भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद पर यूपी के सहारनपुर जिले के देवबंद के पास बुधवार को गोली चलाकर हमला किया गया। हालांकि वह बच गये हैं, लेकिन घटना से सियासी पारा बढ़ गया है। जिले के चटमलपुर के पास घडकौली गांव में 3 दिसंबर 1986 को पैदा हुए चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण कुछ साल पहले अपने गांव के बाहर एक बोर्ड लगाकर चर्चा में आ गये थे। इसमें उन्होंने ‘दा घडकौली वेलकम यू द ग्रेट चमार्स’ लिखा था। इससे वहां विवाद भी खड़ा हो गया था। दलितों की समस्याओं को लेकर जब वे सड़कों पर उतरे तो उनकी राजनीतिक पहचान बढ़ गई। तब वे युवा नेता के रूप में तेजी से लोकप्रिय हुए। उनकी चर्चा देश से बाहर भी होने लगी थी। अमेरिका की टाइम मैगजीन ने उन्हें टॉप 100 इमरजिंग नेताओं की लिस्ट में जगह दी थी।
चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण ने दलितों के उत्पीड़न और सामाजिक भेदभाव के विरोध में 2015 में भीम आर्मी की स्थापना की। इसको भारत एकता मिशन भी कहते हैं। इस संगठन के जरिए उन्होंने दलितों और पिछड़ों के हक में कई आंदोलन किये और आवाज उठाई। इस दौरान वे दलित छात्रों के नेता के रूप में मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं।
भीम आर्मी का मुख्य कार्यक्षेत्र उनका अपना जिला सहारनपुर ही रहा है। शुरू में वे तब चर्चा में आए जब 2016 में छुटमलपुर स्थित एएचपी इंटर कॉलेज में कुछ दलित छात्रों की कथित तौर पर पिटाई कर दी गई। इसके विरोध में उन्होंने एक बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया था। इसके अगले साल 5 मई 2017 को जिले के शब्बीरपुर गांव में राजपूतों और दलितों के बीच हिंसा शुरू हो गई थी। इसमें आगजनी के दौरान कथित तौर पर दलितों के 25 घरों को फूंक दिया गया था। हिंसा में एक दलित की मौत भी हो गई थी।
सामाजिक भेदभाव के विरोध में की थी भीम आर्मी की स्थापना
इस घटना के विरोध में चंद्रशेखर ने जोरदार आंदोलन किया था। मामले में पुलिस ने करीब 37 लोगों को गिरफ्तार किया था और 300 से ज्यादा लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था। तब चंद्रशेखर आजाद अपनी आर्मी के साथ दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध-प्रदर्शन करने पहुंच गये थे।
सितंबर 2020 में हाथरस में दलित युवती से बलात्कार और हत्या की घटना के कुछ महीनों बाद वे पीड़ित परिवार के घर पहुंच गये। चंद्रशेखर पीड़ितों को सुरक्षा नहीं मुहैया कराए जाने और लगातार मिल रही धमकी को लेकर रात में वहीं रुकने पर अड़ गये थे। उन्होंने प्रशासन को चेतावनी दी थी कि वे तब तक वहां से नहीं जाएंगे जब तक पीड़ितों को न्याय नहीं मिल जाता है।