भारत और अमेरिका के रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच नई दिल्ली में हालिया ‘2+2 वार्ता’ के दौरान पांच अहम समझौतों पर दस्तखत किए गए। इन समझौतों को चीन की विस्तारवादी गतिविधियों पर नकेल कसने के लिहाज से अहम माना जा रहा है। पूर्वी लद्दाख में चीन से लगी सीमा पर सैन्य गतिरोध के बीच हुई बैठक में दोनों देशों के बीच जिन समझौतों पर दस्तखत हुए, उनमें ‘बेसिक एक्सचेंज एंड को-आपरेशन एग्रीमेंट’ (बीईसीए) करार को अहम माना जा रहा है। इससे रणनीतिक भागीदारी मजबूत हुई है। दोनों देशों के बीच यह तीसरी ‘2+2 वार्ता’ थी।

क्यों अहम है हाल की ‘2+2 वार्ता’
भारत और अमेरिका के बीच यह रणनीतिक-कूटनीतिक कवायद ऐसे समय में हुई है, जब लद्दाख में भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हैं। दूसरी ओर, अमेरिका और चीन में व्यापारिक युद्ध चरम पर है। ‘बीईसीए’ करार को चीन की घेरेबंदी के लिहाज से अहम माना जा रहा है। इसके तहत दोनों देशों की सेनाओं में गोपनीय सूचनाओं का आदान-प्रदान बढ़ेगा। अमेरिका से उपग्रहीय डाटा मिलेगा, जिससे भारत के क्रूज, बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन जैसी आयुध प्रणालियों और हथियारों की अचूक मारक दक्षता बढ़ेगी। इससे पहले दोनों देशों ने 2016 में ‘लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम आफ एग्रीमेंट’ और 2018 में ‘कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट’ पर दस्तखत हुए थे। तीनों समझौते कहीं न कहीं चीन के खिलाफ भारत को मजबूती देते हैं।

‘2+2 वार्ता’ किसके-किसके साथ
यह दो देशों में होने वाली रणनीतिक वार्ता का मंच है, जिसमें दोनों के रक्षा और विदेश मंत्री या सचिव स्तर की बातचीत साथ-साथ होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच 2017 में इस वार्ता की रूपरेखा तय हुई थी। पहली वार्ता सितंबर 2018 में नई दिल्ली में और दूसरी वार्ता वाशिंगटन में हुई थी। अमेरिका के अलावा भारत की आॅस्ट्रेलिया और जापान से भी ‘2+2 वार्ता’ होती है। थोड़ा फर्क है। आॅस्ट्रेलिया के साथ भारत ‘2+2 वार्ता’ विदेश और रक्षा सचिव के स्तर पर करता है। जापान के साथ अमेरिका की तर्ज पर मंत्री स्तरीय वार्ता होती है। अमेरिका का भारत के अलावा जापान और आॅस्ट्रेलिया से भी ‘2+2 वार्ता’ का मंच है।

‘2+2 वार्ता’ और ‘क्वाड’
भारत जिन देशों के साथ ‘2+2 वार्ता’ कर रहा है, वे सभी देश ‘क्वाड’ (क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग) का हिस्सा हैं। इन देशों का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मुक्त, खुले और विकासशील कारोबार को बढ़ावा देना है। नवंबर 2017 में यह समूह बना। इसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत के समुद्री रास्तों पर किसी भी देश, खासकर चीन, के प्रभुत्व को खत्म करना है।

दरअसल, अमेरिका की नीति पूर्वी एशिया में चीन को काबू करने की है। वह इस समूह के जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दबदबा कायम करने का मौका ढूंढ़ रहा है। अमेरिका ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में रूस के साथ ही चीन को भी रणनीतिक शत्रु कहा है। आॅस्ट्रेलिया को अपनी जमीन, ढांचागत निर्माण, राजनीति में चीन की बढ़ती रुचि और विश्वविद्यालयों में बढ़ते उसके प्रभाव पर चिंता है। जापान पिछले एक दशक में चीन से सबसे ज्यादा परेशान रहा है। जापान चीन के साथ अपनी आर्थिक जरूरतों और क्षेत्रीय चिंताओं की समीक्षा कर रहा है। भारत के लिए चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत रणनीतिक चुनौती है।

वार्ता के बाद चीन की हिमाकत
चीन ने भारत के पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश सीमा पर अपनी ढांचागत परियोजनाओं का काम तेज कर दिया है। हाल में ही उपग्रहीय तसवीरों से खुलासा हुआ था कि भारतीय सीमा से 130 किलोमीटर की दूरी पर चीन एक हवाई अड्डे का पुनर्निर्माण कर रहा है। अब खबर आई है कि चीन अब सिचुआन-तिब्बत रेलवे के यान-लिंझी खंड का निर्माण शुरू करने जा रहा है। लिंझी को नयींगशी के नाम से भी जाना जाता है। यह अरुणाचल प्रदेश सीमा के नजदीक स्थित है। लिंझी में एक हवाईअड्डा भी है, जो हिमालयी क्षेत्र में चीन द्वारा बनाए गए पांच हवाईअड्डों में शामिल है।

चाइना रेलवे ने दो सुरंग और एक पुल के निर्माण कार्य तथा शिचुआन-तिब्बत रेलवे के यान-लिंझी खंड के लिए बिजली आपूर्ति के लिए इसी हफ्ते निविदा के परिणाम घोषित किए। चीनी सरकारी मीडिया चाइना न्यूज की खबर के मुताबिक चिंघाई-तिब्बत रेलवे के बाद, सिचुआन-तिब्बत रेलवे, तिब्बत में ऐसी दूसरी परियोजना है। यह चिंघाई-तिब्बत पठार के दक्षिण पूर्व से गुजरेगा।

जो विश्व के भूगर्भीय रूप से सर्वाधिक सक्रिय इलाकों में शामिल है। सिचुआन-तिब्बत रेलवे सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदु से शुरू होता है। यह यान से गुजरता हुआ और तिब्बत में प्रवेश करता है तथा चेंगदु से ल्हासा के बीच की यात्रा में लगने वाले 48 घंटे के समय को घटा कर 13 घंटे करता है।

अरुणाचल सीमा के पास चामडो बंगडा अड्डा
चीन अरुणाचल बॉर्डर से 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चामडो बंगडा एअरबेस का विस्तार कर रहा है। यहां पर विमानों के उड़ान भरने के लिए नया रनवे और उनके रखरखाव के लिए नए एप्रन का निर्माण किया जा रहा है। यह रनवे याकू नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। चामडो बंगडा वायुसेना अड्डे पर पहले से ही 5500 मीटर का एक रनवे मौजूद था।

इसके अलावा चीन जो नया रनवे बना रहा है उसकी लंबाई 4500 मीटर के आसपास है। उपग्रहीय तसवीरों के मुताबिक, रनवे के नजदीक सेना के इस्तेमाल के लिए बनाया गया एप्रन दिखाई दे रहा है। माना जा रहा है कि चीन ठंड के दिनों में अपने सैनियों और हथियारों को इस सीमा पर तैनात करने की योजना बना रहा है। इस बेस पर यह निर्माण गतिविधियां जून 2020 में शुरू हुई थीं जो अब तक जारी है।

क्या कहते हैं जानकार
एशिया-प्रशांत में चीन का दबदबा बढ़ रहा है। चीन और अमेरिका के संबंध कड़वे हैं। ऐसे में चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका को भारत से ज्यादा सक्षम देश कोई और नजर नहीं आता। ऐसे में 2+2 वार्ता दोनों देशों के लिए अपने-अपने हितों को जाहिर करना और सामने वाले की स्थिति भांपने के लिए काफी अहम है।
– शशांक, पूर्व विदेश सचिव

इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस वार्ता के जरिए भारत और अमेरिका ने तीन से चार दशकों के लिए रणनीतिक सहयोग की नींव को और मजबूत किया है। यह सहयोग भविष्य में दुनिया की राजनीतिक और आर्थिक आयाम को एक नई दिशा देगी। हिंद-प्रशांत क्षेत्र को अमेरिका अपनी वैश्विक स्थिति को पुनर्जीवित करने के लिए अहम मानता है।
– प्रोफेसर अब्दुल नाफे, अमेरिकी मामलों के जानकार

भारत-अमेरिका की आगे की तैयारी
भारत और अमेरिका की सेना नियमित सैन्य अभ्यास समझौते के तहत अगले साल की शुरुआत में युद्ध अभ्यास और वज्र प्रहार अभ्यास करने वाली है। नौसेना ने नवंबर में हिंद महासागर में होने वाली मालाबार युद्धाभ्यास की तैयारी की है, जिसमें जापान और आॅस्ट्रेलिया की नौसेनाएं भी हिस्सा लेंगी। दो हफ्ते पहले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य यांग जाइची ने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ कोलंबो का दौरा किया था। उसके बाद अमेरिका के काम खड़े हो गए हैं। दरअसल, श्रीलंका में चीन ने कई परियोजनाओं में बड़े निवेश किए हैं। श्रीलंका को कर्ज जाल में फंसाने की चीन की रणनीति पर अमेरिका के साथ ही भारत भी चिंता में है।