Supreme Court,Ram temple, Babri Masjid, Ayodhya verdict: अयोध्या फैसले को लेकर नेताओं, धर्मगुरुओं से लेकर आम नागरिकों तक की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। अधिकांश लोगों ने फैसले पर खुशी जताई है, हालांकि ओवैसी समेत कुछ मुस्लिम नेताओं ने कहा है कि वे उच्चतम न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने फैसले पर गहरी असहमति जाहिर की और दावा किया कि फैसले ने न्यायपालिका में अल्पसंख्यकों के भरोसे को हिला दिया है। उन्होंने कहा कि फैसला ‘अन्यायपूर्ण’ है और वास्तविकता तथा सबूतों की सरासर अवहेलना हुई है।
इस बीच, मुस्लिम समुदाय के आम लोगों की भी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। अंग्रेजी अखबार द टेलिग्राफ ने दिल्ली के जामा मस्जिद के नजदीक चावड़ी बाजार के रहने वाले मोहम्मद कुर्बान से बात की। कुर्बान फैसले के पहले वाली रात बेचैन थे और सो नहीं पाए। 67 साल के बिजली मैकेनिक कुर्बान ने तो जामा मस्जिद जाकर सुबह की नमाज में पक्ष में फैसले के लिए दुआएं भी मांगी थीं। हालांकि, कुछ घंटों बाद उनकी सारी उम्मीदें टूट गईं।
भीड़-भाड़ भरी रिहाइश वाले इलाके में अपने तीन दोस्तों के साथ बैठे कुर्बान ने कहा, ‘मेरे दोस्तों और मैंने टीवी पर बाबरी मस्जिद को तोड़े जाते देखा था। उस भयावह दिन जब इसकी एक-एक ईंट गिरा दी गई। उस दिन के बाद से हम निराशा और उम्मीद के बीच झूल रहे हैं। हमें इंतजार था कि एक दिन इंसाफ होगा, लेकिन 27 साल का इंतजार काम नहीं आया।’ मस्जिद को तोड़े जाने की घटना को याद करते-करते वह रोने लगे और बताया कि यह घटना उनकी यादों से कभी नहीं मिटेगी और चुभती रहेगी।
अपने आंसू पोछते हुए उन्होंने उर्दू की ये लाइनें कहीं, ‘तुम्हारा शहर, तुम ही कातिल, तुम ही मुद्दई, तुम ही मुंसिफ, हमें यकीन है हमारा कसूर होगा।’ मोहम्मद कुर्बान के साथ बैठे उनके तीन दोस्त सुब्हान, रोशन और आलमगीर भी निराश नजर आते हैं। आलमगीर ने कहा, ‘फैसला सुनाने के लिए जो दिन चुना गया, वो पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले का है। मुसलमान इस दिन को धूमधाम से मनाते हैं। इससे ज्यादा बुरा कुछ नहीं हो सकता।’
बता दें कि जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भी कहा था कि फैसला संगठन की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है, लेकिन जोर दिया कि शीर्ष अदालत का निर्णय ‘सर्वोच्च’ है। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मदमूद मदनी ने एक बयान में उच्चतम न्यायालय के फैसले पर गहरी असहमति प्रकट की और कहा कि उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मूर्ति रखे जाने और बाबरी मस्जिद गिराए जाने को कानून के शासन का सरासर उल्लंघन माना लेकिन इसके बावजूद जमीन ‘‘ऐसे अपराध करने वालों को दे दी गई।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह उस विशेष समुदाय के खिलाफ स्पष्ट भेदभाव है, जो अदालत की ओर से अपेक्षित नहीं था। फैसले ने न्यायपालिका में अल्पसंख्यकों के विश्वास को हिला दिया है क्योंकि उनका मानना है कि उनके साथ अन्याय हुआ है।’’ महमूद मदनी ने कहा कि जब देश को आजादी मिली और संविधान लागू हुआ तो उस जगह बाबरी मस्जिद थी।
उन्होंने कहा, ‘‘लोगों ने पीढ़ियों से देखा था कि वहां एक मस्जिद थी और वहां नमाज अदा की जा रही थी। इस मामले में, संविधान में मुसलमानों के अधिकारों, उनकी स्वतंत्रता और धर्म की स्वतंत्रता की रक्षा करना सर्वोच्च न्यायालय की जिम्मेदारी है।’’ उन्होंने दावा किया कि शीर्ष न्यायालय के फैसले और देश की स्थिति ने दिखाया है कि मुसलमानों के लिए यह ‘‘परीक्षा की घड़ी’’ है। उन्होंने समुदाय से धैर्य और संयम बरतने की अपील की।
(भाषा इनपुट्स के साथ)