्षेत्रों में सामान्य बारिश के बाद नवंबर के मध्य में दालों का आना शुरू हो जाता है। हालांकि, इस बार पूर्वी कर्नाटक में अगस्त-सितंबर में हुई बारिश से 10 फीसदी तक फसलों के नुकसान का अंदेशा है, जिससे दाल के मार्केट में आने में समय लग सकता है।

इसके चलते महाराष्ट्र के लातूर में अरहर दालों की कीमत पिछले महीने 5800 रुपए से बढ़कर 6700 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गई है, जो कि सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)- 6000 रुपए से ज्यादा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इस वक्त अरहर की दाल 95-105 रुपए के बीच बिक रही है।

सरकार नहीं करने दे रही आयात, इसलिए बढ़ रही अरहर की कीमतें: लातूर के एक दाल मिल संचालक नितिन कलंतरी ने बताया कि दालों की कीमतों में यह उछाल कर्नाटक में फसलों को हुए नुकसान और उनके देर से आने की वजह से आया है। इसके अलावा केंद्र सरकार भी मिलों को कच्ची तुअर दाल का आयात नहीं करने दे रही है, वह भी तब जब विदेश व्यापार के महानिदेशक की ओर से 21 अप्रैल के आदेश में कहा गया था कि 2020-21 में 4 लाख टन दाल आयात की जा सकेगी।

दालों के दाम बढ़ने पर कैबिनेट सचिव ने ली बैठक: दालों के बढ़ते दामों को देखते हुए पिछले हफ्ते ही कैबिनेट सचिव ने देश में दालों की उपलब्धता पर समीक्षा बैठक की थी। सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार इस बार अक्टूबर-नवंबर 2015 की स्थिति नहीं दोहराना चाहती, खासकर जब इस बार भी बिहार चुनाव सिर पर हैं। इसलिए वे अरहर की दाल को चुनावी मुद्दा नहीं बनाना चाहते।

एक सूत्र ने बताया कि बिहार चुनाव से पहले सरकार चिंता में है, लेकिन वह दालों के दाम को एमएसपी के नीचे भी नहीं आने देना चाहती, क्योंकि इससे उन किसानों को झटका लगेगा, जो रबी सीजन में चना और मसूर की दालों की बुआई करने जा रहे हैं। एमसएपी काफी समय से ऊपर है और इससे हाल ही में पास हुए APMC सुधार विधेयक के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों को भी कम करने में मदद मिलेगी।