पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती (सोमवार 25 दिसंबर 2023) पर सभी लोग उनको श्रद्धांजलि दे रहे हैं। राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी का अलग स्थान रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन के कई ऐसे रोचक किस्से हैं, जिनसे नई पीढ़ी के काफी लोग अब भी अपरिचित हैं। वाजपेयी जी काफी हंसमुख, हाजिरजवाबी और तार्किक बात रखने वाले नेता माने जाते थे। उनके विचारों से असहमत होने पर भी कई बार उनके विरोधी आलोचना नहीं कर पाते थे। वह जहां भी रहते थे, अपने जवाबों से गंभीर माहौल को हलका कर देते थे।

आदर्श पत्नी को खोज रहे थे, वह भी खोजने लगी आदर्श पति

वह जीवन भर अविवाहित रहे। कई बार इसको लेकर उनसे सवाल भी पूछे गए, लेकिन वजह बताने से अक्सर वह बचते रहे। मजाक जरूर करते थे। एक बार मीडिया से बातचीत के दौरान एक महिला पत्रकार से इस बारे में उनसे सवाल किया। उन्होंने पूछा कि आपने शादी क्यों नहीं की? अटल जी ने कहा- वह आदर्श पत्नी की खोज कर रहे हैं। पत्रकार ने उनसे कहा- तो क्या आपको आदर्श पत्नी नहीं मिलीं, हाजिरजवाब वाजपेयी ने तब कहा- मिली थीं, लेकिन वह भी आदर्श पति खोज रही हैं। इस पर सब लोग हंसने लगे।

पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने बस पर सवार होकर गए थे लाहौर

अटल बिहारी वाजपेयी का पाकिस्तान किस्सा भी काफी चर्चित रहा। जब वह प्रधानमंत्री थे, तब वह पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए काफी प्रयास किए, हालांकि पाकिस्तान ने बदले में भारत के प्रति नफरत का ही रास्ता अपनाता रहा। 1999 में पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान से बेहतर रिश्ते के लिए बस यात्रा शुरू की थी।

पाकिस्तानी महिला पत्रकार को दी थी एक खास जानकारी

खुद वाजपेयी जी बस में सवार होकर लाहौर गए थे। वहां पहुंचने पर पाकिस्तानी मीडिया की एक महिला जर्नलिस्ट ने उनसे कश्मीर को लेकर सवाल पूछने के साथ ही शादी का प्रस्ताव भी दे दिया। महिला पत्रकार ने कहा, “मैं आपसे शादी करना चाहती हूं, लेकिन मुंह दिखाई में कश्मीर लूंगी।” इस पर अटल जी ने खूबसूरत जवाब देकर सबको हैरान कर दिया। उन्होंने कहा, “मैं शादी के लिए तैयार हूं, लेकिन मुझे दहेज में पूरा पाकिस्तान चाहिए।” उनका यह जवाब मीडिया की सुर्खियां बन गया था और काफी चर्चित रहा।

वाजपेयी जी एक अच्छे वक्ता रहे हैं। वह जब भी बोलते थे, सामने वाला उनसे प्रभावित जरूर हो जाता था। शब्दों के साथ उनकी रिश्तेदारी गजब की थी। हर मौके पर ऐसे ढंग से अपनी बात रखते थे, कि हर कोई उनका मुरीद हो जाता था।

वाजपेयी ने अपने भाषणों में, लोकतंत्र को सबसे सफल तरीके से बनाए रखने के लिए, जाति, भाषा, धर्म या राजनीतिक झुकाव की परवाह किए बिना विभिन्न गुटों के बीच एकता की आवश्यकता पर बार-बार ध्यान दिया। प्रधानमंत्री के रूप में अपने आखिरी स्वतंत्रता दिवस भाषण में, उन्होंने अपनी विशिष्ट शैली में समापन किया, एक कविता के साथ जो उन्होंने 40 साल पहले लिखी थी, जिसमें सफल होने के लिए एक साथ चलने की आवश्यकता पर टिप्पणी की गई थी- “बाधाएंआती हैं आएं, घिरे परले की घोर घटाएं, पांव के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों से जल्दबाजी, आग लगा कर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा।”