इस समय फिजा में केवल देशद्रोह ही देशद्रोह है। जेएनयू मामले के बाद तो इसमें काफी कुछ हो गया। 1898 में मैकॉले पैनल कोड के मुताबिक देशद्रोह का मतलब है: कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ द्रोह करना या घृणा फैलाना या ऐसा प्रयास करना। 1942 में ब्रिटिश इंडिया में फेडरल कोर्ट ने कहा था कि इसका मतलब सरकार के प्रति किसी तरह की निष्ठा नहीं है बल्कि सार्वजनिक व्यवस्था में दखल डालने के लिए हिंसा करना या ऐसी अपील करना देशद्रोह के तहत आता है। फेडरल कोर्ट ने कहा था कि इस कानून का निष्कर्ष है कि राज्य की शांति और सौहार्द्र में बाधा डालना। लेकिन पांच साल बाद प्रिवी कॉउंसिल ने फेडरल कोर्ट के फैसले को बदल दिया। प्रिवी काउंसिल के लिए लॉर्ड थांकर्टन ने कहा: सेक्शन 124ए में देशद्रोह शब्द नहीं आता। यह सेक्शन 124ए में केवल छोटे से अंग में आता है यह इसका ऑपरेटिव पार्ट नहीं है। इंग्लैंड में देशद्रोह को लेकर कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है। कई मायनों में इसका अर्थ बदला गया है। इनमें से कुछ का बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने भी जिक्र किया। लेकिन वैधानिक चेतावनी होने पर ये फैसले प्रासंगिकता नहीं रखते।
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सेक्शन 124ए की पहली परिभाषा के अनुसार असंतोष में विश्वासघात और शत्रुता के सारे भाव शामिल होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी जरूरत पड़ने पर इस परिभाषा में बदलाव किया है। 1962 में देशद्रोह के अपराध की संवैधानिक वैधता को चुनौती दिए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि वह औपनिवेशक काल की कड़ी परिभाषा के बजाय ज्यादा उदार परिभाषा को चुनेंगे। इसके चलते देशद्रोह भारत में असंवैधानिक नहीं है। यह अपराध है जब (1) यदि लिखकर और बोलकर अव्यवस्था और हिंसा फैलाई जाती है। केवल उपद्रव, अव्यवस्था और अन्य तरह की हिंसा के लिए दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। इन्हें सेक्शन 124ए के तहत सजा नहीं दी जा सकती। इसी तरह से केवल घृणात्मक बात कहना और सरकार का विरोध करना देशद्रोह नहीं है। जब एक व्यक्ति को भारत विरोधी कहा जाता है तो भारत विरोधी होना आपराधिक नहीं है। यह निसंदेह देशद्रोह नहीं है।
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भारत में नागरिकों को अपनी सरकार की आलोचना करने की आजादी है। क्योंकि लोकतंत्र का यही मतलब है। मलेशिया और सिंगापुर में कानून अलग है। इन देशों ने देशद्रोह की कड़ी परिभाषा का चयन किया है लेकिन वहां के नागरिक इसके समर्थन में नहीं है। कुछ साल पहले मलेशिया के रिटायर्ड एक प्रमुख जज ने कुआलालंपुर में 500 लोगों की मौजूदगी में कहा, हमारा लिखित संविधान अभिव्यक्ति की अाजादी देता है। लेकिन यह बोलने के बाद की आजादी नहीं देता।’ भारत में हम ऐसी सरकार के तहत नहीं रह सकते जो भावनाओं के अनुसार अभिव्यक्ति देती हो। हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के जज ने कहा,’जब बोलने की वास्तव में आजादी है तभी यह दुखता है।’