केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुवार को कांग्रेस द्वारा लगाए गए उन आरोपों को खारिज कर दिया कि पहाड़ियों की नई परिभाषा के तहत अरावली के 90 प्रतिशत से अधिक हिस्से को संरक्षित नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मुख्य विपक्षी पार्टी इसलिए ‘घबराई हुई’ है क्योंकि सरकार ने अरावली में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।
कांग्रेस ने गुरुवार को दावा किया कि पर्वतमाला की संशोधित परिभाषा के तहत अरावली पर्वतमाला के 90 प्रतिशत से अधिक हिस्से को संरक्षित नहीं किया जाएगा और इससे खनन और अन्य गतिविधियों के लिए रास्ता खुल जाएगा।
भूपेंद्र यादव ने कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश की एक पोस्ट का जवाब देते हुए X पर लिखा, “एफएसआई द्वारा किए गए किसी भी अध्ययन में आपकी कही गई बातों का कोई प्रमाण नहीं है। लेकिन मुझे पता है कि एफएसआई द्वारा स्पष्ट खंडन जारी करने के बावजूद आप ये झूठ क्यों फैला रहे हैं। शायद आपकी ‘पर्यावरणविद् वाली छवि’ तब विश्वसनीय साबित होती जब आप अपने पार्टी सहयोगी अशोक गहलोत से पूछते कि अरावली पर्वतमाला को किसने नष्ट किया।”
‘पुनर्निर्माण के लिए हम काम करते रहेंगे’
भूपेंद्र यादव ने निशाना साधते हुए लिखा, “आप और आपके गुट के लोग इसलिए घबराए हुए हैं क्योंकि हमने गुजरात से दिल्ली तक अरावली पर्वतमाला में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। हम आपको, माननीय गहलोत को या आपकी पार्टी के किसी भी सदस्य को पवित्र अरावली पर्वतमाला को फिर कभी लूटने नहीं देंगे। आपकी पार्टी ने जो कुछ भी नष्ट किया है, उसके पुनर्निर्माण के लिए हम काम करते रहेंगे।”
जयराम रमेश ने आरोप लगाते हुए कहा था कि “मोदी सरकार द्वारा अरावली की जो नई परिभाषा दी गई है, वह तमाम विशेषज्ञों की राय के खिलाफ है, साथ ही खतरनाक और विनाशकारी भी है।” उन्होंने कहा था, “भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के प्रामाणिक आंकड़ों के अनुसार, 20 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली अरावली पहाड़ियों में से केवल 8.7 प्रतिशत ही 100 मीटर से अधिक ऊंची हैं।”
जयराम रमेश ने और क्या कहा?
रमेश ने लिखा कि यदि एफएसआई द्वारा चिह्नित सभी अरावली पहाड़ियों को देखा जाए, तो उनमें से एक प्रतिशत भी 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली नहीं है। एफएसआई का स्पष्ट मत है-और वह पूरी तरह उचित भी है-कि ऊंचाई के आधार पर सीमाएं तय करना संदिग्ध है, और ऊंचाई की परवाह किए बिना अरावली की पूरी पर्वतमाला को संरक्षण मिलना चाहिए।
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि क्षेत्रफल के हिसाब से इसका मतलब यह है कि नई परिभाषा के तहत अरावली का 90 प्रतिशत से कहीं अधिक हिस्सा संरक्षित नहीं होगा और खनन, रियल एस्टेट तथा अन्य गतिविधियों के लिए खोला जा सकता है, जो पहले से ही बुरी तरह क्षतिग्रस्त इस पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक नुकसान पहुंचाएगा।
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