गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट गुजरात में एक रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण के मामले में सुनवाई करते हुए कहा, जब संविधान कानून के शासन को मान्यता देता है, तो इसका पालन सभी को करना होता है चाहे वो अमीर हो या गरीब। याचिकाकर्ता की ओर से आए वकील ने जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ को बताया कि अतिक्रमण के तहत हटाए जाने वाले उन पात्र आवेदकों को थोड़ा और समय दे दिया जाए जिन्हें प्रधानमंत्री आवास के तहत घर मिलने घर का किश्तों में भुगतान कर सकें।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, “जो कुछ भी किया गया है वह पहले से ही इन सभी व्यक्तियों के लिए दिखाया गया एक रियायत है। वे रेलवे की संपत्ति पर अतिक्रमण से कब्जा करने वाले थे।” इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि ये लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। इस पर कोर्ट ने जवाब देते हुए कहा, “जब संविधान कानून के शासन को मान्यता देता है, तो इसका पालन सभी को करना होता है। गरीबी रेखा से नीचे कानून के शासन का पालन नहीं करने का अपवाद नहीं है।” कई लोग ऐसे हैं जो गरीबी रेखा से नीचे हैं। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता प्राधिकरण से संपर्क कर सकता है और अगर उनके पास योजना के तहत समय बढ़ाने का अधिकार है तो वे इस पर विचार करेंगे।
549 आवेदकों को नहीं मिली मंजूरी, कोर्ट ने दिया ये जवाब
सूरत नगर निगम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि अभी तक जिन पात्र लोगों ने ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत आवास के आवंटन के लिए 2,450 फार्म भेजे गए थे जिनमें से 1,901 लोगों को आवास की मंजूरी मिली है। उन्होंने बताया कि योजना के तहत आवंटी को छह लाख रुपये प्रति फ्लैट देने होंगे। याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि 549 आवेदकों को मंजूरी नहीं दी गई है। तो इस पर कोर्ट ने कहा, ‘अगर इसे खारिज कर दिया गया है, तो आवेदक प्रॉपर फोरम में उस फैसले को चुनौती देने के लिए स्वतंत्र हैं।’
संबंधित अथॉरिटी से बात करें याचीः सुप्रीम कोर्ट</strong>
वकील ने बताया कि पश्चिम रेलवे और नगर निगम की ओर से उनके सामने कहा गया है कि संबंधित रेलवे संपत्ति पर अतिक्रमण को पूरी तरह से हटा दिया गया है। उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि कुछ आवंटियों को किस्त के भुगतान की समयसीमा बनाए रखने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे व्यक्ति संबंधित अथॉरिटी से अनुरोध कर सकते हैं जो इसे उचित और कानून के अनुसार समझेगा। इसमें कहा गया है कि जिन आवेदकों के दावों को अधिकारियों ने खारिज कर दिया है,वे फैसले को चुनौती देने के लिए उचित उपाय का सहारा लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
गुजरात हाईकोर्ट ने 2014 में खाली करवाई थी जमीन
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि गुजरात उच्च न्यायालय ने 23 जुलाई 2014 को यथास्थिति के अपने अंतरिम आदेश को खाली कर दिया था और पश्चिम रेलवे को सूरत-उधना से जलगांव तीसरी रेलवे लाइन परियोजना तक आगे बढ़ने की अनुमति दी थी। सूरत की उतरन से बेस्टन रेलवे झोपड़पट्टी विकास मंडल द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया था कि रेलवे की जमीन पर रहने वाले झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को अपूरणीय क्षति होगी यदि उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था प्रदान नहीं की जाती है तो बेघर होने से उनकी स्थिति और अधिक दयनीय हो जाएगी खासकर कोविड -19 महामारी के दौरान।