दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नाम विशाखापत्तनम के मैकेनिकल इंजीनियर सुमित अग्रवाल का ओपन लेटर सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। फेसबुक पर लिखे खुले खत में उन्होंने गणतंत्र दिवस के मौके पर सैंडल पहनकर पहुंचने पर अरविंद केजरीवाल की आलोचना करते हुए 364 रुपए का डिमांड ड्राफ्ट भेजने की भी बात कही है। आपको बता दें कि जनवरी में राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में केजरीवाल सैंडल पहनकर फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से मिले थे। सुमित अग्रवाल ने ओपन लेटर में लिखा है- इन पैसों से केजरीवाल अपने लिए जूते खरीद लें, ताकि अगली बार किसी खास मौके पर सैंडल पहनकर न चले जाएं।
सुमित लिखते हैं कि दिल्ली के सीएम की सैलरी करीब 2 लाख रुपए है। फिर भी वह ऐसे खास मौकों पर सैंडल पहनकर चले जाते हैं। वह हौज खास पर किसी दोस्त की बर्थडे पार्टी नहीं थी, राष्ट्रपति भवन का डिनर था। हर मौके की अपनी अहमियत होती है। शो-ऑफ करना अच्छी बात नहीं, लेकिन अपनी सादगी का जरूरत से ज्यादा प्रदर्शन और भी बुरी बात है।
सुमित ने खत में केजरीवाल को संबोधित करते हुए लिखा- मेरे शहर में इस वीकेंड पर इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू का आयोजन होगा। ऐसे मौके अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने और दूसरे देशों के साथ दोस्ती का संबंध बनाने के लिए होते हैं। इस मौके पर 60 देशों के प्रतिनिधि आएंगे। संभावना है कि आपको (केजरीवाल को) भी आमंत्रण मिले। बस इसी वजह से मैं आपको यह खत लिख रहा हूं।
सुमित आगे लिखते हैं- सर, आपकी तरह मैं भी एक मैकेनिकल इंजीनियर हूं। हालांकि, आईआईटी या ऐसे ही किसी दूसरे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान से नहीं पढ़ा हूं। आपकी तरह मैं मारवाड़ी (बनिया) भी हूं, लेकिन, आपकी तरह मेरे अंदर आम आदमी का वह नैचुरल आकर्षण नहीं है, इसीलिए बहुत कोशिश के बाद भी मैं बस 364 रुपये जुटा पाया हूं। हालांकि, इतने पैसे एक मुख्यमंत्री के लिए काफी नहीं हैं, लेकिन मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया इस छोटे से योगदान को स्वीकार करें और अपने लिए एक जोड़ी बढ़िया ब्लैक फॉर्मल शूज खरीद लें। अगर आपको और पैसों की जरूरत हो तो मुझे लिखें, जरूरत पड़ी तो मैं कुछ और पैसे जुटाने के लिए पूरे शहर का चक्कर लगा आऊंगा।
आखिर में सुमित ने लिखा कि केआर नारायणन की तरह कुछ पूर्व राष्ट्रपतियों ने अपने मेहमानों के लिए ड्रेसकोड तय कर दिया था। अगर केजरीवाल अपने तरीके नहीं बदलते हैं, तो शायद राष्ट्रपति भवन को अपना तरीका बदलना पड़े और पुराना नियम अपनाना पड़े। (पूरा ओपन लेटर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
