राष्ट्रीय जांच एजंसी ने स्वामी असीमानंद को सशर्त जमानत दिए जाने का विरोध नहीं करने का फैसला किया है क्योंकि उसे चुनौती देने का कोई आधार नहीं मिला। 2007 में समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद आरोपी हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच एकमात्र रेल संपर्क समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी 2007 को चार आइईडी विस्फोट में 68 लोग मारे गए थे।

गृह राज्यमंत्री हरिभाई परथीभाई चौधरी ने मंगलवार को लोकसभा को आल इंडिया मजलिस ए इत्तिहादुल मुसलमीन के असद्दुदीन ओवैसी के पूछे गए एक प्रश्न के लिखित जवाब में यह जानकारी दी।

सरकार ने मक्का मस्जिद बम विस्फोट मामले के दो अन्य आरोपियों देवेंद्र गुप्ता और लोकेश शर्मा को दी गई जमानत के आदेश को भी चुनौती की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। यह इनकार इस आधार पर किया गया कि इस मामले में भरत मोहन लाल और तेजराम परमार को जमानत दी जा चुकी है जिसे अभियोजन पक्ष ने चुनौती नहीं दी थी। बहरहाल, गृह राज्य मंत्री ने साफ किया है कि दोनों आरोपी जेल में हैं क्योंकि वे अन्य मामलों मे भी आरोपी है, जिनमें उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया।

स्वामी असीमानंद के बारे में गृह राज्यमंत्री ने कहा कि वह जेल में ही हैं क्योंकि पिछले साल अगस्त में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के दिए गए आदेश में बताई गई जमानत की शर्तों को वह पूरा नहीं कर सके। स्वामी असीमानंद का असली नाम नव कुमार सरकार है।

अदालत ने संबंधित आदेश की प्रमाणित प्रति एक मई 2015 को जारी की थी। मंत्री ने बताया ‘एनआइए ने विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने की व्यवहार्यता की जांच की और तय किया कि आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का कोई आधार नहीं है।’

कांग्रेस सहित विभिन्न राजनीतिक दलों ने एनआइए के इस कदम की आलोचना की है और उस पर, आतंकवाद के उन मामलों की जांच में नाकाम रहने का आरोप लगाया जिनमें दक्षिणपंथी समूह कथित तौर पर शामिल रहे हैं।

अब इस आरोप को और बल मिल गया जब 2008 में हुए मालेगांव मामले में विशेष सरकारी वकील रहीं रोहिणी सैलियान ने कथित तौर पर दावा किया है कि एनआइए ने उन पर साध्वी प्रज्ञा और कर्नल श्रीकांत पुरोहित सहित कुछ आरोपियों के खिलाफ नरम रुख रखने के लिए दबाव डाला था। एनआइए ने उनके आरोपों को गलत बताया था।

एक संबंधित घटनाक्रम में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिसमें 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में सुनवाई के लिए एक अच्छे वकील को विशेष सरकारी वकील नियुक्त करने का आदेश देने का आग्रह किया गया है।

याचिका में मामले की जांच की अदालत द्वारा निगरानी करने की मांग के साथ साथ सीबीआइ को एनआइए के अधिकारियों और ‘उनके उन राजनीतिक संरक्षकों’ के खिलाफ एक मामला दर्ज करने का आदेश देने की मांग भी की गई है जिनके दिशा-निर्देशों पर उन्होंने सैलियान पर आरोपियों के खिलाफ नरम रुख रखने के लिए ‘दबाव’ डाला था।

 

केंद्र ने दी सफाई

’गृह राज्यमंत्री हरिभाई परथीभाई चौधरी ने लोकसभा में बताया ‘एनआइए ने विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने की व्यवहार्यता की जांच की और तय किया कि आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का कोई आधार नहीं है।’

एनआइए पर लग चुके हैं आरोप

इससे पहले 2008 में हुए मालेगांव मामले में विशेष सरकारी वकील रहीं रोहिणी सैलियान ने कथित तौर पर दावा किया था कि एनआइए ने उन पर साध्वी प्रज्ञा और कर्नल श्रीकांत पुरोहित सहित कुछ आरोपियों के खिलाफ नरम रुख रखने के लिए दबाव डाला था। एनआइए ने उनके आरोपों को गलत बताया था। एनआइए के नए कदम की कई राजनीतिक दलों ने निंदा की है।