कलकत्ता हाई कोर्ट ने शुक्रवार को ममता बनर्जी सरकार को झटका देते हुए पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोगटुई गांव में हुई हत्याओं की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपने का आदेश दे दिया। यहां तृणमूल कांग्रेस के एक पंचायत नेता भादू शेख की हत्या के कुछ घंटे बाद ही हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें आठ लोगों को जिंदा जला दिया गया था। बीरभूम हिंसा मामले का कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। वहीं, अदालत ने इस मामले में सीबीआई को 7 अप्रैल को प्रारंभिक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

एनआईए के विपरीत, सीबीआई राज्य में किसी मामले का स्वत: संज्ञान नहीं ले सकती है, चाहे वह भ्रष्टाचार के मामले में हो जिसमें केंद्र के सरकारी अधिकारी और पीएसयू कर्मचारी शामिल हों, या फिर हिंसक अपराध की घटना हो। चाहे राज्य सरकार में भ्रष्टाचार हो या अपराध की घटना, इसकी सीबीआई से जांच के लिए राज्य को अनुरोध करना होगा, जिसपर केंद्र की तरफ से सहमति दी जाएगी।

यदि राज्य सरकार द्वारा जांच के लिए ऐसा कोई सिफारिश नहीं की जाती है तो उस स्थिति में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर सीबीआई मामले को अपने हाथ में ले सकती है।

क्या सीबीआई किसी मामले की जांच से इनकार कर सकती है?

राज्य द्वारा सीबीआई जांच का अनुरोध किए जाने के बाद केंद्र की तरफ से जांच एजेंसी की राय ली जाती है। अगर सीबीआई को लगता है कि मामले में समय और ऊर्जा खर्च करना उसके लिए उचित नहीं है, तो एजेंसी इसकी जांच अपने हाथ में लेने से इनकार कर सकती है। पहले भी, सीबीआई ने पर्याप्त कर्मियों की कमी का हवाला देते हुए मामलों को लेने से इनकार किया है। 2015 में जांच एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह व्यापमं घोटाले के और मामले नहीं ले सकती क्योंकि उसके पास इनकी जांच के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं।

सीबीआई के एक पूर्व अधिकारी के अनुसार, 10 में से 9 मामलों में केंद्र की तरफ से किसी मामले की जांच की सिफारिश को स्वीकार या खारिज करने से पहले एजेंसी की राय ली जाती है।

सीबीआई पर इस वक्त कितना बोझ है?

केंद्रीय सतर्कता आयोग की ताजा वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई ने 2019 में 608 केस दर्ज किए जबकि 2020 में 589 एफआईआर दर्ज किए।2020 में लोक सेवकों द्वारा रिश्वत की मांग से संबंधित 86 मामले और आय से अधिक संपत्ति के कब्जे के 30 मामले दर्ज किए गए थे। सीबीआई में 1,300 से अधिक रिक्तियां हैं। 31 दिसंबर 2020 तक, 7,273 की स्वीकृत संख्या की तुलना में केवल 5,899 अधिकारी पद पर थे और 1,374 पद खाली पड़े थे।

कितने मामले लंबित?

2020 के आखिर में, सीबीआई के पास 1,117 मामलों (एफआईआर और पीई दोनों) की जांच लंबित थी। 2019 में यह संख्या 1,239 थी। 2020 के दौरान 693 एफआईआर और 105 पीई में जांच को अंतिम रूप दिया गया। जबकि, 31 दिसंबर, 2020 तक एक साल से अधिक समय से 637 मामले सीबीआई के पास लंबित थे।

राज्यों की आम सहमति कितनी जरूरी?

2015 से, नौ राज्यों महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल, मिजोरम और मेघालय ने सीबीआई से आम सहमति वापस ले ली है। विपक्ष दलों द्वारा शासित राज्यों ने आरोप लगाया है कि सीबीआई विपक्ष के नेताओं को गलत तरीके से निशाना बना रही है। आम सहमति वापस लेने का मतलब है कि इन राज्यों में किसी भी मामले की जांच के लिए सीबीआई को राज्य सरकार से पूर्व अनुमति लेनी होगी। सीबीआई का दावा है कि इसने उनके हाथ बांध दिए हैं।