दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा बिना पहचान 2000 रुपये के नोट को बदलने की याचिका को खारिज करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। अश्विनी उपाध्याया ने सुप्रीम कोर्ट में आरबीआई के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें बैकों में बिना आईडी इन नोटों को बदला जा रहा है। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि सरकार का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। पिछले दिनों हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी दलीलें सुनने के बाद इस पीआईएल को खारिज कर दिया था।
30 सितंबर तक बदले जाएंगे नोट
बता दें कि आरबीआई ने 19 मई को 2000 रुपये के नोटों को वापस लेने की घोषणा की थी। आरबीआई के मुताबिक लोग 23 मई 2023 से 30 सितंबर 2023 तक नोट को बैंकों में जमा करा सकेंगे। इसके साथ ही प्रतिदिन 10 नोट बदल भी सकेंगे। आईबीआई की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि 30 सितंबर तक 2000 के सभी नोट वैध रहेंगे। इनका लेनदेन किया जा सकेगा।
याचिका में क्या की गई मांग
एसबीआई समेत कई बैंकों ने ग्राहकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बिना पहचान या मांग स्लिप के और बिना किसी फॉर्म को भरे नोट बदलने की सुविधा दी है। हालांकि ग्राहक एक बार में सिर्फ 10 नोट ही बदल सकेंगे। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में भारतीय रिजर्व बैंक व भारतीय स्टेट बैंक की अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा था कि बड़ी संख्या में 2,000 रुपये के नोट या तो व्यक्तिगत लॉकर में पहुंच चुके हैं अथवा उन्हें अलगाववादियों, आतंकियों, नक्सलियों, ड्रग तस्करों, खनन माफिया व भ्रष्ट लोगों ने जमा कर लिया है।
RBI के वकील का तर्क
याचिका का विरोध करते हुए आरबीआई ने कहा कि वह दो हजार रुपये के नोट केवल परिचालन से वापस ले रहा है, जो ‘मुद्रा प्रबंधन प्रणाली’ का हिस्सा है और आर्थिक नीति का मामला है। आरबीआई का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पराग पी त्रिपाठी ने कहा कि उच्च न्यायालय पहले ही इसी परिपत्र/अधिसूचना को लेकर दायर एक अन्य जनहित याचिका को खारिज कर चुका है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के मुताबिक एक ही मामले पर कई जनहित याचिका नहीं हो सकती।