बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची का स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) चल रहा है। इसको लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है। वहीं अब बीजेपी की ही सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने चुनाव आयोग से इस प्रक्रिया के दायरे पर स्पष्टता की मांग की है। इसके अलावा TDP ने कहा है कि यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि प्रक्रिया नागरिकता वेरिफिकेशन से संबंधित नहीं है।
SIR का दायरा स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए- TDP
मंगलवार को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को लिखे एक पत्र में पार्टी ने कहा है, “SIR का दायरा स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए और मतदाता सूची में सुधार और समावेशन तक सीमित होना चाहिए। यह स्पष्ट रूप से सूचित किया जाना चाहिए कि यह प्रक्रिया नागरिकता वेरिफिकेशन से संबंधित नहीं है और किसी भी क्षेत्रीय निर्देश में यह अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देना चाहिए।” इस पत्र को टीडीपी संसदीय दल के नेता लवू श्री कृष्ण देवरायलु ने लिखा था और इस पर पार्टी के पांच अन्य नेताओं के हस्ताक्षर थे।
चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों से चुनावी प्रक्रियाओं को मज़बूत करने के लिए सुझाव लेने की चल रही प्रक्रिया के तहत टीडीपी नेताओं द्वारा चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद यह पत्र चुनाव आयोग को सौंपा गया। पत्र के बारे में पूछे जाने पर टीडीपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता ज्योत्सना तिरुनागरी ने कहा कि बिहार में चल रही SIR और पार्टी के सुझावों के बीच कोई संबंध नहीं है। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमने अभी-अभी चुनाव आयोग से मुलाकात की और जैसे ही हमसे सुझाव मांगे गए, हमने चुनावी प्रक्रिया पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया। हम एक लोकतांत्रिक पार्टी हैं और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता चाहते हैं।”
टीडीपी के ये सुझाव चुनाव आयोग द्वारा 5 जुलाई को सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों (CEO) को लिखे गए पत्र के बाद आए हैं, जिसमें उन्हें बिहार जैसी प्रक्रिया की तैयारी शुरू करने का निर्देश दिया गया था। टीडीपी के पत्र में कहा गया है कि मतदाता सूची में ऐसा कोई भी संशोधन आदर्श रूप से किसी भी बड़े चुनाव के छह महीने के भीतर नहीं होना चाहिए। पत्र में कहा गया है, “मतदाताओं का विश्वास और प्रशासनिक तैयारी सुनिश्चित करने के लिए SIR प्रक्रिया को पर्याप्त समय के साथ संचालित किया जाना चाहिए।”
जानें क्या है TDP की मांग
पार्टी ने यह भी कहा है कि मतदाता सूची में शामिल मतदाताओं को अपनी पात्रता पुनः स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए जब तक कि विशिष्ट और वेरिफिकेशन के कारण दर्ज न किए जाएं। इसके अलावा विसंगतियों की पहचान के लिए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के तहत तीसरे पक्ष द्वारा ऑडिट कराने की भी मांग की गई है।
