Ayodhya Ram Mandir-Babri Masjid Case: अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की सुप्रीम कोर्ट में चल रही रोजाना सुनवाई पर चौथे दिन मुस्लिम पक्ष के पैरवीकार ने आपत्ति जताई है और कहा है कि अगर सप्ताह के पांचों दिन मामले की सुनवाई होगी और उसमें जल्दबादी की जाएगी तो वो कोर्ट को सहयोग नहीं कर पाएंगे। सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि चूंकि मामले से जुड़े कई दस्तावेज संस्कृत और उर्दू में हैं, इसलिए उन्हें पढ़ने और उस पर तैयारी करने में वक्त लग सकता है। ऐसे में सप्ताह के पांचों दिन वो इस मामले की पैरवी नहीं कर पाएंगे।
सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने शुक्रवार (09 अगस्त) को जब लगातार चौथे दिन इस केस की सुनवाई शुरू की तो मुस्लिम पक्ष के वकील ने आपत्ति जताई। धवन ने कहा कि इस तरह मैं टॉर्चर नहीं झेल सकता और मामले की पैरवी छोड़ दूंगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना सुनवाई की परंपरा से हटकर इस मामले को शुक्रवार और सोमवार को भी सुनने का निर्णय किया था। शुक्रवार और सोमवार के दिन नये मामलों और लंबित मामलों में दाखिल होने वाले आवेदनों आदि पर विचार के लिये होते हैं।
‘राम लला विराजमान’ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन ने जैसे ही अपनी अधूरी बहस आगे शुरू की तो धवन ने इसमें हस्तक्षेप करते हुये कहा, ‘‘यदि सप्ताह के सभी दिन इसकी सुनवाई की जायेगी तो न्यायालय की मदद करना संभव नहीं होगा। यह पहली अपील है और इस तरह से सुनवाई में जल्दबाजी नहीं की जा सकती और इस तरह से मुझे यातना हो रही है।’’ संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
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धवन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद पहली अपील पर सुनवाई कर रही है और इसलिए इसमें जल्दबाजी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि पहली अपील में दस्तावेजी साक्ष्यों का अध्ययन करना होगा। अनेक दस्तावेज उर्दू और संस्कृत में हैं जिनका अनुवाद करना होगा। उन्होंने कहा कि संभवत: जस्टिस चन्द्रचूड़ के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश ने हाई कोर्ट का फैसला नहीं पढ़ा होगा।
धवन ने कहा कि अगर न्यायालय ने सभी पांच दिन इस मामले की सुनवाई करने का निर्णय लिया है तो वह इस मामले से अलग हो सकते हैं। इस पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, ‘‘हमने आपके कथन का संज्ञान लिया है। हम शीघ्र ही आपके पास आयेंगे।’’ इसके साथ ही आगे सुनवाई शुरू हो गयी। राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन इस मामले मेंदलीलें पेश कर रहे हैं।
कोर्ट ने बृहस्पतिवार (08 अगस्त) को परासरन से सवाल किया था कि जब देवता स्वयं इस मामले में पक्षकार हैं तो फिर ‘जन्मस्थान’ इस मामले में पक्षकार के रूप में कानूनी व्यक्ति के तौर पर कैसे दावा कर सकता है। संविधान पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ भूमि तीनों पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था।
(भाषा इनपुट्स के साथ)