महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने पूरी तरह कमर कस ली है। हरियाणा में पार्टी की ऐतिहासिक जीत ने न सिर्फ बीजेपी को आत्मविश्वास दिया है बल्कि आरएसएस के साथ उसके रिश्तों में आई दरार को पाट दिया है। हरियाणा में भाजपा की हैट्रिक में संघ परिवार के जमीनी प्रयासों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

पिछले हफ़्ते उत्तर प्रदेश के मथुरा में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरएसएस के जनरल सेक्रेटरी दत्तात्रेय होसबोले ने ज़ोर देकर कहा कि संघ और बीजेपी के बीच सब ठीक है । पहली बार आरएसएस ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लोकसभा चुनाव से पहले इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए बयान पर भी बात की जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजेपी को अपने काम चलाने के लिए आरएसएस की ज़रूरत नहीं है क्योंकि अब वह अपने आप में सक्षम है। होसबोले ने कहा कि संघ नड्डा के बयान की भावना को समझता है और यह किसी तनाव का कारण नहीं है।

भाजपा नेता इस बात पर जोर देते हैं कि जमीनी स्तर पर पार्टी और संघ के कार्यकर्ताओं के बीच कभी कोई तनाव नहीं रहा। उन्होंने इसे अटकलबाजी करार दिया। वहीं सूत्रों ने कहा कि लोकसभा चुनाव में मिली हार दोनों पक्षों के लिए आंख खोलने वाली रही। अब दोनों पक्षों को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए।

हरियाणा की जीत ने बदले RSS-BJP के समीकरण

संघ के लिए हरियाणा की जीत एक तरह से संतोषजनक रही कि उसका संगठन और नेटवर्क अभी भी चुनाव का रुख बदल सकता है। फिर भी, कुछ चीजों पर काम करने की आवश्यकता थी। सूत्रों ने कहा कि यह कई चर्चाओं के दौरान किया गया था, जिसमें रांची और पलक्कड़ में हाल ही में आरएसएस की बैठकों के दौरान और दिल्ली में भी चर्चाएं शामिल थीं। एक सूत्र ने कहा,”दोनों संगठनों के बीच कभी भी वैचारिक संघर्ष नहीं था, केवल कार्यात्मक कठिनाइयां थीं। इन्हें सुलझाया जा रहा है।”

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शिवराज सिंह को दी गयी अहम ज़िम्मेदारी

सूत्रों के अनुसार , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख योजनाओं की निगरानी का जिम्मा केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सौंपने का फैसला इसी कवायद का हिस्सा है। शिवराज सिंह चौहान को आरएसएस का पसंदीदा माना जाता है और वे अगले भाजपा अध्यक्ष पद के लिए सबसे आगे चल रहे उम्मीदवारों में से एक हैं।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के विजयादशमी संबोधन के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी की पोस्ट से भी संकेत मिल रहे हैं, जिसमें उन्होंने लोगों से उनके द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान देने का आग्रह किया था।

हरियाणा में आरएसएस ने किया विपक्ष का मुक़ाबला

माना जाता है कि हरियाणा में आरएसएस के छोटे पैमाने पर नेटवर्किंग, सामाजिक संपर्क और छोटी-छोटी सभाओं के पारंपरिक तरीकों ने विपक्ष के इस दावे का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया कि भाजपा सरकार संविधान बदल सकती है। गैर-जाट ओबीसी वोटों के साथ-साथ अनुसूचित जाति के वोटों का एक बड़ा हिस्सा हरियाणा में भाजपा की ओर चला गया।

एक नेता के अनुसार, लोकसभा चुनावों में भाजपा इस अंतर को पाटने में विफल रही क्योंकि कई पार्टी कार्यकर्ताओं ने मतदाताओं से संपर्क नहीं किया जो 10 साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा के अति आत्मविश्वास और उम्मीदवार चयन को लेकर गुस्से के प्रति उदासीन थे। भाजपा नेता ने कहा कि कई लोग खुद वोट देने के लिए बाहर नहीं आए। एक नेता ने कहा, “समाधान यह था कि उन्हें प्रचार करने और मतदान करने के लिए बाहर भेजा जाए और आरएसएस के स्वयंसेवकों ने इसमें मदद की।”

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महाराष्ट्र में क्या है बीजेपी की तैयारी?

भाजपा महाराष्ट्र में मराठों और मुसलमानों पर महा विकास अघाड़ी के फोकस का मुकाबला करने के लिए ओबीसी समूहों और एससी/एसटी समुदायों को इसी तरह लामबंद करने की उम्मीद कर रही है । इसलिए, अगर कांग्रेस का महार समुदाय के बीच बड़ा समर्थन आधार है, तो आरएसएस ने मातंग जाति समूहों के साथ संपर्क किया है।

एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा अनुसूचित जाति कोटे के उप-वर्गीकरण पर चर्चा करने के लिए एक समिति नियुक्त करने का कदम कथित तौर पर आरएसएस के दबाव के बाद उठाया गया था। माना जाता है कि अनुसूचित जाति समुदायों के उप-वर्गीकरण के फैसले से हरियाणा में भी भाजपा को मदद मिली है।

एक सूत्र ने कहा , “अगर विपक्ष ने लोकसभा के दौरान प्रचार के लिए भाजपा नेताओं के बयानों (400 से ज़्यादा सीटें मांगने) का इस्तेमाल किया, तो हमने इसका मुकाबला करने के लिए राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा के दौरान आरक्षण समाप्त करने की टिप्पणियों का इस्तेमाल किया। इसके लिए आरएसएस के पारंपरिक तरीके कारगर रहे।”

झारखंड में भी जुट गए भाजपा-संघ

सूत्रों ने अगस्त में या लोकसभा के नतीजों के ठीक तीन महीने बाद आरएसएस द्वारा शुरू किए गए ‘संविधान बचाओ’ अभियान के बारे में भी बात की। ‘संविधान जागरण यात्रा’ महाड के चावदार टाल से शुरू हुई और सितंबर के मध्य में दादर में समाप्त हुई। चावदार टाल वह सार्वजनिक तालाब है जहां से बाबासाहेब अंबेडकर ने मार्च 1927 में अपना प्रसिद्ध महाड सत्याग्रह शुरू किया था।

दूसरे चुनावी राज्य झारखंड में, आदिवासियों के बीच अपने काम की वजह से आरएसएस का आधार मजबूत है और उसने आदिवासी बहुल इलाकों में अपने स्वयंसेवकों को छोटी-छोटी इकाइयों में संगठित किया है। पार्टी की कोशिश है कि लोकसभा चुनावों से स्थिति को बदला जाए, जब झारखंड में भाजपा सभी पांच आदिवासी बहुल सीटों पर हार गई थी।

आरएसएस जिन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है उनमें से एक संताल परगना है जो जेएमएम का गढ़ है। यहां भाजपा का अभियान कथित बांग्लादेशी घुसपैठ पर केंद्रित है, जिससे आदिवासियों की संख्या में कमी आ रही है। संघ सीमावर्ती क्षेत्रों में काम करने वाले अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है।