देश की शीर्ष अदालत ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला दिया है। इस फैसले से वकीलों को बड़ी राहत मिली है। अब उपभोक्ता अदालत में वकीलों के खिलाफ खराब सेवा को लेकर केस नहीं चला सकते हैं। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने इस केस पर फैसला देते हुए कहा कि फीस देकर काम करवाने को कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट की सेवा के तहत नहीं रख सकते हैं। इसके अलावा कोर्ट ने ये भी कहा कि अदालत में वकील जो भी सेवा देते हैं वो अन्य सेवाओं से काफी अलग है। इस तरह की सेवा को उपभोक्ता कानून के दायरे में नहीं रखा जा सकता है। इसलिए इसे बाहर ही रखना चाहिए।

पीठ ने कहा कि कानूनी प्रोफेशन को किसी अन्य कामों से तुलना नहीं की जा सकती। किसी अधिवक्ता और उसके मुअक्कील के बीच आपसी सहमती के तहत सेवाएं प्रदान की जाती है। ऐसे में अगर किसी वकील से कोई कमी होती है तो वकील को उपभोक्ता कोर्ट में नहीं खींचा जा सकता। हालांकि वकील के खिलाफ सामान्य अदालत में किसी अन्य गड़बड़ी के तहत केस चला सकते हैं।

2007 में सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश

साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने कंज्यूमर कमीशन के फैसलों को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में कहा था कि वकील उपभोक्ता के अधिकारों को ध्यान में रखकर अपनी सेवा नहीं देता है तो उस पर उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा था कि वकीलों की सेवा को सेक्शन 2 (1) O के अंतर्गत आती है। जिसके तहत उपभोक्ता अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ही साल 2009 में उपभोक्ता आयोग के इस फैसले पर रोक लगा दी थी।

देश भर में हैं 13 लाख वकील

वकीलों की कई संस्था देशभर में कार्य करती है। वर्तमान में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के तहत 13 लाख वकील हैं। कमीशन के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि वकीलों को अपने काम को लेकर सुरक्षा और स्वतंत्रता की जरूरत है। वहीं इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन ने कहा कि लीगल वर्क किसी वकील के बस में नहीं होता है। वकीलों को एक नियम के तहत काम करना होता है। जबकि फैसला भी वकीलों के कंट्रोल में नहीं होता। ऐसे में किसी भी केस को लेकर वकीलों को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है।