बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण का दूसरा फेज एक सितंबर को खत्म हो रहा है। 7.24 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपने गणना फॉर्म जमा कर दिए हैं, लेकिन कई लोगों ने पहचान के प्रमाण के लिए चुनाव आयोग द्वारा अनिवार्य किए गए 11 डॉक्यूमेंट्स में से कोई भी अपलोड किए बिना ही ऐसा कर दिया। इलेक्शन कमीशन द्वारा लोगों को 1 सितंबर तक का वक्त दिए जाने के साथ अधिकारियों और वोटर्स दोनों के लिए अपने डॉक्यूमेंट्स व्यवस्थित करने के लिए समय की कमी हो रही है। लेकिन जमीनी लेवल पर, जिन लोगों ने अभी तक अपने डॉक्यूमेंट्स जमा नहीं किए हैं, उनमें से कुछ तो उलझन में हैं और कुछ अनजान हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 10 दिनों से बिहार के समस्तीपुर जिले के सरायंजन विधानसभा क्षेत्र के एक गांव में टीचर कुमार अपने स्कूल और फील्ड ड्यूटी के बीच आना-जाना कर रहे हैं। इलेक्शन कमीशन के वॉलटियर के तौर पर उनके पास लगभग 120 महिलाओं की लिस्ट है। कुमार की लिस्ट में शामिल 120 महिलाएं वे हैं जिनका नाम ड्राफ्ट रोल में तो है, लेकिन उन्होंने 11 डॉक्यूमेंट्स में से कोई भी अपलोड नहीं किया है।

11 डॉक्यूमेंट्स में से एक जमा करना होगा

चुनाव आयोग की अधिसूचना के अनुसार, जिन लोगों का नाम बिहार की 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं है, उन्हें गणना फॉर्म के अलावा डेट ऑफ बर्थ या जगह को साबित करने के लिए 11 डॉक्यूमेंट्स में से कोई एक डॉक्यूमेंट जमा करना होगा और 1 जुलाई 1987 के बाद जन्म लेने वालों को अपने माता-पिता का भी डॉक्यूमेंट जमा करना होगा।

इलेक्शन कमीशन ने बीएलओ की मदद करने और वोटर्स को जरूरी डॉक्यूमेंट्स हासिल करने में मदद करने के लिए 1 लाख वॉलटियर को तैनात किया है। कुमार की 120 लोगों की लिस्ट में प्रमिला देवी भी शामिल हैं। प्रमिला और उनके पति रामकुमार गिरि एक छोटे किसान हैं। दोनों ने 2024 के लोकसभा इलेक्शन में वोटिंग की थी। प्रमिला का नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं है, इसलिए उसे डॉक्यूमेंट पेश करने होंगे।

चुनाव आयोग ने मांगे हैं 11 डॉक्यूमेंट

प्रमिला ने कहा, “मेरे पास रेजिडेंशियल सर्टिफिकेट तो है, लेकिन मुझे नहीं पता कि अपने माता-पिता के डॉक्यूमेंट्स कैसे हासिल करूं। वे समस्तीपुर के सिंघिया ब्लॉक में रहते थे और कई साल पहले उनकी मृत्यु हो गई।” उसके एक जानकार ने बीएलओ को फोन किया। उसने उसे सुझाव दिया कि 2003 की वोटर लिस्ट का स्क्रीनशॉट ले लें, जिसमें उसके माता-पिता में से किसी एक का नाम हो।

प्रमिला सोचती है, “आपको यह कैसे मिला? अगर मुझे यह नहीं मिला तो क्या मुझे वोट देने की इजाजत नहीं मिलेगी।” एक तरफ को प्रमिला चिंतित है, वहीं सुबोध गिरी और उनकी पत्नी राधिया देवी जैसे भी कई लोग हैं जो इस बात से अनजान हैं कि उन्हें डॉक्यूमेंट पेश करने की जरूरत है, जबकि उनका ना ड्राफ्ट रोल में शामिल है।

सुबोध ने कहा, “हमने अपने आधार कार्ड और फोटो दे दी हैं। बस इतना ही काफी है। खैर, हमारा नाम ड्राफ्ट रोल में तो है।” जब सुबोध से सवाल किया गया कि क्या बीएलओ या किसी वालंटियर ने उनसे पहचान पत्र जमा करने के बारे में संपर्क किया था, तो वे कुछ समझ नहीं पाए। इंडियन एक्सप्रेस ने गांव के दो बीएलओ में से एक से संपर्क किया, जिन्होंने बताया कि गांव के तीन पोलिंग बूथ के लगभग 500 वोटर्स ने अभी तक अपने डॉक्यूमेंट जमा नहीं किए हैं। बीएलओ ने बताया कि उन्होंने वार्ड सदस्यों से आग्रह किया है कि वे उन लोगों की एक बैठक बुलाएं जिन्हें अपने डॉक्यूमेंट में मदद की जरूरत है।

कई लोग असमंजस में फंसे

फिर बीएलओ सुबोध और उसकी पत्नी से संपर्क करता है और उन्हें अपना डोमिसाइल सर्टिफिकेट बनवाने और 2003 की वोटर लिस्ट का स्क्रीनशॉट लेने को कहता है, जिसमें रधिया के माता-पिता में से किसी एक का नाम हो। रधिया कहती है, “ठीक है, अब हम काम पर लग जाते हैं।” गांव के रहने वाले प्रमोद कुमार राय भी सही डॉक्यूमेंट पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

उनका परिवार मूल रूप से समस्तीपुर के कोरबद्धा गांव का रहने वाला है, लेकिन राय बचपन से ही सरायरंजन में रह रहे हैं। उनकी पत्नी बेबी देवी और उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में वोट किया था, लेकिन अब दंपति को यह साबित करने के लिए डॉक्यूमेंट लाने को कहा गया है कि उनके माता-पिता 2003 में वोटर थे। ड्राइवर राय कहते हैं, “मैं यह जानने के लिए दो बार बीएलओ के पास गया कि क्या करना होगा। मेरी पत्नी को 2003 की लिस्ट में अपने पिता का नाम मिला, लेकिन मुझे अपना नहीं मिला। मैंने 2003 की लिस्ट जमा कर दी है, जिसमें मेरे पिता के भाई का नाम भी है। मुझे उम्मीद है कि यह काम करेगा।”

मुकेश कुमार वोटर लिस्ट में नाम आने से खुश

पटना के दीघा विधानसभा क्षेत्र के चिताकोहरा में ड्राइवर का काम करने वाले मुकेश कुमार वोटर लिस्ट में नाम आने से बहुत ही खुश हैं। जब उन्हें बताया गया कि उनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं है, तो उन्हें और डॉक्यूमेंट्स जमा करने होंगे, तो मुकेश असमंजस में पड़ गए। उन्होंने अपना आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया।

किसी भी वालंटियर या अधिकारी ने उनसे संपर्क नहीं किया और ना ही डॉक्यूमेंट्स में मदद की पेशकश की। फिर वह गांव के स्कूल में जाता है जहां बीएलओ ने एक अस्थायी ऑफिस बनाया है। वह बीएलओ से पूछता है, “क्या मेरे पिता की बैंक पासबुक काम करेगी?” जब उसे बताया गया कि उसके कोई भी डॉक्यूमेंट काम नहीं करते, तो वह घर लौट आया और बोला, ” देखते हैं मैं क्या कर सकता हूं।” मुकेश ने आखिर में डोमिसाइल सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया। वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन को लेकर बिहार के गांवों में परेशान हैं लोग