उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान धर्म और जाति से अलग एक नया मतदाता वर्ग ‘लाभार्थी’ भी सामने आया जिसने चुपचाप भाजपा को मत दिया। इस नए वर्ग में महिलाएं सबसे अधिक रहीं। कोरोना काल में वैसे तो पूरे देश के गरीबों को अनाज दिया गया लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इससे आगे बढ़कर दाल, तेल और मसाले तक लोगों को उपलब्ध कराए।
इसके साथ ही केंद्र सरकार की योजनाओं उज्ज्वला, प्रधानमंत्री आवास, शौचालय आदि का लाभ भी बड़ी संख्या में लोगों को हुआ। यहां सबसे जरूरी बात यह रही कि अधिकतर योजनाएं महिलाओं से जुड़ी हैं। घर में खाना बनाने का सामान नहीं होगा तो सबसे अधिक परेशान घर की महिला ही होगी। शौचालयों और उज्ज्वला का योजना के तहत मिले सिलेंडर फायदा भी महिलाओं को ही सबसे ज्यादा हुआ। इसके अलावा मकान भी महिलाओं के नाम से बनाए गए। माना जा रहा है इसी ‘लाभार्थी’ वर्ग ने चुपचाप भाजपा को जिताने में अहम भूमिका निभाई।
विधानसभा चुनाव के परिणाम में इस बात के संकेत छिपे हैं कि उत्तर प्रदेश में जातिगत विभाजन पर योगी की छवि हावी रही है। दूसरा, प्रदेश की सवर्ण जातियों के मतदाता अभी भी योगी के साथ हैं। ओम प्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी के समाजवादी पार्टी के साथ आने के बाद भी अखिलेश यादव पिछड़ों को पूरी तरह अपने पाले में नहीं कर पाए।
प्रदेश के लोगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जोड़ी को लेकर लोगों का भरोसा दिखा। योगी छवि जन विश्वास पर इतनी खरी थी कि लोग खुलकर सामने आए और इनके नाम पर मतदान किया। बेहतर कानून व्यवस्था और गरीब कल्याण योजनाओं की दोहरी खुराक ने लोगों के भरोसे को बनाए रखा और उन्हें मतदान के लिए प्रेरित किया।
उत्तर प्रदेश में पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर लड़ा गया। चुनाव घोषणा के बाद प्रधानमंत्री 27 सभाएं कीं। सभाओं में प्रधानमंत्री ने ‘यूपी ने भरी हुंकार फिर एक बार योगी सरकार’ और ‘आएंगे तो योगी ही’ जैसे नारे देकर योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश चुनाव का केंद्र बिंदु बना दिया। योगी ने भी परिणाम की परवाह ना कर पूरा चुनाव अपने कंधे पर ले लिया। चुनाव में उन्होंने 200 से अधिक सभाएं और रोड शो किए। चुनाव का एजंडा तय किया। इसी का नतीजा है कि कमजोर माने जा रहे बहुत उम्मीदवार भी चुनाव जीत गए।
महंगाई, बेरोजगारी, छुट्टा पशु और किसानों के कुछ मुद्दे होने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि का लोगों पर इतना गहरा प्रभाव रहा कि लोगों ने जातिगत विभाजन से ऊपर उठकर भाजपा को मतदान किया। सवर्ण तो पहले से ही भाजपा के मतदाता माने जाते रहे हैं लेकिन योगी ने न केवल इन मतदाताओं को बचाया बल्कि पिछड़ों को भी अपने साथ जोड़ा। वहीं, अखिलेश यादव खुद को पिछड़ों के साथ जोड़ने में विफल रहे। वे इस वर्ग के मतदाताओं को सुरक्षा का आश्वासन नहीं दे पाए। शायद यही वजह रही कि उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
अंतिम क्षणों में किसानों के लिए हुई घोषणाएं भाजपा के लिए बनीं जीवनरक्षक
विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार की ओर से तीन कृषि कानून की वापसी और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने किसानों को बड़ी राहत देते हुए निजी ट्यूबवेल के बिजली बिलों में 50 फीसद छूट देने की घोषणा की थी। ये घोषणाएं उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार के लिए जीवनदायनी साबित हुर्इं। केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों में भारी रोष देखा गया।
इन कानूनों की वापसी की मांग को लेकर किसानों के कई गुटों ने 14 महीनों तक संघर्ष किया। इस दौरान वे दिल्ली की सभी सीमाओं पर लगातार प्रदर्शन करते रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर, 2021 को अचानक तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएसपी) पर नीति बनाने के लिए एक समिति गठन करने का निर्णय किया गया।
इस फैसले ने उत्तर प्रदेश विशेषकर पश्चिमी यूपी के उन किसानों के गुस्से को ठंडा करने का काम किया जो भाजपा के ही समर्थक थे लेकिन सरकार के जिद्दी स्वभाव की वजह से छिटकने को तैयार थे। उत्तर प्रदेश में चुनाव की सुगबुगाहट के बीच समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने उनकी सरकार पर घरेलू उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली देने का वादा किया। इसके बाद उत्तर प्रदेश की सरकार बैकफुट पर आ गई और चुनाव की घोषणा होने से सप्ताह भर पहले ही सरकार को निजी ट्यूबवेल के बिजली बिलों में 50 फीसद छूट देने की घोषणा करनी पड़ी।