Uttar Pradesh Politics BSP Decline: एक वक्त में उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी ताकत रही बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की मौजूदा हालत बेहद कमजोर है। पिछले कुछ चुनावों में लगातार खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी के सामने खुद को जिंदा रखने का संकट पैदा हो गया है। कांशीराम के नेतृत्व में बीएसपी एक जमीनी आंदोलन जैसी थी और इसने दलित के साथ ही वंचित समुदाय के लोगों को भी ताकत दी। लेकिन समय बदलने के साथ सारे फैसले पार्टी सुप्रीमो मायावती ही लेने लगीं और इससे बीएसपी एक नेता वाली पार्टी बनकर रह गई।
बीजेपी और कांग्रेस में लीडरशिप की कई पंक्तियां हैं लेकिन बीएसपी में ऐसा नहीं है। मायावती के निष्क्रिय होने की वजह से पार्टी के विस्तार का काम कमजोर हुआ है और उत्तर प्रदेश के बाहर इसकी मौजूदगी सीमित हो गई है। इस वजह से पार्टी का चुनावी पतन हुआ है।
बीजेपी ने गठबंधन की राजनीति करने का गुण सीखा है तो दूसरी ओर बीएसपी ने गठबंधन करने से कन्नी काट ली है। बीएसपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया लेकिन यह कुछ वक्त तक ही चला। इसके अलावा आकाश आनंद को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में बढ़ावा देने का मायावती का फैसला बहुजन आंदोलन के मूल आदर्श के खिलाफ है और इस वजह से कई लोग पार्टी से दूर हो गए हैं।
पिछले कुछ लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर और सीटें
साल | बसपा को मिली सीट | बसपा को मिले वोट (प्रतिशत में) |
1989 | 3 | 2.1 |
1991 | 3 | 1.8 |
1996 | 11 | 4.0 |
1998 | 5 | 4.7 |
1999 | 14 | 4.2 |
2004 | 19 | 5.3 |
2009 | 21 | 6.2 |
2014 | 0 | 4.2 |
2019 | 10 | 3.7 |
2024 | 0 | 2.04 |
18वीं लोकसभा में बीएसपी का एक भी सांसद नहीं है जबकि आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद लोकसभा पहुंचे हैं। आजाद के आगे बढ़ने से दलित मतदाताओं के बीच बीएसपी का प्रभाव कम हुआ है।
बसपा के कमजोर होने से बीजेपी को हुआ फायदा
बीएसपी का वोट शेयर घटने से बीजेपी को फायदा हुआ है। बीजेपी ने पासी और अन्य गैर जाटव दलित जातियों के साथ-साथ जाटव समुदाय के भी महत्वपूर्ण हिस्से को अपने साथ लाने की कोशिश की है। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को कमजोर किया, उसी तरह मायावती ने भी बीएसपी के भीतर फैसले लेने की पूरी प्रक्रिया को खुद तक सीमित कर दिया है। इससे पार्टी में कोई नया नेतृत्व नहीं खड़ा हो पा रहा है।
यूपी चुनाव में बसपा का वोट शेयर
साल | वोट शेयर (प्रतिशत में) |
2007 विधानसभा चुनाव | 30.43 |
2012 विधानसभा चुनाव | 25.91 |
2014 लोकसभा चुनाव | 19.60 |
2017 विधानसभा चुनाव | 22.23 |
2019 लोकसभा चुनाव | 19.43 |
2022 विधानसभा चुनाव | 12.8 |
2024 लोकसभा चुनाव | 9.39 |
ऐसे में अगर मायावती बीएसपी को फिर से जिंदा करना चाहती हैं तो उन्हें यह तीन काम जरूर करने चाहिए।
मायावती को सबसे पहले पार्टी में बदलाव करने होंगे। दूसरा- फैसले लेने की प्रक्रिया को डिसेंट्रलाइज्ड करना होगा और क्षेत्रीय नेताओं को मजबूत बनाना होगा। तीसरा- उसे विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस और सपा के साथ मजबूत और लंबे वक्त तक चलने वाले गठबंधन बनाने होंगे क्योंकि ऐसा करके ही वह बीजेपी का मुकाबला कर पाएगी।
इसके साथ ही बीएसपी को लोगों तक पहुंचने के अपने तरीकों को आधुनिक बनाना होगा। सोशल मीडिया का फायदा उठाना होगा और दलित समुदाय के मजबूत इलाकों में युवा वोटरों को खुद से जोड़ना होगा।
कड़े इम्तिहान से गुजर रही बीएसपी
अगर बीएसपी अभी भी कोई ठोस कदम नहीं उठाती है तो वह राजनीतिक रूप से पूरी तरह महत्वहीन हो जाएगी और इससे जो खाली जगह बनेगी, उसे दूसरे लोग हासिल कर लेंगे। 2027 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को अपने राजनीतिक अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष करने के साथ ही बड़े इम्तिहान का सामना करना पड़ रहा है।
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