केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि यदि मां-बाप का नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) में है तो उनके बच्चों को असम में डिटेंशन सेंटर नहीं भेजा जाएगा। केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल में शीर्ष अदालत को यह जानकारी सोमवार को दी।
वेणुगोपाल ने कहा, मैं इस बात की परिकल्पना नहीं कर सकता कि बच्चों को डिटेंशन सेंटर भेजा जाएगा और उनको परिवार से अलग किया जाएगा। जिन अभिभावकों की नागरिकता मिल चुकी है उनके बच्चों को डिटेंशन सेंटर नहीं भेजा जाएगा।
वेणुगोपाल ने यह बात चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस सूर्यकांत और बीआर गवई की संयुक्त पीठ के सामने एक याचिक पर सुनवाई के दौरान कही। इस याचिका में उन बच्चों की सुरक्षा की मांग की गई थी जिनका नाम एनआरसी में शामिल नहीं हो सका था। केंद्र ने इस मामले में जवाब देने के लिए चार सप्ताह की मांग की थी।
अदालत ने अपने आदेश में इस आश्वासन को दर्ज किया, ‘मिस्टर वेणुगोपाल, अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया ने कहा है कि जिन माता-पिता को भारत की नागरिकता मिल चुकी है उनके बच्चों को उनसे अलग नहीं किया जाए। इस याचिका पर डिटेंशन सेंटर भेजने का निर्णय लंबित रखा जाता है।
शीर्ष अदालत ने असम सरकार से नए स्टेट कोऑर्डिनेटर हितेश देव शर्मा की तरफ से सोशल मीडिया पर किए गए प्रवासी विरोधी और सांप्रदायिक बयान के बारे में भी स्पष्टीकरण मांगा। शर्मा ने यह टिप्पणी एनआरसी प्रक्रिया से जुड़ने से पहले यह टिप्पणी की थी।
वरिष्ठ एडवोकेट कपिल सिब्बल ने शर्मा के फेसबुक पोस्ट को कथित रूप से मुस्लिम विरोधी बताया। अदालत ने शर्मा से अपने बयान पर स्पष्टीकरण देने या फिर उसे वापस लेने को कहा। अदालत ने कहा कि उन्हें इस तरह की बातें नहीं कहनी चाहिए।
हालांकि सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा था कि जब तक एनआरसी की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती शर्मा की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी। हालांकि, उन्होंने कहा था कि उनका कथित पक्षपातपूर्ण रवैये से इस प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ेगा।