भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने दिल्ली के शालीमार बाग में स्थित 17 वीं सदी के स्मारक शीश महल को चमकाने के लिए 2-5 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला किया है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग अधिकारियों के अनुसार, सन 1658 में इसी जगह पर मुगल सम्राट औरंगजेब की ताजपोशी का प्रारंभिक आयोजन हुआ था।
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, योजना के ब्लूप्रिंट के अनुसार परिसर में दो पवेलियन के बीच एक पुराने वाटर चैनल को फिर से शुरू किया जाएगा और सजावटी फव्वारे भी लगाए जाएंगे। पवेलियन में क्षतिग्रस्त पत्थरों को बदलने के लिए राजस्थान और आगरा से लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया जाएगा।
कुछ महीनों पहले डीडीए के अध्यक्ष और एलजी अनिल बैजल ने एएसआई के अधिकारियों के साथ स्मारक का दौरा किया था। इसके बाद यह फैसला लिया गया है। एएसआई अधिकारी ने पुष्टि की है कि इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए 70 लाख रुपये की पहली किस्त पहले ही जारी की जा चुकी है।
शीश महल का निर्माण शाहजहां ने करवाया था। वर्ष 1983 से यह स्मारक एएसआई की सुरक्षा में है। इसके मरम्मत के काम की निगरानी एएसआई की दिल्ली मिनी सर्किल टीम करेगी। मरम्मत के दौरान 6 महीने तक ईंट का काम भी होगा। चूने के प्लास्टर का उपयोग लखोरी ईंटों के गैप को ठीक करने के लिए किया जाएगा। लाखोरी ईंट मुगल वास्तुकला में इस्तेमाल की जाने वाली पतली लाल रंग की ईंटें हैं।
एएसआई के एक अधिकारी ने बताया, “प्लास्टर प्रक्रिया को ‘अंडर-पिनिंग’ और ‘वॉटर-टाइटिंग’ कहा जाता है। हम इस संरचना को ठीक करने और गैप को भरने के लिए चूना, सुरखी, गुड़, बेलगिरी (रस्सी) और अरहर की दाल का इस्तेमाल करते हैं।”
हालांकि इससे पहले भी एएसआई ने शीश महल पर संरक्षण कार्य किया था, लेकिन योजनाओं को बंद कर दिया गया था। 2006 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने संरचना के खराब रखरखाव के लिए संरक्षण निकाय की खिंचाई की थी। एएसआई ने तब अदालत को बताया था कि उसने स्मारक के संरक्षण पर 35 लाख रुपये खर्च किए हैं। लेकिन 2006 में शुरू होने वाले काम को बीच में ही रोक दिया गया था, जिसमें एएसआई के अधिकारी ने “धन की कमी” का कारण बताया था। संरक्षण योजनाओं में शीश महल के आसपास के क्षेत्र में बाड़ लगाना और टूटे पत्थरों को बदलना शामिल था।