Bihar Voter List Revision: चुनावी राज्य बिहार में घमासान इस बात को लेकर मचा हुआ है कि चुनाव आयोग वहां पर वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन क्यों करा रहा है? इसे लेकर विपक्षी दलों के बड़े नेताओं ने बुधवार को चुनाव आयोग से मुलाकात की लेकिन वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन को लेकर जितना परेशान विपक्ष है, कुछ हद तक NDA में शामिल दल भी इसे लेकर चिंता में हैं।

विपक्ष ने सवाल उठाया है कि वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन का जो काम पिछले 22 सालों में नहीं हुआ उसे अब क्यों किया जा रहा है? विपक्ष का कहना है कि जिस तरह के डॉक्यूमेंट्स लोगों से मांगे गए हैं, अब जब चुनाव में कुछ ही महीने का वक्त है, ऐसे में लोगों को उन डॉक्यूमेंट्स को देने में मुश्किल होगी और इससे बिहार में 2 से 3 करोड़ वोटर वोट नहीं डाल पाएंगे।

कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि क्या 2003 में वोटर लिस्ट के अंतिम रिवीजन के बाद से कराए गए सभी चुनाव गलत थे? इसी तरह तेजस्वी यादव ने कहा है कि ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग बीजेपी का आयोग बन गया है।

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ऐसा नहीं है कि इसे लेकर चिंता केवल विपक्ष में है। एनडीए के कुछ सहयोगी दल भी चुनाव आयोग के फैसले को लेकर दबी जुबान में आवाज उठा रहे हैं। बीजेपी, जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के कई नेताओं ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में इसे लेकर संदेह जताया कि क्या इतने कम समय में चुनाव आयोग यह काम पूरा कर पाएगा? बताना होगा कि वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन का यह काम 25 जून को शुरू हुआ था और इसे 25 जुलाई तक पूरा किया जाना है।

इन नेताओं ने बातचीत के दौरान राज्य में साक्षरता, गरीबी और प्रशासनिक इंतजामों को लेकर बात की और कहा कि कई लोगों विशेषकर गरीबों के पास जन्मतिथि और जन्म स्थान के प्रमाण के रूप में चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए 11 डॉक्यूमेंट्स में से कोई भी नहीं होगा।

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लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के एक नेता का कहना है कि क्योंकि वोटर लिस्ट में नाम शामिल कराने से वोटर को कोई सरकारी फायदा मिलता नहीं है, इसलिए बिहार के मतदाता भी इसके लिए अपनी ओर से कोई कोशिश नहीं करेंगे और उन्हें वोटर लिस्ट में शामिल करने की जिम्मेदारी राजनीतिक दलों को ही निभानी पड़ेगी।

क्या हैं चुनाव आयोग के निर्देश?

चुनाव आयोग ने अपने निर्देशों में कहा है कि हर मतदाता को व्यक्तिगत गणना फॉर्म जमा करना जरूरी है। 1987 के बाद जन्मे और 1 जनवरी 2003 के बाद मतदाता सूची में शामिल होने वाले लोगों को बर्थ सर्टिफिकेट, पासपोर्ट या किसी एजुकेशनल सर्टिफिकेट के जरिए अपनी नागरिकता का प्रमाण देना होगा।

चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के लिए जन्म तिथि और जन्म स्थान का प्रमाण देने के लिए जुलाई 1987 की कट ऑफ तिथि निर्धारित की है। भारत के रजिस्ट्रार जनरल के आंकड़ों से पता चलता है कि 2000 में राज्य में केवल 1.19 लाख जन्म पंजीकृत हुए थे, जो उस साल बिहार में अनुमानित हुए कुल जन्म का मात्र 3.7% था जबकि तब राष्ट्रीय औसत 56% था।

2001 की जनगणना के अनुसार, 1 मार्च 2001 को बिहार की आबादी 8.3 करोड़ थी, जो 2011 में बढ़कर 10.4 करोड़ हो गई यानी राज्य की आबादी में 2.11 करोड़ की बढ़ोतरी हुई। लेकिन इस दौरान बिहार 73.91 लाख ही जन्म पंजीकरण हुए।

गरीबों को होगी मुश्किल- जेडीयू नेता

जेडीयू के एक नेता ने कहा कि यह प्रक्रिया गरीबों के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है। बहुत सारे लोगों के पास बर्थ सर्टिफिकेट या कास्ट सर्टिफिकेट जैसे दस्तावेज नहीं हैं और चुनाव आयोग के इस कदम से अति पिछड़ी जातियों पर बड़ा असर पड़ सकता है क्योंकि वे लोग गरीब और अशिक्षित हैं वे लोग ना तो दलित समुदाय की तरह संरक्षित हैं और ना ही यादव समुदाय जैसे राजनीतिक रूप से ताकतवर।

ऊंची जातियों के गरीबों पर पड़ेगा असर

बीजेपी के एक नेता ने इस बात को लेकर चिंता जताई कि राजनीतिक दलों की तमाम कोशिशों के बाद भी बिहार के असली वोटर वोट डालने से वंचित रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऊंची जातियों के गरीबों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है और संशोधित वोटर लिस्ट आने के बाद ही चीजें साफ होंगी। हालांकि बीजेपी के एक और नेता कहते हैं कि चुनाव आयोग का यह फैसला उन रिपोर्ट्स पर आधारित है जिनमें यह कहा गया है कि राज्य में बड़ी संख्या में फर्जी वोटर हैं और इनमें घुसपैठ भी शामिल है। उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग ने हमें भरोसा दिया है कि इस पूरी प्रक्रिया में बिहार का कोई भी वास्तविक मतदाता नहीं छूटेगा।

BLA की तैनाती का काम जोरों पर

इस मामले में चुनाव आयोग का कहना है कि उस पर आरोप लगाने से कुछ भी हासिल नहीं होगा और इसके बजाय राजनीतिक दलों को ज्यादा से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट (BLA) की नियुक्ति करनी चाहिए। इसे देखते हुए बिहार में तमाम राजनीतिक दलों ने सभी बूथों पर BLA को तैनात कर दिया है। जेडीयू के नेता ने कहा कि पार्टी सभी 243 सीटों में BLA को तैनात कर रही है।

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