सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद अयोध्या जमीन विवाद मामले में जारी मध्यस्थता प्रक्रिया के संबंध में गुरुवार को आदेश दिया कि उसे एक हफ्ते के अंदर ताजा स्टेटस रिपोर्ट सौंपी जाए। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस (रिटायर्ड) एफ एम आई कलीफुल्ला से 18 जुलाई तक स्टेटस रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा। बेंच ने यह भी कहा कि वह अगला आदेश 18 जुलाई को देगी।
बता दें कि कलीफुल्ला तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल के अध्यक्ष हैं। अदालत की संविधान बेंच ने कहा कि स्टेटस रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद अगर उसे लगेगा कि मध्यस्थता प्रक्रिया नाकाम रही तो ऐसे हालात में अदालत मुख्य अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई 25 जुलाई से प्रतिदिन के आधार पर करेगी। कोर्ट ने यह आदेश विवाद से जुड़े एक वादी गोपाल सिंह विशारद की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। बता दें कि याचिका में मांग की गई है कि मध्यस्थता प्रक्रिया को निरस्त करके इस मामले का फैसला अदालत करे।
चलिए यह जान लेते हैं कि आखिर यह मध्यस्था पैनल कैसे बना। दरअसल, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद अयोध्या जमीन विवाद पर इस साल 8 मार्च को कोर्ट ने सुनवाई करते हुए मध्यस्थता की सिफारिश की। मकसद यह था कि विवाद का सभी पक्षों की रजामंदी से कोई हल निकाला जाए। कोर्ट ने यह फैसला लोकसभा 2019 की तारीखों के 9 मार्च को ऐलान से ठीक एक दिन पहले किया था।
फैसले के तहत एक पैनल बनाया गया जिसके सदस्य रिटायर्ड जस्टिस एफ एम आई कलिफुल्ला, आध्यात्मिक नेता श्री श्री रविशंकर और सीनियर एडवोकेट श्रीराम पांचू थे। इस पैनल को मध्यस्था की प्रक्रिया को पूरी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। कोर्ट ने कहा था कि मध्यस्थता की प्रक्रिया कोर्ट के आदेश पास करने के एक हफ्ते के भीतर शुरू की जाए और इसे 8 हफ्तों में खत्म कर दिया जाए। मध्यस्थता प्रक्रिया की सीक्रेसी बरकरार रखने और इसे किसी किस्म के मीडिया ट्रायल से बचाने के लिए अदालत ने इसकी रिपोर्टिंग पर भी बैन लगा दिया।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि मध्यस्थता की प्रक्रिया अयोध्या से सटे फैजाबाद में की जाए। निर्मोही अखाड़ा को छोड़ इस मामले से जुड़े बाकी सभी हिंदू संगठनों ने मध्यस्थता से जुड़े कोर्ट के आदेश का विरोध किया था। हालांकि, मुस्लिम संगठनों ने इस प्रक्रिया का समर्थन दिया। वहीं, बीजेपी, कांग्रेस समेत करीब करीब सभी प्रमुख पार्टियों ने कोर्ट के आदेश का स्वागत किया।
बता दें कि बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था। इसे 16वीं शताब्दी में मीर बाकी ने बनवाया था। जिस जमीन पर इसे बनवाया गया, वो विवादित है। हिंदू संगठनों का दावा है कि इस जमीन पर भगवान राम का जन्म हुआ था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में दिए फैसले में कहा था कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांट दी जाए। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।