क्या बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में शामिल दल राजद छोड़ प्रशांत किशोर के साथ गठबंधन करेंगे? बिहार के सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है। इसकी वजह ये है कि बिहार में राजनीतिक हालात तेजी से बदलते दिख रहे हैं। राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने गुरुवार (20 फरवरी) को औपचारिक रुप से अपनी पहल ‘बात बिहार की’ शुरू कर दी है।

गुरुवार को ही दिल्ली में महागठबंधन में शामिल रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतनराम मांझी, बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश साहनी ने प्रशांत किशोर के साथ बैठक की है। चूंकि बैठक में कोई राजद नेता मौजूद नहीं था, इसलिए इसे आरजेडी पर दबाव की राजनीति के रूप में या गठबंधन माइनस आरजेडी के लिए एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

रालोसपा और हम (एस) के प्रमुख ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि प्रशांत किशोर सीधे तौर पर उनके साथ जुड़ेंगे या नहीं, इस बारे प्रशांत किशोर की मदद लेने की कोशिश ज़रूर हुई थी। वे जेडीयू की ‘अंदरुनी और बाहरी’ राजनीति को अच्छे से जानते हैं। रालोसपा के एक नेता ने बताया, “हमारे नेता उपेंद्र कुशवाहा प्रशांत किशोर के प्रति गर्मजोशी से भरे हुए हैं और उन्होंने किशोर की नीतीश कुमार पर हमले की के समर्थन में अपनी भावनाओं को ट्वीट किया है। हम एक मजबूत गठबंधन चाहते हैं और उम्मीद करते हैं कि कांग्रेस आगे बढ़ेगी।”

रालोसपा नेता ने यह भी कहा कि हालांकि शुरुआती विचार सभी गैर-एनडीए दलों को एक साथ आने का था, लेकिन यदि राजद अपनी जिद्द (तेजस्वी को सीएम बनाने की मांग) पर अड़ी रही तो नए फॉर्मूले हो सकते हैं। हम पार्टी के एक सूत्र ने बताया कि प्रशांत किशोर के साथ जीतनराम मांझी की यह दूसरी बैठक थी। मांझी के करीबी इस व्यक्ति ने बताया, “कोई व्यक्ति और विचार जो एनडीए को हराने में मदद कर सकता है, उसका स्वागत है।”

रालोसपा, हम और वीआईपी ने 2020 के विधानसभा चुनाव के नेतृत्व के लिए वरिष्ठ सांसद शरद यादव को आगे लाने की बात कही लेकिन इस पर उन्हें राजद के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। हालांकि शरद यादव ने स्पष्ट किया है कि वह राज्य के सीएम की दौड़ में नहीं थे और अकेले तेजस्वी हैं जो गठबंधन का नेतृत्व करें।

राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, “हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हमें चुनाव जीतने के लिए इवेंट मैनेजरों की आवश्यकता नहीं है। दूसरों को दबाव की रणनीति खेलने दें। हम स्पष्ट हैं कि विपक्षी राजनीति को तेजस्वी के नेतृत्व में आगे बढ़ना होगा।”

किशोर ने कहा था कि वह किसी भी राजनीतिक पार्टी या गठबंधन के साथ नहीं जाएंगे लेकिन महागठबंधन के घटक दलों के साथ उनकी बैठक एक नया संकेत दे रही है। किशोर का लक्ष्य 100 दिनों में एक करोड़ युवाओं को जोड़ने का है। 27 फरवरी के कन्हैया कुमार की रैली के नतीजे विपक्षी राजनीति को एक नई दिशा देने में मदद कर सकते हैं। कन्हैया रैली के बाद बिहार की योजनाओं का खुलासा कर सकते हैं, हालांकि उन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की बात कही है।