Nagpur Violence: औरंगजेब एक ऐसा मुगल शासक है जिसके साथ इतिहास के कई पन्ने जुड़े हैं। इन पन्नों में विवाद है, विरोधाभास है और कई मौकों पर लोगों को आक्रोशित करने की ताकत भी है। हाल ही में विक्की कौशल की फिल्म छावा आई थी, कहानी तो वीर छत्रपति महाराज शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी की थी, लेकिन लोगों की नजर पड़ी मुगल शासक औरंगजेब पर। दिखाने की कोशिश हुई कि किस तरीके से संभाजी महाराज ने वीर शिवाजी की महानता को, उनके शौर्य को आगे बढ़ाया, लेकिन चर्चा का केंद्र इस बात पर शिफ्ट हो गया कि औरंगजेब ने किस तरह से क्रूरता फैलाई, उसने किस तरह से हिंदू मंदिरों को तोड़ा, उसने किस तरह से संभाजी महाराज को यातनाएं दीं।
छावा से कैसे शुरू हुई औरंगजेब पर सियासत?
अब औरंगजेब ने यह सब किया था, इतिहास में इन घटनाओं का जिक्र है, लेकिन छावा में जिस आक्रमकता के साथ सबकुछ दिखाया गया, लोगों के मन पर इसका गहरा प्रभाव रहा। इतना गहरा कि जिस औरंगजेब का जिक्र शायद कोई कभी ना करता, उसका सोशल मीडिया भी कई पोस्ट से पट गया। उसने भी अपने विचार डालने शुरू कर दिए। अब कहानी अगर सोशल मीडिया तक सीमित रहती, किसी को दिक्कत नहीं थी, लेकिन इस छावा फिल्म ने राजनीति में भी अपनी जगह बनाई। शुरुआत तो बीजेपी शासित राज्यों ने इसे टैक्स फ्री कर पहले ही कर दी थी, बाद में सपा नेता अबु आजमी की बयानबाजी ने भी आग में घी डालने का काम किया।
नागपुर में हिंसा भड़की
उसके बाद तो संभाजी महाराज की वीरता कहीं बहुत पीछे छूट गई और नेरेटिव पूरी तरह औरंगजेब पर शिफ्ट हो गया। उसी नेरेटिव का एक हिस्सा बना औरंगजेब की कब्र को लेकर, जिस मकबरे से इतने सालों से कोई दिक्कत नहीं थी, अब हिंदू संगठनों ने इसे हटाने की मांग कर दी। बात कारसेवा तक आ गई, विश्व हिंदू परिषद ने मकबरे को हटाने का अल्टीमेटम तक दे दिया। अब उसी अल्टीमेटम के बाद पूरे महाराष्ट्र में तनाव और ज्यादा बढ़ा और सोमवार रात को नागपुर में भयंकर हिंसा देखने को मिली। नागपुर के महाल इलाके में कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस पर भी पथराव हुआ और तनाव बढ़ता गया। अब इस हिंसा ने ही सिनेमा की ताकत पर एक नई बहस को शुरू कर दिया है।
बॉलीवुड फिल्मों का लोगों पर असर और हिंसक प्रदर्शन
सोचने की जरूरत है कि भारत में बॉलीवुड हो, टॉलीवुड हो, या फिर कोई दूसरा सिनेमा, इनका समाज पर कितना गहरा प्रभाव पड़ सकता है। एनिमल जैसी फिल्में देखने के बाद कहा जाता है कि यह हिंसा को प्रमोट कर रही हैं, लोगों में गुस्सा भर रहा है, लेकिन अब जब छावा फिल्म के बाद सड़कों पर गाड़ियों को फूंका जा रहा है, जब वो फिल्म देखने के बाद एक मुगल शासक का जिन्न फिर जिंदा हो चुका है, बहस नए सिरे से शुरू हुई है। वैसे बॉलीवुड फिल्मों का इतिहास बताता है कि ये विवाद की जननी भी है और कई मौकों पर सड़कों पर हिंसा शुरू करने की क्षमता भी रखती है। फिल्म चाहे उस हिंसा को प्रमोट ना भी करे, लेकिन उस पर शुरू हुई सियासत कब एक बवाल में तब्दील हो जाती है, इसके कई उदाहरण भरे पड़े हैं।
भंसाली की पद्मावत के साथ क्या हुआ था?
छावा से पहले संजय लीला भंसाली ने भी भारत का इतिहास दर्शाते हुए पद्मावत फिल्म बनाई थी। 2018 में रिलीज हुई इस फिल्म को लेकर पूरे देश में जबरदस्त बवाल था, हिंदू संगठन सड़क पर उतर चुके थे, संजय लीला भंसाली पर हमले हुए थे, जान से मारने की धमकियां मिली थीं। आखिर क्यों- क्योंकि कुछ हिंदू संगठनों को ऐसा लगा कि उनकी संस्कृति को इस फिल्म में धूमिल किया गया है, आरोप लगे कि एक हिंदू रानी का मुस्लिम शासक के साथ रोमांस दिखाया गया। फिल्म मेकर्स इस बात को नकारते रहे, लेकिन बवाल एक बार भी नहीं थमा। उस समय आलम यह था कि उत्तर प्रदेश में सिनेमा मालिकों को धमकियां मिली थीं, फिल्म ना रिलीज करने को कहा गया था। इसका असर भी दिखा क्योंकि कई थिएटर ने तब पद्मावत चलाने से ही मना कर दिया।
शाहिद की हैदर ने कैसे लोगों को सड़कों पर लाया?
थोड़ा पीछे चलें तो 2014 में विशाल भारद्वाज की कल्ट क्लासिक फिल्म हैदर भी आई थी, शाहिद कपूर को इसमें कास्ट किया गया था। फिल्म कहने को शेक्सपियर के हेमलेट से प्रेरित थी, लेकिन सारा विवाद इस बात को लेकर हुआ कि फिल्म में जम्मू कश्मीर को किस तरह से दिखाया गया। राइट विंग और दूसरे कुछ संगठनों ने इस बात पर आपत्ति दर्ज करवाई कि हैदर में गलत तरीके से मानव अधिकारों के हनन का मुद्दा उठाया। इसके ऊपर जिस तरीके से भारतीय सेना को फिल्म में दिखाया गया, उसको लेकर भी विरोध प्रदर्शन हुए।
अक्षय की Oh My God और आगजनी-धमकी का सिलसिला
हैदर को लेकर तो कई कश्मीरी पंडित भी सड़क पर उतरे थे, उनकी समिति ने आरोप लगाया था कि फिल्म ने हिंदुओं के सूर्य मंदिर को गलत तरीके से पेश किया था। तब हैदर को बैन तक करने की मांग होने लगी थी। 2012 में अक्षय कुमार और परेश राव की फिल्म आई Oh My God को लेकर भी बड़ा बवाल हुआ था। फिल्म रिलीज से पहले और बाद में कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन देखने को मिले, पोस्टर चले और जमकर नारेबाजी हुई थी।
लोगों का आरोप था कि फिल्म में हिंदू संस्कृति को अपमानित किया गया है, भगवान का मजाक बना है, मेकर्स ने खुद को इस विवाद से दूर रखा, लेकिन सड़कों पर हुए प्रदर्शन ने पंजाब के कई जिलों में फिल्म को रिलीज तक होने नहीं दिया था। इसी तरह जब 2023 में इस फिल्म का सक्वील आया था, उसे लेकर भी फिर हिंदू संगठनों ने विरोध किया, राष्ट्रीय हिंदू परिषद ने तो सड़क पर उतर विरोध प्रदर्शन किए, अक्षय के शिव अवतार को डिलीट करने की मांग हुई। 10 लाख का इनाम तक देने का ऐलान हो गया था, कंडीशन रखी गई थी कि अक्षय कुमार को थप्पड़ मारना होगा।
रणवीर की रामलीला और सड़क पर उतरा क्षत्रिय समाज
संजय लीला भंसाली की राम लीला भी लोग भूले नहीं हैं। उस फिल्म का विरोध क्षत्रीय समाज कर रहा था, तर्क दिया गया था कि उनके समाज के लोगों को फिल्म में सही तरीके से दिखाया नहीं गया, उनका अपमान हुआ है। भंसाली की उस फिल्म को लेकर दिल्ली में सड़कें तक जाम कर दी गईं, खूब नारेबाजी हुई थी। फिल्म के नाम को लेकर भी एक विवाद चला था, उसे भी हिंदू भावनाओं के साथ जोड़ दिया गया था। पहले फिल्म का नाम राम लीला था, लेकिन कई रोमाटिंग सीन्स वायरल होने के बाद उस टाइटल पर बवाल मचा और तब जाकर ‘गोलियों की रास लीला’ फिल्म टाइटल में जोड़ा गया।
जॉन की मद्रास कैफे और तमिलनाडु में प्रदर्शन
जॉन अब्राहम की मद्रास कैफे का भी लोगों पर काफी असर पड़ा था। उस फिल्म में LTTE, तमिलनाडु और श्रीलंका को लेकर जो कुछ दिया गया था, उसका जमकर विरोध किया। उस समय तमिलनाडु तो विरोध का एपीसेंटर बना था, कई संगठनों ने बवाल काटा था, यूनिवर्सिटीस तक विवाद की आग पहुंची थी। आरोप था कि फिल्म में टाइगर नेता Vellupillai Prabhakaran को एक विलेन के तौर पर पेश किया गया था।