समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद और पूर्व विधायक आजम खान, पत्नी तंजीम फातिमा और बेटे अब्दुल्ला फिर जेल पहुंच गये हैं। तीनों नेताओं को फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने सात-साल की कैद की सजा दी है। रामपुर जिला कारागार में उनको सामान्य कैदी की ही तरह रखा गया है। कोई वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं दी जा रही है। आजम खान और बेटे अब्दुल्ला को पुरुष कारागार में साथ में रखा गया है, जबकि पत्नी तंजीम फातिमा को महिला कारागार में रखा गया है। आजम खान को बंदी संख्या 338, जबकि पत्नी तंजीम फातिमा को 339 और बेटे अब्दुल्ला को 340 दी गई है।

सामान्य कैदियों की तरह मिल रहीं सुविधाएं

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तीनों नेताओं को उसी तरह ट्रीटमेंट दिया जा रहा है, जैसे अन्य कैदियों को दिया जाता है। कारागार पहुंचने पर उनको सामान्य कैदियों की तरह मिलने वाली सुविधाएं और सामान उपलब्ध कराया गया है। उनको कैदियों वाले कपड़े दिये गये हैं।

जेल पहुंचने पर हुआ तीनों नेताओं का स्वास्थ्य परीक्षण

जेल अधीक्षक ने मीडिया को बताया कि जेल में पहुंचने पर तीनों का स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया और वे सब सामान्य पाए गये। उन्हें जेल के बने नाश्ता और खाना दिया जा रहा है। जेल सूत्रों के मुताबिक तीनों नेता सामान्य तौर पर जेल में बने नाश्ता और भोजन ले रहे हैं। जेल में नियमित रूप से दाल, चावल, सब्जी, रोटी आदि परोसी जाती है। इसके अलावा उनको सोने के लिए कंबल, चादर आदि जरूरी सामान मुहैया कराया गया है।

जेल के नियम के मुताबिक आजम खान, तंजीम फातिमा और अब्दुल्ला महीने में दो बार बाहर वालों से मुलाकात कर सकते हैं। एक मुलाकात में अधिकतम तीन लोग ही एक कैदी से मिल सकते हैं। आजम खान और उनकी पत्नी तंजीम फातिमा पर आरोप है कि उन्होंने अपने बेटे अब्दुल्ला को विधायक बनाने के लिए सभी नियम-कानून ताक पर रख दिए थे। अब्दुल्ला आजम को 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ना था, लेकिन वे इसके लिए जरूरी न्यूनतम आयु सीमा पच्चीस वर्ष की अर्हता पूरी नहीं करते थे। रामपुर नगर पालिका द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र में उनकी जन्मतिथि एक जनवरी उन्नीस सौ तिरानबे बताई गई थी।

उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और आजम खान खुद मंत्री थे। आरोप है कि आजम खान ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए लखनऊ से तत्काल दूसरा जन्म प्रमाण पत्र बनवा लिया, जिसमें अब्दुल्ला का जन्मतिथि तीस सितंबर, उन्नीस सौ नब्बे को बताया गया। उस समय तो काम चल गया और वे विधायक बन गये, लेकिन बाद में वे कानून के शिकंजे में फंस गये।