दीप्ति गुप्ता

किसी भी आजाद देश के लिए राष्ट्रगान का निर्धारण, उस लिखे गए गीत के भाव आदि का औचित्य देखकर, सर्वसम्मति से हुआ करता है। कुछ लोगों ने अपने मन में यह भ्रम पाला हुआ है कि भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ जार्ज पंचम का स्तुति गान है, लेकिन यह सच नहीं है। दरअसल, हमारा राष्ट्रगान ईश्वर से देश की रक्षा, सुख, समृद्धि की प्रार्थना है।

राष्ट्रगान देश की रक्षा, देश के सौभाग्य के लिए, सुख-शांति के लिए प्रार्थना से युक्त संगीतबद्ध गान होता है। कविगुरु रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखा गया हमारे देश का राष्ट्रगान मूल रूप में ‘ब्रह्म की स्तुति’ है। इसमें ब्रह्म की स्तुति के साथ-साथ देश के प्रांतों के नाम, समुद्र आदि का भी उल्लेख है। हर दृष्टि से ‘जन गण मन’ राष्ट्रगान के रूप में सभी लोगों को सही लगा। इसे 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के मौके पर27 दिसंबर, 1911 को जार्ज पंचम भी विराजमान थे। वहां उनके स्वागत के मौके पर ठाकुर से एक सुंदर रचना तैयार करने के लिए कहा गया। उन्होंने उस मौके पर ब्रह्म देव की स्तुति करते हुए ‘जन गण मन’ का गायन किया। भारतीय परंपरा के अनुसार ईश स्तुति भी हो गई और जार्ज का स्वागत भी।

किसी भी कार्यक्रम का शुभारंभ हम सरस्वती वंदन, दीप प्रज्ज्वलन आदि से करते हैं। अगर हम मंच पर ब्रह्मा, सरस्वती, गणेश- इनमें से किसी की भी वंदना करते हैं, तो इसका मतलब यह तो नहीं होता कि हम मंच पर विराजमान अतिथियों की स्तुति कर रहे हैं। इस लिहाज से ‘जन गण मन’ विशुद्ध ‘ब्रह्म स्तुति’ है, ईश्वर की प्रार्थना है।

राष्ट्रगान में कहा भी गया है, ‘हे कोटि-कोटि जनता के नायक, उसका नेतृत्व करने वाले ईश्वर- इस सारी सृष्टि के अधिनायक, पालक, रक्षक …. आप ही भारत के भाग्य को बनाने वाले हैं। समूचा भारत, पंजाब, सिंध…सब आपका आशीष मांगते हैं। आपकी ही जय गाथा गाते हैं।’

रवींद्रनाथ ठाकुर ने राष्ट्रगान को लेकर अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन करते हुए 10 नवंबर, 1939 को पुलिन बिहारी सेन को लिखा था और यह पत्र प्रभात कुमार मुखर्जी द्वारा लिखी हुई टैगोर की जीवनी ‘रवींद्र जीवन’ (खंड द्वितीय, पृष्ठ 339) में संकलित है।