सुप्रीम कोर्ट में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई जारी है। सोमवार को इस सुनवाई का 34वां दिन है। फिलहाल मुस्लिम पक्ष अपनी दलील रख रहा है। मुस्लिम पक्ष के वकील शेखर नफाडे ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कहा कि महंत के पास अयोध्या में पूजा करने का अधिकार नहीं था, उन्हें ये अधिकार 1885 के बाद मिला है। मुस्लिम पक्ष के वकील निजाम पाशा ने अदालत में कहा कि जब बाबर राज कर रहा था, तो वह संप्रभु था और किसी के प्रति जवाबदेह नहीं था। विरोधी पक्ष कह रहा है कि बाबर ने मस्जिद बनाकर पाप किया है, लेकिन उसने कोई पाप नहीं किया है।
वकील ने कहा कि बाबर उस वक्त सबसे ऊंची गद्दी पर था, इसलिए उसने मस्जिद बनाने का आदेश दिया। इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि हम यहां बाबर के पाप-पुण्य का फैसला करने नहीं बैठे हैं। हम यहां कानूनी कब्जे पर दावे का परीक्षण करने के लिए बैठे हैं।
वहीं सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हम अब मध्यस्थता में भाग नहीं लेंगे और अदालत ही इस पर फैसला करे। इस तरह राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद में मध्यस्थता होने की कोशिशों को बड़ा झटका लगा है।
वहीं मस्जिद के डिजाइन पर मुस्लिम पक्ष के वकील निजाम पाशा ने कहा कि मस्जिद के डिजाइन का शरिया से कोई लेना-देना नहीं है। पाशा के अनुसार, बादशाह के लिए तब कुरान कोई कानून नहीं था। लिहाजा कुरान के तहत बाबर का मस्जिद बनाना कोई पाप नहीं है।
मुस्लिम पक्ष के वकील निजाम पाशा ने दलील देते हुए कहा कि कुरान और हदीस के मुताबिक कोई कैसे भी मस्जिद बना सकता है। बिना मीनार और वजूखाना के मस्जिद बनायी जा सकती है। उन्होंने कहा कि जहां पहले कभी मंदिर रहा हो, वहां भी मस्जिद बनायी जा सकती है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच अयोध्या मामले पर सुनवाई कर रही है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई इस बेंच की अगुवाई कर रहे हैं। इस बेंच में सीजेआई रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस.ए. बोबड़े, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस.ए.नजीर शामिल हैं। बेंच 18 अक्टूबर तक इस मामले की सुनवाई पूरी कर सकती है। इसके लिए हर दिन एक घंटा देर तक सुनवाई हो रही है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा गया है कि अगर जरुरत पड़ती है तो वह शनिवार को भी मामला सुनने को तैयार है।