सुप्रीम कोर्ट ने दशकों पुराने अयोध्या मामले में अपना फैसला सुना दिया है। शीर्ष अदालत में पांच जजों की खंडपीठ में जस्टिस शरद अरविंद बोबडे भी शामिल थे। बड़े मामले की सुनवाई और उसके लेकर दबाव को लेकर बोबडे की बिल्कुल अलग ही राय है।

बोबडे ने अदालत के गर्म माहौल, दोनों पक्षों के वकीलों की तरफ से तर्कों की बैछार में खुद को तनाव से मुक्त रहने का नुस्खा बताया। उन्होंने कहा कि सुनवाई के बाद जब मैं सीट से उठता हूं, तो मैं उस पल को भूल जाता हूं, जिससे मुझे तनाव नहीं होता। मालूम हो कि 10 दिन पहले भारत का अगला चीफ जस्टिस नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 29 अक्टूबर को सीजेआई के रूप में उनकी नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर किए। इस महीने की शुरुआत में एक इंटरव्यू में तनाव कम करने से संबंधित पूछे गए सवाल पर बोबडे ने कहा था कि मैं उस क्षण को भूल जाता हूं जब मैं सीट से उठता हूं। मैं बस उसे भूल जाता हूं।

जस्टिस बोबडे 18 नवंबर को भारत के अगले चीफ जस्टिस के रूप में शपथ लेंगे। महाराष्ट्र के एक वकील परिवार से आने वाले इस जस्टिस ने आधार प्रकरण सहित कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की है। वह देश के 47वें सीजेआई होंगे। जस्टिस बोबडे अगस्त 2017 में निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने वाली संविधान पीठ के भी सदस्य थे।

शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम जज 63 वर्षीय जस्टिस बोबडे वर्तमान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का स्थान लेंगे जो 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने स्थापित परपंरा के अनुरूप अपने उत्तराधिकारी के रूप में शीर्ष अदालत के वरिष्ठतम जज न्यायमूर्ति बोबडे की नियुक्ति की सिफारिश केन्द्र से की थी। जस्टिस बोबडे 23 अप्रैल, 2021 तक देश के चीफ जस्टिस रहेंगे। नागपुर में 24 अप्रैल, 1956 को जन्मे न्यायमूर्ति बोबडे ने नागपुर यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और फिर कानून की शिक्षा पूरी की।

जस्टिस बोबडे ने 1978 में महाराष्ट्र बार काउन्सिल में रजिस्ट्रेशन कराने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में वकालत शुरू की। वह 1998 में सीनियर एडवोकेट बनाये गये थे। न्यायमूर्ति बोबडे की 29 मार्च 2000 को बॉम्बे हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश पद पर नियुक्ति हुयी। वह 16 अक्टूबर 2012 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 12 अप्रैल 2013 को पदोन्नति देकर उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया।